‘सरस्वती’ न बन जाए ‘गंगा’ - मुकेश कुमार

यदि ग्लोबल वामग से इसी प्रकार पृथ्वी का तापमान बढ़ता रहा तो बहुत जल्द सरस्वती की तर्ज पर गंगा भी लुप्त हो गंगा मात्र जलधारा नहीं वरन् भारतीय संस्कृति की आत्मा है, उसके बिना भारतवर्ष की कल्पना संभव नहीं है। गंगा आज प्रदूषण के अत्यंत भयावह दौर से गुजर रही है। यदि पृथ्वी का तापमान इसी तरह बढता रहा तो गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और गंगा भी इतिहास के पन्नों में उसी प्रकार सिमट कर रह जाएगी जैसे सरस्वती।पृथ्वी के तापमान में निरंतर होती वृद्वि से गंगा बेसिन क्षेत्र के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। गंगोत्री से कुछ किमी पैदल दूरी पर गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर निरंतर पीछे खिसक रहा है। ताजा आकड़े के अनुसार वर्ष 1990 से लेकर 2006 तक गोमुख ग्लेशियर 22.8 हेक्टेयर पीछे खिसका है। इंटरनेशनल कमीशन फार स्नो एण्ड आइस के एक समूह द्वारा हिमालय स्थित ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार आने वाले 50 वषा में मध्य हिमालय के तकरीबन 15 हिमखंड पिघलकर समाप्त हो जाएंगे। गोमुख ग्लेशियर पर अध्ययन से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कुछ चौकानें वाले तथ्य सामने आए।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1935 से 1956 तक गोमुख ग्लेशियर 5.25 हेक्टेयर, 1952 से 1965 तक 3.65 हे., 1962 से 1971तक 12 हे., 1977 से लेकर 1990 तक 19.6 हे. पिघलकर समाप्त हुआ है। वर्ष 1962 से 2006 तक गोमुख ग्लेशियर डेढ़ किमी. पिघला है।भूगर्भीय सर्वे आफ इंडिया, रिमोट सेंसिग एप्लीकेशन सेंटर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविघालय आदि संस्थानो के द्वारा किये गये अध्ययन से स्पष्ट है कि पृथ्वी का तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 25 से 30 मीटर पीछे खिसक चुका है। यदि यही स्थित रही तो 2035 तक ग्लेशियर पिघलकर समाप्त हो जायेगा। समुद्र तल से 12,770 फीट एवं 3770 मीटर ऊचाई पर स्थित गोमुख ग्लेशियर 2.5 किमी चौड़ा व 27 किमी लम्बा है, जबकि कुछ साल पहले गोमुख ग्लेशियर 32 किमी लम्बा व 4 किमी चौडा था।गोमुख ग्लेशियर पिघलने से गंगा बेसिन के क्षेत्र उत्तारांचल, बिहार, उत्तार प्रदेश का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। गोमुख क्षेत्र में लोगों का हजारों की संख्या में पहुंचना भी एक हद तक ग्लेशियर को नुकसान पहुंचा रहा है। यदि ग्लेशियर पर पर्वतारोही दलों के अभ्यास को बंद करने के साथ ही ग्लेशियर पर चढ़ने की सख्त पाबंदी लगा दी जाए तो काफी तक गोमुख ग्लेशियर की उम्र बढ़ सकती है।जिस प्रकार हमारे वेदों और अनेक ग्रंथों में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है उससे यह साबित होता है कि सरस्वती का कोई अस्तित्व था। पूर्णतया भूगर्भ में समा चुकी सरस्वती को फिर से पुर्नजीवित करने के प्रयास केंद्र सरकार का द्वारा किए जा रहे हैं पर इन प्रयासों को कितनी सफलता मिल पायेगी यह कहना अभी मुश्किल है। भविष्य में सरस्वती की ही तरह गंगा के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह न लगाये जाएं इसलिए आवश्यक है गंगा को हर खतरे से बचाए रखना।
साभार- http://kaalchakraa.blogspot.com

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