क्या गंगा बनेगी सदानीरा ?

शिवकान्त
गंगा के बिना उत्तर भारत की सभ्यता और संस्कृति की कल्पना कर पाना भी असंभव है. करोड़ों लोग इस नदी को पवित्रता और निर्मलता की कसौटी मानते हैं.उत्तर भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर और उद्योग गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे हैं और यही उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप साबित हो रहा है.

बढ़ता प्रदूषण
गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के पूर्व जनरल मैनेजर धर्मवीर सिंह गुप्ता गंगा के कानपुर से बनारस तक के हिस्से में बढ़ते प्रदूषण को लेकर काफ़ी चिंता ज़ाहिर करते हैं.ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे परमाणु बिजलीघर से लेकर रासायनिक खाद तक के कारख़ाने लगे हैं. कानपुर का जाजमऊ इलाक़ा अपने चमड़ा उद्योग के लिए मशहूर है. यहाँ तक आते-आते गंगा का पानी इतना गंदा हो जाता है कि उसमें डुबकी लगाना तो दूर, वहाँ खड़े होकर साँस तक नहीं ली जा सकती. गंगा की इसी दशा को देख कर मशहूर वकील और मैगसेसे पुरस्कार विजेता एमसी मेहता ने 1985 में गंगा के किनारे लगे कारख़ानों और शहरों से निकलने वाली गंदगी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. फिर सरकार ने गंगा सफ़ाई का बीड़ा उठाया और गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत हुई. इस योजना की बदौलत गंगा के किनारे बसे शहरों और कारख़ानों में गंदे और जहरीले पानी को साफ़ करने के प्लांट लगाए गए.
इनसे गंगा के पानी में थोड़ा सुधार ज़रूर हुआ लेकिन गंगा में गंदगी का गिरना बदस्तूर जारी रहा.अपनी जिंदगी का ज़्यादातर हिस्सा गंगा में गुज़ारने वाले पटना के मछुआरे पूर्णमासी सैनी से बेहतर इस बात को और कौन जान सकता है.उन्होंने बताया, "क्या साफ़ हुआ? लाशें वैसी ही पड़ी रहती हैं, गंदे नाले नदी में वैसे ही गिरते रहते हैं. लोग पाखाना करते ही रहते हैं."

ख़ामी

गंगा एक्शन प्लान की सबसे बड़ी ख़ामी शायद ये थी कि उसमें गंगा के बहाव को बढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. गंगा में ग्लेशियरों और झरनों से आने वाले पानी को तो कानपुर से पहले ही नहरों में निकाल लिया जाता है. ज़मीन का पानी गंगा की धारा बनाए रखता था लेकिन नंगे पहाड़ों से कट कर आने वाली मिट्टी ने गंगा की गहराई कम करके अब इस स्रोत को भी बंद कर दिया है. बनारस के 'स्वच्छ गंगा अभियान' के संचालक प्रोफ़ेसर वीरभद्र मिश्र इस बारे में चिंतित हैं और बताते हैं कि गंगा पर कितना दबाव है. उन्होंने कहा कि गंगा दुनिया की एकमात्र नदी है जिस पर चालीस करोड़ लोगों का अस्तित्व निर्भर है. इसलिए उस पर दबाव भी ज़्यादा है. लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि गंगा को बचाने के लिए सबसे पहले हिमालय के ग्लेशियरों को बचाना होगा.

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