कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से जलाशयों, कुओ, नलकूपों का पानी प्रदूषित होने लगा है

पंजाब का मालवा क्षेत्र, जिसके संदर्भ में कभी मखोन मीठा मालवा (शहद से भी मीठा) शब्द का इस्तेमाल किया जाता था, आज कई पारिस्थितिकीय और स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं की चपेट में है। मालवा क्षेत्र में कृषि उत्पादकता बढ़ाने की बेलगाम होड़ के कारण उर्वरकों और कीटनाशकों का इस कदर इस्तेमाल हुआ कि वहां लोगों की सेहत खतरे में पड़ गयी है।

लोग कैंसर, किडनी की बीमारी और नपुंसकता आदि की चपेट में आते जा रहे हैं वहीं इस इलाके का पारिस्थितिकीय संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है। 70 के दशक में इस इलाके में कृषि क्रांति ने इस कदर जोर पकड़ा कि किसान खेती में हद से ज्यादा कीटनाशकों और उर्वरकों की भूमिका पर अधिक जोर देने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि यहां उपजने वाले अनाज स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो गए। आज यहां बच्चों के भी बाल असमय सफेद होने लगे हैं। वहीं जलाशयों, कुओं, नलकूपों का पानी प्रदूषित होने लगा है। खेती विरासत मिशन नामक एक गैर सरकारी संगठन के मुताबिक यहां पानी, खान-पान और वायुमंडल सभी पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का असर देखा जा सकता है।

इसके प्रमुख उमेन्द्र दत्त ने आईएएनएस से बातचीत करते हुए कहा कि पंजाब वाकई खतरे में है। जब आप गांव का दौरा करेंगे तो आपको पारिस्थितिकीय असंतुलन के दुष्परिणाम नजर आएंगे। मालवा क्षेत्र में 9 से 10 वर्ष के लड़के लड़कियों के बाल सफेद हो रहे हैं और कई लोग असमय बूढ़े नजर आने लगे हैं। प्रत्येक गांव में आपको कैंसर के 5 से 10 मरीज मिल जाएंगे। वहीं कई लोग किडनी के मरीज बन गए हैं। उन्होंने बताया कि यहां के जलाशयों में टोटल डिजॉल्ट साल्ट (टीडीएस) की मात्रा काफी बढ़ गयी है। ऐसे में पानी में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि मालवा क्षेत्र में आने वाले लुधियाना, बरनाला, संगरूर आदि में ऐसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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