रातों रात बिक गई नदी शिवनाथ

छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारियों ने कबीरदास की उलटबासियों को भी हकीकत का बाना पहना दिया है। कबीरदास ने उलटबासियों के माध्यम से समाज की विडंबनाओं पर प्रहार किया था। उनकी एक प्रसिध्द उलटबासी है एक अचंभा देखा रे भई, नदिया सारी जरी गई, मछली हो गई राख - शायद कबीरदास को यह नहीं मालूम था कि ज्ञान, चरित्र और एकता की बात करने वाली छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के अधिकारी उनकी इस दूर की कौड़ी को भी सच साबित कर दिखाएंगे। एक नदी को बेच दिए जाने के मामले मं छत्तीसगढ़ के प्रखर पत्रकार तपेश जैन की एक खास रिपोर्ट।

समूचे हिन्दुस्तान में यह पहली दुर्भाग्यजनक घटना होगी कि अतिरिक्त कमाई के लिए छत्तीसगढ़ की एक बड़ी सहायक नदी शिवनाथ को ही शासन को अंधेरे में रखकर रेड़ियस वाटर लिमिटेड़ को बेच दिया गया। फर्जी तरीके से अनुबंधित कंपनी को उद्योगों को पानी आपूर्ति के लिए पाँच करोड़ रुपए की लागत से निर्मित इटैंक वैल, ओण्हर हैड़ रैकं और बिछी पाइलाइन सहित 176 एकड़ जमीन, करीब दस करोड़ रुपए की परिसम्पतियाँ मात्र एक रूपए वार्षिक लीज पर 20 साल के लिए दे दी गई ।

भ्रष्ट्राचारियों की भूख इतने पर भी शांत नहीं हुई । आला अफसरों की शह पर फर्जी अनुबंध की कंपनी यानी कि रेडियस वाटर लिमिटेड़ ने नदी के तटवर्ती गाँववालों की करीब 42 हेक्टेयर ज़मीन पर कब्जा भी कर लिया और बोरई 42 हेक्टेयर ज़मीन पर कब्जा कर लिया और बोटई ग्राम के लिसानों के नैसर्गिक अधिकार पानी लेने और मछली मारने पर पूरी तरह रोक लगा दी । बोरई ग्राम के किसानों के नैसर्गिक अधिकार पर आक्रमण करते हुए पानी लेने और मत्स्याखेट पर पूरी तरह रोक लगा दी गई ।

बोरई और आसपास के गाँव वालों ने अखबारों की शिकायत पर मीडिया में जब यह मामला उछला तब छत्तीसगढ़ विधानसभा की लोक लेखा समिति ने संज्ञान लेते हुए इस मामले की जाँच पड़ताल का फैसला किया। नौ फरवरी 2003 को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले में जांच की अनुमति दी और कांग्रेस विधायक श्री रविंद्र चौबे सभापति नियुक्त हुए। वहीं इस समिति में विधायक श्री विजय अग्रवाल, श्री संजय ढ़ीड़ी, श्री सिद्धनाथ पैंकरा, श्री इंदर चोपड़ा, श्री लाल महेन्द्र सिंह टेकाम, डॉ. शक्राजीत नायक, श्री गणेश शंकर बाजपेयी, श्री भूपेश बघेल व विधानसभा सचिवालय के चार सदस्यों के साथ प्राक्कलन समिति के सभापति श्री कमलभान सिहं को रखते हुए विस्तृत जाँच की गई ।

अब जाँच समिति अर्थात् छत्तीसगढ़ विधानसभा लोक लेखा समिति के चौसठवां प्रतिवेदन जो 16 मार्च 2997 को विधानसभा में प्रस्तुत किया, में साफ तौर पर पाया गया है कि यह पूरे हिन्दुस्तान के लिए पहला मामला है जहाँ अधिकारियों ने भ्रष्टाचार की सीमा लाँघते हुए छत्तीसगढ़ की एक बड़ी सहायक नदी शिवनाथ को ही नियम विपरीत बेच दिया। यह कहानी उस समय की है जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में ही नहीं आया था और वह मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था । यह कारनामा कर दिखाया है - मध्यप्रदेश औद्योगिक केन्द्र विकास निगम रायपुर (एकेबीएन) ने।

प्रकृति को भी नहीं बख्सने वाले सौदागरों की कहानी कुछ इस तरह है - जल संसाधन विभाग से बिना अनुमति लिए एकेबीएन ने औद्यागिक केंद्र बोरई जिला दुर्ग के उद्योगों को पानी अपूर्ति के लिए एनीकट निर्माण की जरूरत बताते हुए 23 मई 1990 को टेण्डर का प्रकाशन किया, जिसमें( boot) बूट यानी बिल्ड ऑरटेट-ऑन-ट्रांसफर आधारित एनीकेट निर्माण हेतु निविदांए आमंत्रित की गई थी । इस टेण्डर के साथ ही भ्रष्टाचार का खेल शूरू हो गया। और सही मायनों में कहा जाए तो पूरी की पूरी प्रक्रिया ही संदेह के दायरे में थी। यह निष्कर्ष किसी शिकायत कर्ता की शिकायत नामा ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ विधानसभा (द्वितीय) की लोकलेखा समिति (2006-2007) की, जिसमें औद्यौगिक विकास केंद्र बोरई को जल प्रदाय परियोजना को बूट आधार पर निजी क्षेत्र में सौपें जाने के प्रकरण में पूर्णतः दोषी पाया गया है ।

330 पृष्ठीय जाँच रिपोर्ट के अनुसार इस प्रकरण की शुरुआत तब हुई जब दुर्ग जिले में स्थापित उद्योग मेसर्स एच. ई. जी. लिमिटेड द्वारा सन 1996 को एकवीएन से 25 लाख लीटर पानी प्रतिदिन प्रदान करने की मांग की गई तब निगम ने बताया कि निगम कंपनी को चाही गई मात्रा में पानी की आपूर्ति कर सकती है लेकिन गर्मी के मौसम में मुश्किल आयेगी । इस पानी आपूर्ति के लिए पर्याप्त पानी का भंडारण करना होगा और इसके लिए एनीकेट का निर्माण करना होगा जिसमें करीब साढ़ सात करोड़ रुपए लागत आयेगी। इस पर एच.ई.जी.लि. ने निगम को बोरई में संयुक्त उपक्रम में एनीकट निर्माण का प्रस्ताव दिया और राशि निवेश की सहमति भी दी ।

होना तो यह चाहिए था कि निगम मेसर्स एच-ई.जी.लि. की मांग आपूर्ति के लिए यह प्रस्ताव स्वीकृत कर लेता क्योंकि उसने करोड़ पांच करोड़ रुपए की लागत से उद्योगों को जल आपूर्ति हेतु राज्य शासन के चार करोड़ 39 लाख रूपए के अनुदान से इंटेकवेल, ओवर हेड़ टैंक और पाइप लाइन सहित आवश्यक अधोसंरचना विकसित कर ली थी और उद्योगों को 3.6 एम.एल.डी. पानी सामान्य मौसम में और 2.5 एम.एल. डी. लीज पीरियड़ में आपूर्ति किया जा रहा था। बाद में इसी अधोसंरचना को एकेवीएन ने मात्र एक रूपए लीज पर रेडियस वाटर को नियम विरूद्ध दे दिया जबकि इसके लिए शासन से अनुमति ली जानी चाहिए थी।

मेसर्स एच.ई.जी. लिमिटेड की जरूरत और सक्रियता को देखते हुए एकेवीएन के अधिकारियों को इसमें भ्रष्टाचार का खेल समय में आ गया और भ्रष्टाचार के इस खेल में वे भी शामिल हो गये । उन्होंने बूट के लिए निविदा आमंत्रित की उसमें भी एच.इ.जी.लि. को शतिराना तरीके से बाहर कर कैलाश इंजीनियरिगं कार्पोरेशन लि. राजनांदगांव की निविदा स्वीकृत की गई लेकिन 24 घंटे के भीतर ही निविदाकार कंपनी के स्थान पर एक पृथक कंपनी रेडियस वाटर लि. परिदृश्य में आ गई। लोक सेवा समिति ने इस अत्यंत आपत्तिजनक मानते हुए प्रक्रियाओं के विपरीत अवांछित लाभ पहुंचाने वाला आपराधिक कृत्य माना है। कैलाश इंजीनियरिगं कार्पोरेशन लिमिटेड़ ने बूट आधार पर एनीकट निर्माण के लिए स्वीकृत निविदा के अनुरूप अनुबंध करने के लिए एस.पी.व्ही. रेडियस वाटर लि. से अनुबंध करने का कोई प्रस्ताव भी नहीं दिया। अतः ऐसे में रेडियस वाटर से मध्यप्रदेश औद्यौगिक केन्द्र विकास निगम लि. ने कैसे अनुबंध किया यह रहस्यमय ही है।इसके लिए समिति ने एम.पी. एकेवीएन के तत्कालीन प्रबंध संचालक व आईएएस अधिकारी गणेश शंकर मिश्रा को शासन को अँधेरे में रखकर आपराधिक कृत्य करने का दोषी करार दिया है ।

जाँच रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रष्ट अधिकारियों ने रेडियस वाटर से माँग से ज्यादा न्यूनतम चार एम.एल. डी. पानी 12 रुपए 60 पैसे क्यूविक मीटर से खरीदने का अनुबंध सीधे-सीधे रेडियस वाटर को लाभ पहुँचाने के लिए किया गया है । इस प्रकाऱ अनुबंध तिथि को लगभग दस करोड़ रुपए की परिसम्पतियां रेडियस वाटर को नाम मात्र एक रुपए में 20 वर्ष के लिए प्रदान करके ये अधिकारी भ्रष्टाचार की नदी प्रवाहित करने लगे थे । इतना ही आसपास जाँच समिति को गांव वालों की 42 हेक्टेयर ज़मीन की अधिग्रहित कर रेडियस वाटर को सौंपे जाने का पत्राचार भी दृष्टव्य हुआ लेकिन एकेवीएन ने यह जमीन अधिग्रहित कर रेडियस वाटर को उपलब्ध करवाई या नहीं या जांच का विषय है, जिस पर समिति पूरी तरह से मौन है।

ज्ञातव्य हो कि छत्तीसगढ विधानसभा की लोक लेखा समिति यानी राज्य की सर्वोच्च जाँच समिति द्वारा पवित्र और लाखों किसानों की जीवन रेखा शिवनाथ नदी के सौदागर यानी श्री मिश्रा के खिलाफ़ अविलंब पुलिस कार्यवाही का आदेश भी छत्तीसगढ शासन को 3 माह पूर्व ही दिया जा चुका है । जिस पर अब तक कोई कार्यवाही करना तो दूर की बात है उल्टा उसे लगातार एक जिले से दूसरे जिले में कलेक्टर बनाकर हौसला आफ़जाई की जा रही है । राज्य शासन का यह चरित्र तो तब और भी प्रमाणित हो गया जब कुछ माह पहले उन्हें सबसे मलाईदार जिले अर्थात् बस्तर का कलेक्टर बनाया गया है।

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