नहीं बिकेगा हीराकुंड का पानी - लिंगराज

पानी किसका है- ताल-तलैया और मेघ को आठो पहरन खेत में बुलाते पती किसान का या बहते पानी को बोतल में बंद करने और कारखानों की कालिख से काला करने वाली कंपनियों का? प्यासे कंठ और सूखी जमीन का या पानी को पेरकर पैसा निकालने वाले मुनाफाखोर कारोबारियों का? हीराकुंड बांध के पानी के अधिकार को लेकर इन सवालों ने एक आंदोलन का रूप ले लिया है। उड़ीसा से एक रिपोर्ट


छह नवम्बर को उड़ीसा के हीराकुंड बांध के समीप बांध के पानी पर अपने अधिकार की मुहर लगाने के लिए किसानों का एक अभूतपूर्व आंदोलन आयोजित किया गया। पश्चिम उड़ीसा कृषक संगठन समन्वय समिति के आह्वान पर आयोजित 'कानून तोड़ो आंदोलन में करीब 30 हजार किसानों ने हिस्सा लिया।
आंदोलन के अगले दिन राजनैतिक चालबाजी से भरे अपने बयान में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि किसानों का एक बूंद पानी उद्योगों को नहीं दिया जाएगा। उड़ीसा के तटीय इलाकों में बाढ़ नियंत्रण के मकसद से हीराकुंड बांध बना। उन इलाके के किसानों के लिए सिंचाई की व्यवस्था, पन बिजली और मछली उत्पादन भी अन्य मकसद थे। उद्योगों के लिए पानी मुहैया कराना कभी हीराकुंड बांध का उद्देश्य नहीं रहा। इस बांध के लए तब करीब 15 हजार परिवारों के लिए डेढ़ लाख लोगों को विस्थापित किया गया था। कुछ साल पहले सरकारी स्वीकारोक्ति के मुताबिक 3540 परिवारों को अब तक मुआवजा नहीं मिल सका है।
तय किया गया है कि रोजाना करीब 478 क्यूसेक्स पानी उद्योगों को दिया जाएगा। करार में शामिल प्रमुख कंपनियां हैं- भूषण स्टील कंपनी, वेदांत एल्युमिनियम कंपनी, आदित्य विरला की एल्युमिनिनयम कंपनी और ई थर्मल कंपनी।
एक क्यूसेक पानी से औसतल एक सौ एकड़ जमीन सिंचित होती है। करीब 50 हजार एकड़ जमीन की सिंचाई करके जितना पानी उद्योगों को देने का करार हुआ है। शुरू में सरकार ने बताया कि बांध का अतिरिक्त पानी उद्योगों ो दिया जाएगा। पहले बांध से 50 एकड़ जमीन को पानी मिलता था, जिसे बंद कर दिया । ऐसे में किसानों की मांग है कि अतिरिक्त पानी सबसे पहले उन जमीनों को मुहैया कराओ। सरकारी अध्ययन के मुताबिक 2002 तक हीराकुंड बांध का 27 प्रतिशत हिस्सा गाद (सिल्ट) से पट चुका है। महानदी के ऊपरी हिस्सों में छत्तीसगढ़ में पांच अन्य मझोले बांध बनने से हीराकुंड बांध की जल धारण क्षमता घटती जा रही है तथा सिंचाई सुविधा और बिजली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। ऐसे में उद्योगों को पानी देने का कदम आत्मघाती साबित होगा।
इस सवाल को लेकर 2006 के शुरू में इलाके के किसानों को सचेत और संगठित करने की प्रक्रिया 'पश्चिम उड़ीसा कृषक संगठन समन्वय समिति' के बैनर तले आरंभ हुई। सात अप्रैल 2006 को संबलपुर आर. डी. सी. कार्यालय के सामने करीब सात हजार किसानों ने प्रदर्शन किया। उसी साल 26 अक्तूबर को हीराकुंड बांध की गांधी मीनार से नेहरू पीलर तक के 18 किलो मीटर लंबे रास्ते पर बीस हजार किसानों की मानव श्रृंखला बनायी गयी। गांव-गांव से राज्य के मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन तथा पोस्टकार्ड भेजने की मुहिम भी चली। बीस जनवरी 2007 को बरगढ़ में बीस हजार किसानों के चेतावनी समावेश का आयोजन किया गया। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए गत छह नवम्बर को आंदोलन का आह्वान किया गया।
छह नवंबर को हीराकुंड बांध के प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश कर कानून तोड़ने (सिविल नाफरमानी) का एलान किया गया। आंदोलन में बड़ी संख्या में संबलपुर, बरगढ़ और सोनपुर जिला के प्रभावित किसान जमा हुए। उनके अलावा गंधमाइन सुरक्षा आंदोलन, नियमगिरि सुरक्षा आंदोलन, लोयर सुकतेत बांध विरोधी आंदोलन तथा कालाहांड़ी, नूआपड़ा लिागिर, झारसुगुड़ा जिलों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
पांच दिन बांद 11 नवंबर को कृषक संगठन समन्वय समिति की ओर से एक प्रतीकात्मक कदम और उठाया गया। पानी लेने के लिए वेदांत कंपनी द्वारा बिछायी जा रही पाइपलाइन जहां तक बन चुकी है वही पर किसानों ने ईंट की दीवार खड़ी कर दी और नाम दिया - 'किसानों की लक्ष्मण रेखा'। कंपनी इससे आगे पाइप बिछाने बढ़ेगी तो उसका प्रतिरोध होगा। किसानों की यह प्रतीकात्मक दीवार कंपनियों और सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गयी है।

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