भविष्य में प्यास से भी होंगी मौतें - संदीप

देश में भू-गर्भीय जल स्तर में गिरावट की खबरें हर कहीं से आ रही हैं। सरकार जल संचयन के कार्यक्रमों को बढ़ावा भी दे रही है। लोग समस्या के प्रति थोड़ा जागरूक हुए हैं किंतु आने वाले दिनों में खतरा बहुत बड़ा है। यदि जल उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 1000 घन मीटर से कम हो तो वहां जल का संकट माना जाता है। भारत में फिलहाल प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 1880 घन मीटर जल उपलब्ध है। 1951 में यह उपलब्धता 3450 घन मीटर थी लेकिन 2050 तक यह सिर्फ 780 घन मीटर रह जाएगी। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने जल की कमी से उत्पन्न संकट का निदान निकाला है- जल का निजीकरण। उनका मानना है कि यदि जल को एक उपभोक्ता या व्यावसायिक वस्तु माना जाए तो जल का संचयन हो सकेगा। यह सोच आम इंसान, जिसकी जीविका जमीन से जुड़ी रही है, के भू-गर्भ पर पारंपरिक अधिकार के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत कर रही है।
आराजीलाइन विकास खंड का एक गांव है मेहदीगंज जहां कोका कोला कंपनी ने अपना एक बॉटलिंग संयंत्र स्थापित किया हुआ है। यहां कोका कोला प्रतिदिन भू-गर्भ से 15 से 25 लाख लीटर तक पानी का दोहन करती है। हालांकि उसका खुद का दावा है कि वह सिर्फ 5 लाख लीटर पानी ही निकालती है। इंजीनियर-वैज्ञानिक वी. चंद्रिका द्वारा 2006 में इस कोका कोला संयंत्र से तीन कि.मी. की दूरी के अंदर स्थित आठ गांवों के सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ कि इनके कुओं का जल स्तर 1996 से 2006 के बीच 18 फीट से नीचे चला गया है जबकि इसके पिछले दशक (1986-1996) में यह गिरावट सिर्फ 1.6 फीट थी। कुछ गांवों में पिछले दशक जल स्तर की गिरावट सिर्फ 2.8 से 3.5 फीट तक की रही। उपर्युक्त आठ गांवों के क्षेत्र में 44 प्रतिशत कुएं या तो सूख चुके हैं अथवा सूखने के क्रम में हैं। 25 प्रतिशत कुएं तो 2000 के बाद सूखे, जब से कोका कोला संयंत्र काम कर रहा है।
जैसे-जैसे कुएं तथा तालाब सूखने लगे हैंडपम्प लगाने की दर में तेजी आई। कोका कोला का कहना है कि जल स्तर में गिरावट उसके क्रियाकलापों की वजह से नहीं बल्कि किसानों द्वारा अधिक नलकूप लगाकर पानी के अत्याधिक दोहन तथा ज्यादा सूखा पड़ने की वजह से हुई है। हकीकत यह है कि 1991 से 2000 के दशक में 1991 से 1993 तक सूखा पड़ा तथा 2000 के बाद से 2002 व 2004 में सूखा पड़ा। वर्ष 1991 से 2000 के बीच 15 नलकूप लगे तथा 2001 से 2006 तक 11 नलकूप लगे हैं। अत: कोका कोला संयंत्र लगने के बाद से पिछले दशक की तुलना में न तो सूखा ज्यादा पड़ा है और न ही नलकूपों को लगाने की दर में कोई तेजी आई है।
वी.चंद्रिका के सर्वेक्षण में 76 प्रतिशत लोगों का मानना था कि क्षेत्र में तेजी से गिरते जल स्तर के लिए कोका कोला ही जिम्मेदार है। पर यदि यह मान भी लें कि इसके लिए कोका कोला जिम्मेदार नहीं है तो भी यह देखते हुए कि आराजीलाइन विकास खंड को ‘डार्क एरिया’ घोषित किया गया है। यहां से पेयजल व सिंचाई को छोड़कर जल के व्यावसायिक दोहन पर रोक लगनी चाहिए। मेहदीगंज का किसान कहता है कि वह कोई कोका कोला पीकर जिंदा नहीं रह सकता। उसके जिंदा रहने के लिए जरूरी है कि उसकी सिंचाई की आवश्यकता को पूरी करने के लिए भू-गर्भ का संचित जल कोष उसके लिए सुरक्षित रहे। कोका कोला द्वारा उसके पानी की जा रही चोरी के खिलाफ मेहदीगंज व आस-पास के गांवों के किसानों ने 2003 से युवा नेता नंदलाल के नेतृत्व में जबरदस्त आंदोलन छेड़ रखा है। इस आंदोलन की गूंज कोका कोला की 19 अप्रैल 2005, 2006 व 2007 को अमेरिका में हुई शेयर धारकों की बैठक में सुनाई पड़ी जहां यह पूछा जा रहा है कि आखिर कोका कोला भारत के किसानों का पानी क्यों चोरी कर रही है?
इस समय भारत में कोका कोला व पेप्सी कोला के 90 संयंत्र अंधाधुंध भू-गर्भ जल संसाधन का दोहन कर रहे हैं। इसमें से मात्र एक-केरल के प्लाचीमाडा में स्थित कोका कोला का संयंत्र जन आंदोलन के दबाव में बंद हो पाया है। शेष जगह बोतलबंद पानी व शीतल पेय उघोग जल के लिए बड़ा खतरा बने हुए हैं। मध्य प्रदेश औघोगिक केंद्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य औघोगिक विकास निगम) ने गैर कानूनी तरीके से राज्य की एक नदी शिवनाथ के 23 किमी. का हिस्सा एक अनुबंध व लीज-डीड के तहत रायपुर की एक निजी कंपनी रेडियस वाटर कंपनी को सौंप दिया था। कंपनी ने नदी को कंटीले तारों से घेरकर वहां एक सूचना लगाकर आम लोगों द्वारा अपनी दैनिक जरूरतों के लिए नदी के पानी का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। शिवनाथ नदी के पानी पर अधिकार एक निजी कंपनी को सौंपे जाने के विरूद्ध राष्ट्रीय स्तर पर एक जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई जिसके बाद छत्तीसगढ़ की सरकार को इस प्रकरण की जांच करानी पड़ी। 16 मार्च 2007 को छत्तीसगढ़ विधानसभा में लोक लेखा समिति 2006-07 द्वारा ‘औघोगिक विकास केंद्र बोरई की जल प्रदाय परियोजना को बूट आधार पर निजी क्षेत्र में सौंपे जाने के प्रकरण की जांच’ प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। इसमें अनुबंध व लीज डीड को निरस्त करते हुए समस्त परिसम्पत्तियों व जल प्रदाय योजना की अधिपत्य छत्तीसगढ़ राज्य औघोगिक विकास निगम द्वारा वापस ले लिए जाने की सिफारिश की गई है। साथ ही निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालकों व मुख्य अभियंता और रेडियस वाटर कंपनी के मुख्य पदाधिकारी के विरूद्ध आपराधिक षड्यंत्र करके शासन को हानि पहुंचाने के मामले में जुर्म दर्ज कराने की संस्तुति भी है। दिल्ली जल बोर्ड द्वारा विश्व बैंक के दबाव में दिल्ली में जल आपूर्ति को निजी क्षेत्र में सौंपे जाने की दिशा में उठाए गए कदम तथा गैर कानूनी तरीके से अमेरिका की कंपनी प्राइस वाटर हाउस कूपर को ठेका दिए जाने की कोशिशों का भंडाफोड़ हो ही चुका है।
यह बात बहुत साफ है कि पानी के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई है तथा दुनिया की बड़ी कंपनियों की नजर जल संसाधन पर लगी हुई है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संसाधन सरकारों पर पानी के निजीकरण को तेज करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। यदि पानी का निजीकरण होता है तो सबसे बड़ा खतरा आम गरीब इंसान को है। जैसे-जैसे भू-गर्भ में संचित जल भंडार कम होता जाएगा, ठीक पेट्रोलियम के सीमित होते भंडारों की तरह, पानी की कीमत बढ़ती जाएगी। फिलहाल बोतलबंद पानी की कीमत दूध की कीमत से ज्यादा है। यदि पानी की कीमत भी दिनों-दिन बढ़ती गई तो आम इंसान के लिए पानी नहीं उपलब्ध रहेगा। जिस तरह आज भारतीय खाघ निगम के गोदामों में अनाज रहते हुए भी भूख से मौतें हो जाती हैं, वैसे ही पानी रहते हुए भी लोग प्यास से मरेंगे?

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