नदियों में डाले जाएंगे खास तरह के सिक्के
नर्मदापुरम यहां नर्मदा और तवा नदियों के पवित्र संगम पर शनिवार से शुरू हुए पहले अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव की पूर्णाहुति बांद्राभान घोषणा पत्र के साथ हुई। खास बात यह रही कि महोत्सव के आयोजक नर्मदा समग्र न्यास ने घोषणा पत्र के चुनिंदा बिन्दुओं पर काम शुरू करने के लिए अपनी कार्ययोजना भी घोषित कर दी। इसका दिलचस्प पहलू यह है कि नदियों के प्रदूषण में कमी लाने के लिए उनमें धार्मिक श्रध्दावश डाले जाने वाले रुपए पैसे क आम सिक्कों की जगह लेने के लिए खास किस्म के सिक्के पेश किए जाएंगे। नर्मदा समग्र की ओर से आईआईटी, रूड़की के सहयोग से ऐसा सिक्का बनवाया गया है, जिसमें 96 फीसद तांबा और 4 फीसद चांदी है। मिश्रित धातु के ऐसे सिक्के अगले एक साल में देश की पांचवी सबसे बड़ी नर्मदा के सभी घाटों पर श्रध्दालुओं के लिए मुहैया करा दिए जाएंगे।
अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव के सूत्रधार और नर्मदा समग्र के न्यासी अनिल माधव दवे ने बताया कि नदियों में सिक्के डालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसके तहत पहले ताबें के सिक्के अर्पित किए जाते थे जो नद जल में प्रदूषण दूर कर उसे शुध्द करने का काम करते थे। बाद में ताबें की जगह ऐसी धातुओं के सिक्कों का चलन शुरू हो गया जो नदियों में प्रदूषण घटाने के बजाय इसमें इजाफा करते हैं। इस समस्या का समाधान खोजने के प्रयास करने पर आईआईटी, रूड़की के विशेषज्ञों ने 96 फीसद ताबें और 4 फीसद चांदी वाले सिक्के बनाने की विस्तृत योजना पेश की। विशेषज्ञों के मुताबिक ये सिक्के नदी में डालने पर पानी को साफ करने में मददगार साबित होंगे। नर्मदा समग्र ने ऐसे सिक्के तैयार कराए हैं। ये सिक्के अभी महंगे हैं इसलिए कोशिश हो जारी है कि एक सिक्का दो रुपए तक में बन जाए। नदी महोत्सव में देश-विदेश से आए सुधी जनों ने ऐसे सिक्के नर्मदा नदी को अर्पित भी किए।
नदियों की चिंता और उन पर काम करने वालों की ओर से यहां नदी तट पर बैठकर तैयार किए गए घोषणा पत्र में शासन, समाज और नागरिक संस्थाओं का ध्यान इन बिंदुओं की ओर खींचा गया है-
1- नदी औन जन के बीच प्रेम बढ़ाने की दिशा में काम हो। संस्कृति व परंपराओं को भूल जाने के कारण जब नदी और जन का यह प्रेम सूख जाता है, तब नदी सिर्फ जल स्रोत बनकर रह जाती है, जबकि यह प्रेम बढ़ने पर नदी मां बन जाती है।
2- हर नदी की अपनी जमीन, अपना प्रवाह और अपना विशिष्ट संसार होता है जो प्रशासनिक इकाइयों से स्वतंत्र रहता है। इसलिए नदी पर होने वाले अध्ययनों, कामों और प्रयत्नों की आधारभूमि नदी बेसिन को बनाया जाना चाहिए।
3- नदियों के प्रवाह पथ उनकी ओर से अनंतकाल तक किए गए अथक प्रयासों से बनते हैं। इन प्रवाह पथों को बचाने के लिए पिछली सदी के अधिकतम बाढ़ स्तर को नदी का किनारा माना जाए और इसे नदी के लिए छोड़ दिया जाए।
4- नदियों पर चिंतन व काम करने वालों और किसी भी रूप में नदियों के प्रति अनुराग रखने वाले सभी लोगों, समुदायों व संस्थाओं को एक विचार मंच पर लाने और एक दिशा में गतिमान करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नदी जनपद का गठन हो।
5- नदियों का अपना अर्थशास्त्र होता है। इसलिए उनकी बैंकिंग व्यवस्था विकसित होनी चाहिए। हर नदी का अपना खाता हो ताकि उसके संसाधनों के आमद खर्च पर नजर रखने के लिए संतुलन पत्र (बैलेंसशीट) बन सके। इसमें नदी की प्रत्यक्ष व परोक्ष आमदनी और खर्चों का समय समय पर आंकलन हो। इसके आधार पर नदी क्या था, क्या है और क्या होनी चाहिए।
6- नदियों के उद्गम और छोटी-छोटी शुरुआती जलधाराओं का स्वास्थ्य नदियों की दशा और दिशा सूयक है। इसलिए नदी उद्गम और प्रारंभिक व दूसरे चरण की जलधाराओं के संरक्षण के उल्लेखनीय प्रयासों को पुरस्कृत करने की व्यवस्था हो।
7- नदी जीवन के विविध पक्षों से जुड़े विषयों पर मैदानी शोध परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाए और
8- सहेली नदी तंत्रों पर काम करने वाले सुधी जनों के बीच ज्ञान, विचारों और अनुभवों के आदान-प्रदान के अवसर बढ़ाने के लिए कोई व्यवस्था बने।
इस घोषणा पत्र के अनुसर में नर्मदा समग्र न्यास ने अपनी कार्ययोजना घोषित की ह। इसके तहत देश की सात पवित्र नदियों में शुमार नर्मदा के किनारों को बचाने की पहल की जाएगी। इन नदी किनारों को फिर से हरियाली की चुनरी ओढ़ाई जाएगी। श्रध्दालु देवियों की तरह नदियों को भी कपड़े की लाल चुनरी चढ़ाते है। समर्थ श्रध्दालुओं को प्रेरित किया जाएगा कि उनमें से हर एक नर्मदा मैया के कम से कम दो सौ मीटर तक के किनारे को हरियाली चुनरी पहनाने के लिए आर्थिक योगदान दे। खुद वृक्षारोपण कर उसी सार संभाल में हाथ बंटाए। नर्मदा के सभी घाटों पर जल शुध्द करने वाले सिक्के मुहैया कराने के अलावा नर्मदा बेसिन में सराहनीय काम करने वालों को पुरस्कृत किया जाएगा। नर्मदा पर 25 किमी लंबाई तक सबसे अच्दा काम करने वाले कार्यकर्ता को सर्वाधिक राशि का ईनाम दिया जाएगा। सौ किमी तक और उसके बाद इससे अधिक लंबाई में नदी तंत्र पर काम करने वालों का भी अलग अलग पुरस्काराें से नवाजा जाएगा। नदी को कम से कम प्रदूषित करने वाले डिटरजेंट रहित साबुन भी घाटों पर उपलब्ध कराए जाएंगे। नर्मदा समग्र अगला अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव भी इस जगह 2010 में आयोजित करेगा।
महोत्सव के समापन समारोह में राज्यपाल बलराम जाखड़ का कहना था कि मानव जीवन की रक्षा तभी संभव है जब प्रकृति का पर्याप्त संरक्षण किया जाए। नदियां हमारी जीवनदायिनी मां हैं। उनकी रक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करना जरूरी है। तरक्की जरूरी है लेकिन प्रकृति के विनाश की कीमत पर विकास की प्रवृत्ति रोकी जानी चाहिए। उन्होंने र्प्यावरण संरक्षण और मानव कल्याण की दृष्टि से नदी महोत्सव के आयोजन को सराहनीय प्रयास बताया। संस्कृति व जनसंपर्क राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने घोषणा की कि उनका विभाग महोत्सव में विशेषज्ञों की ओर से पेश किए गए आलेखों व विचारों का संकलन कर उन्हें प्रकाशित कराएगा। इससे भविष्य के लिए एक दस्तावेज उपलब्ध हो सकेगा।
मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित जल कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने चेताया कि धधकता ब्रहम्मांड और बदलते मौसम नदियों पर आए संकट का सीधा दुष्परिणाम हैं। नदी राज, समाज व सृष्टि तीनों की है। पर सरकार, शहर और उद्योगरूपी लुटेरे इसबे सामने नदियों को ही लूटने-खसोटने में जुटे हैं। वे बात तो रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद बढ़ाने की करते हैं। पर क्या प्रकृति का विनाश किए बना विकास नहीं हो सकता? पूरा भारत मानता है कि पानी बाजार की चीज नहीं है। कुंभ की परंपरा नदियों की चिंता से उनमें सुधार से जुड़ी है। पर अब कुंभ मेलों में भी नदियों के शोषण, प्रदूषण व अतिक्रमण की रोकथाम की आवाज नहीं आती।