नदियाँ जोड़ने पर पर्यावरणवादी चिंतित

उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश ने केन और बेतवा को जोड़ने के लिए समझौता किया है
पर्यावरणविदों ने केन और बेतवा नदियों को जोड़ने के समझौते पर यह कहते हुए चिंता ज़ाहिर की है कि इससे किसानों को तो नहीं लेकिन नेताओं को ज़रूर लाभ होगा. अनेक पर्यावरणविदों ने देश भर की सभी नदियों को आपस में जोड़ने की योजना का विरोध भी किया है.
उनका मानना है कि यह परियोजना न केवल अव्यावहारिक है बल्कि इससे पानी की समस्या घटने के बजाय बढेगी और राज्यों के बीच पानी को लेकर होने वाले झगड़े बढ़ेंगे.

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का कहना है कि केन और बेतवा को लेकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों के बीच समझौता चिंता का विषय है.
अनुपम मिश्र का कहना है कि राजस्थान, हरियाणा और पंजाब का उदाहरण हमारे सामने है. इन राज्यों के बीच पानी को लेकर कितना झंझट है. दो राज्यों में एक ही दल की सरकारें हैं तब भी कटुता गई नहीं है. उनका कहना है कि नदी जोड़ने का काम प्रकृति का है. जहाँ दो नदियाँ जुड़ती हैं, वह तीर्थस्थल बन जाता है. अब दो नदियों को नहर से जोड़ने की कोशिश की जाएगी.
मिश्र का मानना है कि इससे किसानों को कोई लाभ नहीं होगा पर नेताओँ और बाबूओं को ज़रूर लाभ होगा. इससे अनेक गाँव डूबेंगे, वनों को नुक़सान पहुँचेगा और दलदल उत्पन्न होगा.
अनुपम मिश्र का कहना है कि जल्द ही उत्तर प्रदेश के किसान इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते नज़र आएँगे.

अवैज्ञानिक
नदियों को जोड़ने की परियोजना पर शोध कर चुके पर्यावरणविद डॉ अरुण कुमार सिंह का कहना है, "नदियों को जोड़ने की परियोजना एकदम अवैज्ञानिक है और इसे देश की नौकरशाही ने तैयार किया है."
वह पूछते हैं कि नदियाँ प्राकृतिक रुप से अपनी धाराएँ बदलती रहती हैं और ऐसे में किसी एक बिंदु से किसी दूसरे नदी को जोड़ना कितना व्यवहारिक होगा?
वह इसके लिए कोसी नदी का उदाहरण देते हैं जो पिछले 100 सालों में कई किलोमीटर मार्ग बदल चुकी है.
डॉक्टर अरुण कुमार सिंह कहते हैं, "इससे देश में पानी की समस्या बिल्कुल भी हल होने वाली नहीं है. पानी की समस्या का हल वास्तव में समुचित जल प्रबंधन है." उनका मत है कि जितनी राशि नदियों को जोड़ने में ख़र्च की जानी है उतने में बारिश का पानी रोकने और नदियों और तालाबों को बचाने में ख़र्च की जाए तो पानी की समस्या हल हो जाएगी.

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