नदियों का नया ठेकेदार-कोका-कोला


कोका-कोला के संचालक नदी और पर्यावरण की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं. उन्होंने भी घोषणा कर दी कि वे अपनी पर्यावरण सोच में भारत को भी शामिल कर रहे हैं. अखबार लिखता है - "कोका-कोला ने देश में कुल 18 परियोजनाओं पर काम शुरू करने की घोषणा की है लेकिन अभी यह खुलासा नहीं किया है कि इस पर कितनी राशि खर्च आयेगी."

कोका-कोला को अगर भारतीय नदियों की चिंता हो जाए तो हमें चिंतित होने की जरूरत है. पानी का सबसे अधिक दुरूपयोग करनेवालों में कोका-कोला अव्वल है. कोक ऐसा पेय है जो बनने में प्रति बाटल 20 लीटर पानी बर्बाद करता है और शरीर में जाने के बाद हजम होने के लिए नौ-गुणा पानी बर्बाद करता है. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि कि आप आधा लीटर कोक-पेप्सी पीते हैं तो शरीर उसके कारण शरीर में पैदा हुए प्रदूषण को साफ करने के लिए साढ़े चार लीटर पानी खर्च करना पड़ता है. अगर एक सामान्य दिन में आप पांच लीटर पानी पीते हैं तो एक लीटर कोक-पेप्सी पीने के बाद 9 लीटर अतिरिक्त पानी पीना चाहिए. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो वह शरीर में विकार और मोटापे के रूप में इकट्ठा होता है और आगे चलकर आपके शरीर में तरह-तरह के रोग पैदा करता है.
ऐसा "ठंडा पेय" बनाने वाली कंपनी कह रही है कि उसे नदियों की चिंता है. पर्यावरण की चिंता है. पिछले अध्ययनों की चर्चा न करते हुए 3 जून को आयी एक रिपोर्ट के बारे में आपको बताता हूं. अमेरिका में एक भारतीय व्यक्ति कोका-कोला के खिलाफ अभियान चलाते हैं. उनकी संस्था का नाम है- इंडिया रिसोर्स सेंटर. उसका एक दल 3 जून को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में सिन्हाचंवर गया था. सिन्हांचवर में वृंदावन बाटलर्स कोक के लिए बाटलिंग करता है. कोक के इस बाटलिंग प्लांट के कारण इलाके में पानी की समस्या पैदा हो गयी है. गंगा के किनारे होने के बावजूद भू-जल का स्तर गिरा है और हैंडपम्पों में पानी नदारद है. कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब कोका-कोला के बाटलिंग प्लांट की महिमा है. खेतों में पानी साल-भर लगा रहता है जिसके कारण खेती भी बर्बाद हो रही है.
कोका-कोला, पेप्सी और इनके जैसी बेवरेज कंपनियां पानी की दुश्मन हैं. अगर इनका उत्पादन रोक दिया जाए तो पानी भी बचेगा औऱ पर्यावरण भी. बाकी ये लोग जो कुछ भी करें बहकावे की बात है.
साभार- विस्फोट

Hindi India Water Portal

Issues