भयावह होती जा रही है दिनोंदिन जल संकट की स्थिति

महोबा। जल संचयन की प्राचीन संस्कृति को तिलांजलि देने का ही नतीजा है कि अब बुंदेलखंड को पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। तालाबों और पोखरों को पाटकर लोगों ने मकान और भवन खड़े कर दिये। फल ये मिला कि रहने के लिए तो सुंदर घर है पर पीने के लिए पानी नहीं है। कई घरों में तो बोरिंग करा अंधाधुंध तरीके से पानी खींचा जा रहा है जो जलस्तर के लिए खतरा साबित हो रहा है।

बुन्देलखण्ड में सूखे के कारण पानी की समस्या होना लाजमी है पर सच यह है कि पानी की कमी एक बड़ी राष्ट्रीय समस्या के रूप में उभर कर सामने आ गई है। चार साल से वर्षा न होने से यहां हालात ज्यादा खराब हो गये है पर देश के ज्यादा तर हिस्सों में पानी की कमी महसूस की जाने लगी है। जल बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है और अब पानी का घोर अकाल हो रहा है। आने वाले समय में यह देश की सबसे बड़ी व विकराल समस्या होगी। इस बात को भूगर्भ वैज्ञानिक भी स्वीकार करते है। प्राकृतिक सम्पदाओं से परिपूर्ण इस देश या बुन्देलखण्ड में आखिर पानी की कमी कैसे हो गई। इस पर सेमिनार और राष्ट्रीय चिन्तन की आवश्यकता नहीं है। बड़ा सीधा सा कारण है हम परम्परागत जल स्त्रोतों का अनुरक्षण संरक्षण नहीं कर सके। घर बैठे आवश्यकता के मुताबिक पानी पाने के सुविधा भोगी प्रयास में हमने बोरिंग करा भूगर्भीय जल का दोहन शुरू कर दिया। यह चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हुआ हो या जल संस्थान व जल निगम की जलापूर्ति के जरिए। इन प्रयासों में हमने शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के परम्परागत व प्राचीन जल स्त्रोतों को तिलांजलि दे दी। पूर्व में हजारों ऐसे कुएं जिनमें चार-चार पम्पसेट लगाने के बाद भी उन्हें खाली कर पाना सम्भव नहीं हो पाया। महोबा मुख्यालय में एक दर्जन से ज्यादा बेहर थे। बेलाताल के धौंसा मंदिर का कुआं,बधउआ कुआं ऐसे जल स्त्रोत रहे है जो अकेले पूरे नगर की जलापूर्ति के लिये पर्याप्त से भी ज्यादा हुआ करते थे पर प्रशासनिक उपेक्षा और सुविधा भोगी समाज की अनदेखी से इनका अस्तित्व ही मिट गया है। यहां हजार साल पहले चंदेल शासकों द्वारा बनवाये गये तालाबों पर गौर करे तो जल संरक्षण की उनकी व्यवस्थित सोच की व्यापकता उजागर होती है। नगर के चारों ओर हजारों हेक्टेयर भूमि में तालाब पानी की सुविधा के साथ ही भूगर्भीय जल स्तर ठीक बनाये रखने की दृष्टि से ही बनवाये गये थे। आजादी के बाद अव्यवस्थित विकास और बेतुकी योजनाओं ने इन तालाबों में वर्षा जल आने के मार्ग ही अवरूद्घ कर दिये। और आज हालात बद से बदतर रूप अख्तियार करते जा रहे है। जल देने वाले तालाब,पोखर,कुएं सूख गये है और अब हैण्डपंपों ने भी जवाब देना शुरू कर दिया है।

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