नदी दोहन की मार झेलते छत्तीसगढ के गांव

:: छत्तीसगढ से तेजेन्द्र ताम्रकर ::
कुछ वर्ष पहले शिवनाथ नदी उस समय चर्चा में आ गई जब सरकार ने एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी को यह नदी लीज पर दी. नदी के २३.६ कि.मी का क्षेत्र इस कंपनी को अगले २२ वर्षों के लिये लीज पर दिया गया था पर असली मामला तब शुरू हुआ जब नदी के पानी के उपयोग को लेकर कम्पनी के कर्मचारियों और बांध के किनारे बसे मोहलाई गांव के लोगों के बीच झडप होने लगी.

गांव वालो के मुताबिक पहले तो इस कम्पनी की ओर से पानी का उपयोग नहीं करने के लिए नोटिस मिला और बाद में कंपनी के कर्मचारी नदी से लगे पम्प को निकालने गांव पहुंचे. नदी के २३.६ कि.मी. के क्षेत्र में २२ वर्ष के लिये मछुआरों के जाल भी काटे जाने लगे. ग्रामीणों के आक्रोशित होने और बाद में स्थानीय संगठन के सहयोग और हस्तक्षेप के बाद यह मसला पूरी तरह शंात हो गया . वर्तमान में बंाध के ऊपर की ओर बसे गांव महमरा और मोहलई के लोग नदी के पानी का भरपूर उपयोग कर रहे है. लेकिन हालात कल बदल सकते हैं. इसका डर गांव वालां को हमेशा सताता है.

छत्तीसगढ अपने परम्परागत जल स्रोतों जैसे छोटे-तालाब, डबरी, कुआं आदि के माध्यम से जल संग्रह के लिए जाना जाता है. यहां के गांवों म बहुत से छोटे-बडे तालाब देखे जा सकते है यहां तक कि कई गंाव में तो १०से १५ तालाब भी है. जिसका उपयोग खेती , पशु पालन , नहाने धोने और मछली पालन के लिये किया जाता ह. लकिन शिवनाथ नदी के किनारे बसे इन गांव की हालात ऐसी नहीं है. गांव वाले पानी के लिये पूरी तरह से नदी पर निर्भर करते हैं. नदी के पानी से ये लोग छोटे पैमाने पर तरबूज, खरबूज, पपीता, साग-भाजी आदि पैदा करने में सक्षम हो रहे हैं. पर यह स्थिति नीचे के गांव की नहीं है. मलौद और बेलौदी जैसे गांव में पानी के लिये हाहाकार मचा हुआ है. कुछ वर्ष पूर्व तक यहंा बडी मात्रा में अमरूद के बगीचे थे. पानी की कमी के कारण ये सब धीरे- धीरे सुखते जा रहे हैं. इस बारे में बेलौदी के सरपंच पति बताते हैं कि अमरूद गांव वालो के लिये आय का एक बहुत बडा स्त्रोत था. यहां के अमरूद आस पास के राज्य में भी जाते थे. पर अब इससे आय नहीं होती.

वैसे तो इंजीनियरों को कहना है कि शिवनाथ नदी के पानी को बांधने से फायदा गांव वालों को ही हुआ है. उनके अनुसार पहले पानी आगे की ओर बह जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. पर उनका यह भी कहना है कि ऐसा करने से पानी का पूरा दोहने खास जगहों पर ही होता है. जिससे नीचे के गांवो को पानी की दिक्कत का सामना करना पडता है.

साथ ही रसमडा मे उद्योगपतियों द्वारा नदी के आस पास का पूरा इलाका सरकार एवं किसानों से खरीद लिया गया है. इससे रसमडा के लोगो का नदी के पानी का उपयोग करना तो दूर,, नदी तक पहुंचना भी मुश्किल है. पूरे जगह को घेरे दिया गया है. रसमडा के ेग्रामीण खत के बिक जाने से खेती भी नही कर पा रहे है, पर्याप्त उद्योग नही लगने से रोजगार भी नहीं मिल रहा है. इन गांव मे केवट, निषाट ,ढीमर आदि मछुआरे जाति के लोग भी बहुत है और कुछ परिवार तो पूरी तरह से आजिवीका के लिए नदी पर ही निर्भर है. लेकिन अब धीरे -धीरे नदी के पानी मे कमी आने और पर्याप्त मछली नहीं मिलने के कारण अब ये लोग मेहनत मजदूरी के लिये गांव से पलायन कर रहे है.

स्थिति आज शायद गम्भीर नहीं है लेकिन अगर यह लगातार चलता रहा तो आने वाले समय में जरूर पानी की बहुत बडी समस्या उत्पन्न हो जायेगी. आश्र्च्य की बात है कि शिवनाथ नदी जैसा हाल छत्तीसगढ के बहुत सी नदियों का है लेकिन उस पर चिंता करने वाला कोई नहीं है.

(संवाद मंथन)
साभार- http://newswing.com/?p=645

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