गंगा : विनाश की ओर

श्रद्धालुओं का एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जो यह मानता है कि गंगा एक अलौकिक नदी है जिसका पानी कभी गंदा नही हो सकता है. यह सच है कि हिन्दू धर्म में गंगा का बहुत महत्व है. और हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए गंगा का महत्व माँ के जितना है, तभी इसे श्रद्धा से गंगा मैया पुकारा जाता है.

गंगा भारत की सबसे बडी नदियों मे से एक और निर्विवाद रूप से सबसे प्रसिद्ध और श्रद्धा की दृष्टि से सबसे पवित्र नदी है. लेकिन दुखद बात यह है कि गंगा सबसे प्रदूषित नदियों में से भी एक है. गंगा हिमालय की चोटी से निकल कर मैदानों के रास्ते बंगाल की खाडी में मिल जाती है. यह अन्य नदियों की तरह ही एक लंबी परंतु सामान्य नदी है. इसका पानी अलौकिक नही है.

हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं को मिलाकर कर बनने वाला पानी प्राकृतिक रूप से कभी भी बिगड नही सकता है. लिबीया जैसा कई अफ्रीकी देश सहारा के भूगर्भ में हजारों साल से दबे रहे पानी को निकालकर इस्तेमाल में ला रहे हैं. यानि कि जब तक पानी मे कोई अशुद्धि ना मिलाई जाए वह शुद्ध ही रहता है. गंगा का पानी भी शुद्ध तभी तक रहता है जब तक कि उसमें कुडा, मल मूत्र, गन्दगी और रसायानिक अम्ल ना मिला दिया जाए.

आज तेजी से फैल रहे प्रदूषण ने गंगा की सूरत बिगाड दी है. रसायन बनाने वाले कारखानों, चमडा फ़ैक्टरियों, कागज मिलों का 2 करोड 90 लाख लिटर प्रदूषित पानी हर दिन गंगा में मिल रहा है. रोज तकरीबन 60000 लोग गंगा स्नान कर रहे हैं. इसके अलावा इसे माँ की तरह मानने वाले और पूजने वाले इसके भक्त जन ही वाराणासी और इलाहाबाद के संगम पर इसे प्रदूषित करने में कोई कसर नही छोड रहे.
कुछ लोग तो शवों का अग्निसंस्कार करने की बजाय उसे युँ ही गंगा में बहा देते हैं. इसके अलावा मूर्तियां, फूलपत्रियाँ, दिए आदि लाखों की संख्या में गंगा मे बहाए जा रहे हैं.

गंगा लगातार प्रदूषित होती जा रही है. राज्य सरकारें हों या केन्द्र सरकारें, वे अनेक योजनाएँ बनाती हैं जो कागज़ों मे ही रह जाती है. सरकार की वोटबेंक की राजनीति और श्रद्धालुओं की घोर लापरवाही देश की इस पवित्र और श्रद्धेय नदी को विनाश की ओर ले जा रही है.
साभार- http://www.tarakash.com/Environment/ganga-river-pollution.html

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