पिघलता गंगोत्री : क्या गंगा अक्षुण्ण रहेगी?

गौमुख की राह उमंग और आसभरी होती है. चट्टानों पर आपका एक-एक कदम उस ग्लेशियर की तरफ ले जाता है जो गंगा का उद्भव है. घाटी में नीचे भागीरथी चीड़ व देवदार के बीच उछलती बहती है. जैसे-जैसे ग्लेशियर नजदीक आता जाता है. पेड़ दुर्लभ होते जाते हैं, केवल चट्टानें व पत्थर ही नजर आते है. यहां भी छोटे-छोटे मंदिर व ढाबे जरूर मिल जाएंगे. गंगोत्री ग्लेशियर 30 डिग्री 44' से 30 डिग्री 56' उत्तरी अक्षांश व 79 डिग्री 04' से 79 डिग्री 16' पूर्वी देशांतर के बीच फैला है. इसके सामने के मुख पर एक विशाल हिम गुफा है. भौगोलिक रूप से यह उच्च हिमालय के क्रिस्टेलाइन क्षेत्र है. यह छोटे-बड़े ग्लेशियरों का समूह है. मुख्य ग्लेशयर की लंबाई 30.20 कि.मी. व चौड़ाई 0.5-2.5 कि.मी. है. चार हजार फीट ऊंचाई पर स्थित गौमुख भागीरथी नदी का स्रोत है जो देवप्रयाग में अलकनंदा से संगम के बाद गंगा कहलाती है.
जब आप गंगा ग्लेयिर या गौमुख पर पहुंचते है तो आपकी कल्पनाएं चकनाचूर हो जाती है. यह कोई विशाल ग्लेशियर नहीं है वरन बर्फ से ढंकी चट्टानें भर है. गंगोत्री ग्लेशियर दिन-ब-दिन सिकुड़ रहा है. रास्ते में मीनारों की तरह खड़ी चट्टानों पर लिखा मिलेगा, गंगोत्री 1991 में, गंगोत्री 1961 में, गंगोत्री .... में. इसकी सिकुड़ती लंबाई को उन चट्टानों पर रिकार्ड किया जाता है. जो कभी ग्लेशियर का एक हिस्सा थीं. यदि गंगोत्री ग्लेशियर इस तरह पिघलते रहे, तो गंगा का भविष्य कैसा होगा? क्या ग्लोबल वार्मिंग उस नदी को सुखा देगा जो 50 करोड़ लोगों की जीवन रेखा है? पिघलते ग्लेशियर बर्फ का सबसे बड़ा भू भाग बनाते हैं. यहां से 7 महानदियां (यमुना, सिंधु व ब्रह्मपुत्र आदि) निकलती है. राष्ट्र संघ की जलवायु परिवर्तन संबंधी सरकारी पेनल (आई.पी.सी.सी.) विश्व भर में जलवायु परिवर्तन पर किए गए वैज्ञानिक शोध को इकट्ठा करती है.
पेनल ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में सख्त चेतावनी दी है: 'सारी दुनिया में हिमालय के ग्लेशियर सबसे तेजी से पिघल रहे हैं और अगर यही दर जारी रही तो सन् 2035 या शायद और भी पहले ये विलुप्त हो जाएंगे.' वर्तमान का 5 लाख का वर्ग कि.मी. बर्फीला क्षेत्र एक लाख वर्ग कि.मी. रह जाएगा. ग्लेशियरों के पिघलने का वर्तमान रुझान गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र व उत्तर भारतीय मैदानों में बहने वाली अन्य नदियों को मौसमी बना देगा. लेकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ग्लेशियर भूसंरचना विज्ञानी मिलाप शर्मा का मानना है यद्यपि ग्लेशियर पिघल रहे हैं. फिर भी वे गुम होने नहीं जा रहे हैं क्योंकि पिछले 30-35 वर्षों से सिकुड़ने की दर में कमी आई है. करंट साइंस में छपे एक लेख में किरीट कुमार व उनके साथियों ने भी यही कहा है कि ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम से पिछले 69 वर्षों में 15.19 मीटर सुकड़न पता चली है. यद्यपि सन् 1971 के बाद सिकुड़न की दर कम हुई है और 2004-05 के बीच तो बेहद कम रही है.
यह अध्ययन एक अन्य तथ्य की ओर इशारा कर रहा है कि ग्लेशियर का दक्षिणी मुख उत्तरी भाग की तुलना में धीमे पिघल रहा है. दूसरी ओर अधिकतम सिकुड़न ग्लेशियर की मध्य रेखा में पाई गई है. इनका समर्थन करते हैं लखनऊ के रिमोट सेसिंग एप्लीकेशन सेंटर के ए.के. टांगरी. उनके अनुसार ग्लेशियर पिघलने की दर में कमी से तापमान बढ़ने की दर में भी कमी का संकेत मिलता है. हिमालय पर तापमान परिवर्तन का कोई अध्ययन नहीं हुआ है. दरअसल ऊपरी हिमालय पर दशकों से तापमान के रिकार्ड लेना मुश्किल रहा है. तापमान में वृध्दि के सही रुझान को समझने के लिये पिघले 30-40 वर्षों के आंकड़ों की जरूरत होती जबकि मात्र 7 वर्ष पहले कुछ स्वचलित मौसम केंद्र स्थापित किये गये हैं. वैसे हिमालय को छोड़कर शेष भारत में तापमान 0.42 डिग्री से 0.57 डिग्री सेल्सियस प्रति 100 वर्ष की दर से बढ़ रहा है. आई.पी.सी.सी. के अनुसार पूरे विश्व का तापमान 0.74 डिग्री सेल्सियस प्रति शब्द बढ़ा है.
सन् 1980 से भागीरथी क्षेत्र में बर्फ का भाग कम हो रहा है. अर्थात् नदी को पानी देने के लिये कम बर्फ उपलब्ध है. टांगरी का मत है कि भागीरथी के जलग्रहण क्षेत्र में कम बर्फ पिघलकर कम पानी पहुंच रहा है. राष्ट्र जल विज्ञान संस्थान, रुड़की के हिमखंड विशेषज्ञ मनोहर अरोड़ा के अनुसार ''गंगा अपने पानी के लिए गौमुख ग्लेशियर पर पूरी तरह निर्भर नहीं है.'' पश्चिम बंगाल तक का ज्यादातर जलग्रहण क्षेत्र वर्षा से ही जल प्राप्त करता है. देवप्रयाग तक का भागीरथी बेसिन (20,000 वर्ग कि.मी.) कुल गंगा जलग्रहण क्षेत्र का 7 प्रतिशत है. गंगा के कुल वार्षिक बहाव का 48 प्रतिशत जल गंगोत्री से भागीरथी में व 29 प्रतिशत देवप्रयाग में गंगा से मिलता है. शेष वर्षा के जल से प्राप्त होता है.
डॉ. चंद्रशीला गुप्ता

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