डबल क्रास : यूरोपीय यूनियन का पानी पर नजरिया

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ीकहते हैं- सभ्य लोग कोई भी काम सभ्य तरीके से करते हैं। पश्चिम के तथाकथित सभ्य मुल्कों के द्वारा अपने और शेष विश्व के लिए बनाए गए नियम-कानून अलग-अलग होते हैं। शेष विश्व के लिए यूरोपीय यूनियन के नियम पक्षपाती और दबाव बनाने वाले होते हैं। आजकल युरोप की नीतियों में बहुत बड़ा अंतर-विरोध दिख रहा है जो पानी के मामले में तो गहरा होता जा रहा है।

पानी को विश्व व्यापार संगठन के दायरे में लाने का मुख्य प्रस्तावक यूरोपीय यूनियन ही था। पिछले पाँच सालों में यूरोपीय यूनियन ने विकासशील देशों पर गैट और विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से दबाव डालकर उनके पानी सेक्टर को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए खुलवा दिया। परंतु युरोप के भीतर यूरोपीय यूनियन ने पानी तथा दूसरी संवेदनशील मुद्दों को उदारीकरण संबंधी बातचीत या चर्चाओं से निकाल दिया है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने यूरोपीय यूनियन से जोरदार ढंग से अपील की है कि वह अपनी डब्लूटीओ के अंतर्गत माँगों को वापस ले लें। क्योंकि उदारीकरण और निजीकरण के अभी तक सिर्फ़ नकारात्मक प्रभाव ही सामने आए हैं। इसलिए राष्ट्रों की जल नीति वैश्विक व्यापार वार्ताओं द्वारा निर्धारित नहीं की जा सकतीं।

यूरोपीय कमीशन जो यरोपीय यूनियन की व्यापारिक नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, का दावा है कि यूरोपीय यूनियन के व्यापारिक हितों के लिए इसकी आवश्यकता है और यह विकासशील देशों के हित में भी है। इस खतरनाक रणनीति के पीछे जो मुख्य आधारभूत समझ है वह यह कि यूरोपीय कमीशन अपने को यूरोपीय यूनियन के व्यापारिक हितों का सबसे बड़ा हितैषी के रूप में प्रदर्शित करना चाहता है। यूरोपीय जल-दानव (कम्पनी) पूरे विश्व के निजी जल-व्यापार पर अपना वर्चस्व कायम कर लेना चाहते हैं तथा यूरोपीय यूनियन इसमें उसकी मदद कर रहा है। कमीशन फ्रांस की स्वेज तथा ओवल जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को लाभ पहुँचाने के लिए पक्षपात पूर्ण ढंग से लाबिंग कर रहा है। वहाँ पर कार्पोरेट लाबी का दबदबा बहुत ज्यादा है। 2006 में 'अंतरराष्ट्रीय निजी पानी आपरेटर फेडरेशन' (एक्वाफेड) ने अपना कार्यालय ब्रुसेल्स में यूरोपीय कमीशन के मुख्यालय के ठीक सामने खोला है। एक्वाफेड निजीकरण सर्मथक लाबी है, जिसका नियंत्रण फ्रांसीसी पानी की बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किया जा रहा है।

फ्रांस दुनिया का सबसे बड़ा पानी व्यवसायी कंपनियों का देश है। डच सरकार की जल नीति में भी जबर्दस्त विरोधाभास हैं। नयी जलनीति के अनुसार घरेलू जल सप्लाई में निजी आपरेटरों की भूमिका को पूरी तरह खारिज कर दिया गया है। जबकि अंतरराष्ट्रीय नीति इसके ठीक विपरीत है। ऐसी ही नीति जर्मनी, स्वीडन और स्विटजरलैंड की भी है। पिछले वर्ष निजीकरण की नीति के असफ़ल होने के बाद एक बार फिर यूरोपीय देश पानी और सीवेज के निजीकरण को दुबारा नए तरीके से लॉच करना चाहते हैं। पर निजीकरण की राह मे बोलीविया का अनुभव रोड़ा बना हुआ है। जहां पर सरकार ने सात साल पुराने पानी के निजीकरण से संबंधित समझौते को रद्द कर दिया है जो फ्रांस की बहुराष्ट्रीय कंपनी स्वेज सीवेज और सरकार के बीच हुआ था। इसका कारण था कंपनी द्वारा अपने वादों को पूरा न कर पाना। कंपनी अपने उन वादों को पूरा नहीं कर पाए थे जो उसने किए थे। वहां पर लोग पानी पर सरकार के साथ-साथ आम लोगों का भी अधिकार चाहते हैं।

एक यह दु:खद सच्चाई यह भी है की यूरोपीय यूनियन में ब्रिटेन तथा दूसरे अन्य यूरोपीय देश केवल प्राइवेट सेक्टर के लिए ही धन देने के सिध्दान्त के समर्थक हैं और वर्ल्डबैंक के साथ पब्लिक- प्राइवेट इनफ्रास्ट्रक्चर एडवाइजरी फेसयलिटी (पीपीआइ एएफ) के जरिए निजीकरण के लिए धन मुहैया कराते हैं। इस तरह पीपीआइएएफ ने अफगानिस्तान से लेकर जम्बिया तक दुनिया के 37 गरीब मुल्कों में थोड़े मुनाफ़े के लिए पानी का निजीकरण करवा दिया है। हालांकि पीपीआइएएफ का सलाना बजट बहुत कम है पर उसका राजनैतिक प्रभाव बहुत ज्यादा है तथा यह सभी जगह पानी के निजीकरण के फ़ायदे की विचारधारा को प्रचार-प्रसार में लगा है। पीपीआईएएफ़ का मुख्य उद्देश्य सिर्फ निजीकरण की प्रक्रिया के लिए धन मुहैया कराना है। मैक्सिको सिटी में मार्च 2006 में हुए चौथे विश्व जल फोरम की मंत्रीस्तरीय बातचीत में भी यूरोपीय यूनियन कुछ खास प्रभावी नेतृत्व नहीं प्रदान कर सका। बोलिविया की सरकार ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया था कि पानी लोगों का मूलभूत मानवाधिकार है तथा पानी को व्यापार समझौते से बाहर कर दिया जाय। बैठक के दौरान एक समय तो लगभग दस सरकारों ने पानी के अधिकार को मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र में शामिल करने का समर्थन कर दिया था परंतु ब्रिटेन, नीदरलैण्ड, फ्रांस तथा अमेरिका के जबरदस्त विरोध के बाद ''पानी का मानवाधिकार'' को अंतिम घोषणापत्र से हटा दिया गया। इनके बाद बोलिविया ,क्यूबा वेनेजुएला तथा उरूग्वे ने अपना सम्पूरक घोषणापत्र जारी किया। यहां पर यूरोपीय यूनियन की भूमिका विचारने योग्य है जहां यूरोपीय संसद ने एक प्रस्ताव पास किया जिसके अनुसार यूरोपीय यूनियन की सरकारों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि पानी को मानवाधिकार के रूप में मान्यता प्रदान करें। परन्तु मैक्सिको सिटी में यूरोपीय यूनियन का कहना था कि पानी मानव की प्राथमिक जरूरत तो हो सकता है, परंतु अधिकार नहीं हो सकता ।

इस तरह के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद नीतियों में बदलाव का दबाव बढ़ता जा रहा है। निजीकरण प्रयोगों के फेल होने से सरकारों के बीच भ्रम की स्थिति है और इसके उचित अनुचित होने पर बहस शुरू हो गई है। यूरोप के सिविल सोसायटी में इनकी आलोचना करने वाले ग्रुपों की संख्या बढ़ती जा रही है। साथ ही लोग पानी और सेनिटेशन के क्षेत्र में पब्लिक-पब्लिक पार्टनरशिप (जिसमें संगठनों और सरकार के बीच फायदा न कमाने के उद्देश्य) की वकालत करने लगे हैं। फरवरी 2007 में नार्वे जो की यूरोपीय यूनियन का सदस्य नहीं हैं ने पीपीआईएएफ में अपना अंशदान बंद कर दिया, जो निजीकरण को बढ़ावा देने वाली संस्था है। ऐसा ही दबाव यूरोप के दूसरे देशों का भी उसके उपर बढ़ता ही जा रहा है।

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