उत्तर प्रदेश में जल की बर्बादी पर गठित ड्रेनेज समिति की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में जल की बर्बादी पर गठित ड्रेनेज समिति की रिपोर्ट काफी महत्व की है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित ड्रेनेज समिति ने लगभग 45 प्रतिशत वर्षा जल बर्बाद हो जाने का जो तथ्य सामने रखा वह आंखें खोलने वाला है, लेकिन इसमें संदेह है कि वे लोग चेतेंगे जिन पर जल संरक्षण की जिम्मेदारी है। यह पहली बार नहीं जब वर्षा जल को संचित न कर पाने तथा उसके नदियों में व्यर्थ बह जाने पर चिंता व्यक्त की गई हो। समय-समय पर इस तरह की चिंता एक लंबे समय से व्यक्त की जाती रही है, लेकिन अभी तक का अनुभव यह बताता है कि किसी भी स्तर पर ऐसे प्रयास नहीं किए जा सके जिससे वर्षा जल को व्यर्थ जाने से रोका जा सके। समस्या केवल यही नहीं है कि वर्षा जल संरक्षण के उपाय नहीं हो रहे, बल्कि यह भी है कि गिरते भूजल स्तर को ऊंचा उठाने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे। न केवल भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, बल्कि अनेक स्थानों पर उसे प्रदूषित भी किया जा रहा है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि बारिश के जल के संरक्षण की जिन योजनाओं पर कुछ काम भी हुआ था वे भी प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता के कारण उपेक्षित पड़ी हुई हैं।
समस्या इसलिए और अधिक गंभीर होती जा रही है, क्योंकि नहर, तालाब, पोखर और कुएं जैसे जल के जो परंपरागत स्त्रोत हैं उन्हें बचाए रखने के लिए कुछ ठोस होता हुआ नजर नहीं आता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नहर, तालाब और पोखर न केवल सूखते जा रहे हैं, बल्कि उन पर अतिक्रमण भी किया जा रहा है। यह आवश्यक है कि जल संरक्षण के जो भी उपाय सामने हैं उन पर एक साथ कार्य किया जाए। ऐसा करके ही पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ-साथ सिंचाई के साधन बढ़ाए जा सकते हैं और सूखे की समस्या का एक हद तक समाधान किया जा सकता है। फिलहाल यह कहना कठिन है कि राज्य सरकार ड्रेनेज समिति की सिफारिशों के अनुरूप ऐसा कुछ करेगी जिससे वर्षा जल की बर्बादी को रोका जा सके, लेकिन यदि वह वास्तव में जल संकट को समाप्त करने के प्रति गंभीर है तो उसे जल संरक्षण के उपायों को इस तरह अमल में लाना होगा जिससे बाढ़ और सूखे की समस्या का एक साथ समाधान किया जा सके।

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