भाखड़ा : परत-दर-परत एक पड़ताल

“भाखड़ा : परत-दर-परत एक पड़ताल” यह किताब मंथन अध्ययन केन्द केन्द्र (बड़वानी, मध्यप्रदेश) द्वारा दिसंबर 2001 से दिसंबर 2004 के बीच भाखड़ा-नंगल परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर किए गए गहन अध्ययन का संक्षिप्त रूप है। मूल अध्ययन की रपट अप्रैल 2005 में अनरैवलिंग भाखड़ा (Unravelling Bhakra) के नाम से प्रकाशित हुई थी। मूल लेखक श्रीपाद धर्माधिकारी ने स्वयं इसका संक्षेपण किया तथा हिंदी अनुवाद श्री विनीत तिवारी ने किया। कोशिश रही है कि भाषा सरल एवं बोधगम्य बनी रहे ताकि तकनीकी शब्दावली पठन के प्रवाह में बाधा न बने।

भाखड़ा-नंगल परियोजना देश में एक किंवदंती बन चुकी है। पंजाब और हरियाणा की समृध्दि तथा देश को भूख और अकालों से उबारकर अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का सर्वाधिक श्रेय इसी परियोजना को दिया जाता है। इसे ही बड़े बाँधों को न्यायोचित ठहराने में एक तर्क के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भाखड़ा-नंगल परियोजना की खास भूमिका के बारे में बहुत सीमित अध्ययन हुए हैं। यह अध्ययन भाखड़ा परियोजना के बारे में प्रचलित मान्यताओं की सच्चाई परखने की कोशिश है जिसमें परियोजना के व्यापक विकास प्रभाव, विशेषकर देश की खाद्य सुरक्षा में योगदान, की पड़ताल की गई है। इस अध्ययन से भाखड़ा-नंगल परियोजना के बारे में अनेक बहुप्रचारित मान्यताओ पर सवाल उठे हैं।

अक्सर पूछा जाता है कि 'भाखड़ा' न होता तो क्या होता? बहुत मुमकिन है कि देश ने भूमि सुधार, विकेन्द्रीकृत वर्षा जल संग्रहण, मिट्टी संरक्षण कार्यक्रम और इनके साथ कुछ अन्य विकेन्द्रित उपायों को चुना होता। साथ ही प्रमाणों से स्पष्ट है कि अगर यह रास्ता अपनाया जाता तो न केवल उत्पादन के मामले में हमें समान स्तर हासिल हो सकता था, बल्कि उस उत्पादन का और उससे होने वाली आमदनी का बहुत बेहतर वितरण भी किया जा सकता था, आम जनता की पहुँच अन्न तक होती और प्रतिकूलताएँ बहुत कम होती।

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पृष्ठ- 192, मूल्य - 100 रुपए।

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