बांध में ‘समस्याओं’ का भराव

Dinesh bhothra

जोधपुर. पिछले साल बाढ़ में अपनी 108 साल पुरानी दीवार को महफूज नहीं रख सका जसवंतसागर बांध अब चौतरफा समस्याओं से घिर गया है। जल ग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) में लगातार कमी और जलभराव क्षेत्र में बेलगाम नलकूपों की खुदाई से भंडारण क्षमता खो चुके इस बांध का पैंदा भी छलनी हो चुका है। यानि यह बुजुर्ग बांध अब जल भंडारण के काबिल नहीं रहा है।
रुड़की की नेशनल इंस्टीटच्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जसवंतसागर के हालात पर तैयार अंतरिम रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। राज्य सरकार ने पिछले साल इस इंस्टीटच्यूट को बांध में पानी नहीं ठहरने के कारणों की जांच सौंपी था। रिपोर्ट के अनुसार कैचमेंट एरिया 3,367 वर्गकिमी से घटकर 1,272 वर्गकिमी हो चुका है।
बारिश की कमी से वैसे ही बांध कम ही मौके पर भरता था। इस पर कैचमेंट एरिया कम होने का नुकसान यह हुआ है कि जिस मूल कैचमेंट में सामान्य से 12.8 एमएम पानी ज्यादा बरसने से बांध पूरा भर जाता था, अब कम कैचमेंट से इसे पूरा भरने के लिए 33.88 एमएम अधिक बारिश की जरूरत होगी।
आगाह किया था हमने

इस बांध का वजूद बचाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पीपी चौधरी कहते हैं,‘हम लंबे समय से सरकार को नलकूपों के कारण बांध के पैंदे को पहुंच रहे नुकसान के प्रति आगाह करते रहे हैं, लेकिन हमारी बात पर गौर नहीं किया गया।
>> जसवंतसागर स्टेट टाइम का बांध है और यह आस-पास के क्षेत्र में सिंचाई के लिए उपयोगी जलस्रोत रहा है। यह सही है कि जैसी स्थितियां यहां बनी हैं, उससे इसके जलभराव को नुकसान पहुंचा है। हम इस बांध के पुनरुद्धार की योजना बना रहे हैं। इस योजना पर अमल करने से पहले प्राप्त सुझावों पर भी गौर करेंगे।
एस.एन.थानवी, प्रमुख शासन सचिव, जल संसाधन विभाग
रिपोर्ट के खास बिंदुभराव क्षमता में कमी
जसवंतसागर बांध के कैचमेंट एरिया में मानवीय हस्तक्षेप और अन्य स्ट्रक्चरों का निर्माण होने से इसकी भंडारण और स्थिर भराव क्षमता में जबर्दस्त कमी आई है। भंडारण क्षमता में सबसे ज्यादा कमी सिल्ट जमा होने से आई है।
वर्ष 1958 की तुलना में बांध के अधिकतम सप्लाई लेवल 26.5 फुट के लिहाज से यह क्षमता 11 प्रतिशत कम हो चुकी है। अधिकतम सप्लाई लेवल पर इस वक्त भंडारण की अधिकतम क्षमता 1,286 एमसीएफटी है, जो पांच दशक पहले 1,442. 81 एमसीएफटी थी।
नियमित भराव नहीं
बांध के मूल कैचमेंट में करीब 62.2 प्रतिशत क्षेत्र में या तो स्मॉल स्ट्रक्चर बन गए हैं या अतिक्रमण हो चुके हैं। नतीजतन, नियमित भराव (फ्रिक्वेंसी ऑफ फिलिंग) में कमी आई है।
भूतल में खोखलापन : बांध के जलभराव क्षेत्र (रिजर्वायर) के भूतल की लाइमस्टोन फार्मेशन में खोखलापन बढ़ रहा है। इस कारण पैंदे पर पानी ज्यादा नहीं टिक पाता।
सतही मिट्टी भी धोखा देने लगी : जलभराव क्षेत्र के दक्षिणी हिस्से की जांच में यह भी सामने आया है कि यहां की मिट्टी में भी बहुत अधिक रिसाव (सीपेज) होने लगा है। यानी भराव क्षेत्र का पैंदा ही पानी जमा करने के लिहाज से सुरक्षित नहीं रहा।
नलकूपों ने हालत बिगाड़ी : पिछले 33 सालों में जलभराव क्षेत्र में खुदे 129 नलकूपों व कुओं ने बांध की हालत सबसे ज्यादा खस्ता की है। जैसे-जैसे नलकूपों की संख्या बढ़ती गई, सतही पानी को बचाना मुश्किल होता गया। इसके चलते सिंचाई और सतही पानी के उपयोग के लिए बने इस बांध का उपयोग केवल भूजल रिचार्ज स्ट्रक्चर के रूप में होने लग गया है।

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