चेरापूंजी में पानी नहीं

चेरापूंची में पानी का इंतज़ाम अच्छी ख़ासी मेहनत का काम है

चेरापूंजी से सुबीर भौमिक
भारत सरकार ने 1972 में असम राज्य से ख़ासी पहाड़ को अलग कर उसे गारो पहाड़ी से जोड़कर एक नया राज्य बनाया तो सवाल उठा कि नए राज्य का नाम क्या हो ? आख़िर भारत सरकार ने नए राज्य का नाम दिया- मेघालय- यानी बादलों का घर.
कारण साफ़ था- चेरापूंजी - जो तब तक दुनिया भर में अपने बादल और बरसात के कारण प्रसिद्ध हो चुका था. वर्ष 1860 के अगस्त महीने से 1861 के जुलाई महीने तक, यानी पूरे बारह महीनों में चेरापूंजी में 1042 ईंच बारिश हुई. पूरी दुनिया में एक साल में इससे ज़्यादा बारिश कभी नहीं हुई थी और यही वजह थी कि चेरापूंजी को प्रतिष्ठित गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में जगह दी गई.

मगर आज स्थिति बदल चुकी है.
1861 के सिर्फ़ एक महीने में जितनी बारिश हुई थी, वर्ष 2001 के पूरे साल में भी उतनी बारिश नहीं हो पाई. चेरापूंजी में बारिश साल-दर-साल कम होती जा रही है.
कटते पेड़
मेघालय की राजधानी शिलाँग में मौसम विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय के प्रमुख एससी साहू बताते हैं कि चेरापूंजी के आस-पास के जंगलों में पेड़ों की कटाई एक ख़तरनाक रूप ले चुकी है.एससी साहू कहते हैं," चेरापूंजी में पेड़ों की कटाई और बारिश में कमी दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं ".
चेरापूंजी में ही भूमि संरक्षण के लिए काम करनेवाली एक ग़ैर-सरकारी संस्था के प्रमुख बीए मार्क वेस्ट कहते हैं कि मेघालय राज्य के गठन के बाद से ही चेरापूंजी के आस-पास पेड़ों की कटाई बढ़ती गई. वो कहते हैं," मैं समझता हूँ कि पिछले दस वर्षों में यहाँ के जंगलों में 40 फ़ीसदी की कमी आई है".

किल्लत
चेरापूंजी में ख़ासतौर से सर्दी और गर्मी के महीनों में, जब बारिश बिल्कुल नहीं होती, लोगों को पानी की भीषण समस्या से जूझना पड़ता है. आम लोगों को झरने का पानी लाने के लिए ऊँचे पहाड़ों से उतरना पड़ता है. पानी बिकने की भी नौबत आ जाती है और लोग ट्रक में रखे ड्रमों में झरने का पानी रख उसे बेचते हैं.
शहर के एक शिक्षक जूलिया खारखोंगर कहते हैं, "हमें एक बाल्टी पानी के लिए छह से सात रूपए देने पड़ते हैं." फ़िलहाल एक ग़ैरसरकारी संस्था एक ऐसी परियोजना पर काम कर रही है जिससे बरसात ना होनेवाले मौसम में झरने के पानी को शहर तक ले जाया जा सके.

बढ़ती आबादी
चेरापूंजी के आस-पास पेड़ कम होते जा रहे हैं1960 में चेरापूंजी में लगभग सात हज़ार लोग रहा करते थे.लेकिन आज ये आबादी पंद्रह गुना बढ़ चुकी है. बीए मार्क वेस्ट कहते हैं, "आबादी बढ़ने का मतलब ये है कि यहाँ के वनक्षेत्र पर निरंतर दबाव बढ़ रहा है." कोई बीस साल पहले चेरापूंजी के निकट एक सीमेंट कारखाना खुला जिसके बाद यहाँ आबादी और बढ़ती गई. और साथ ही प्रदूषण में भी तेज़ी आई.

पर्यटन को ख़तरा
चेरापूंजी बरसों से पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है और यहां के बादल, बरसात और सूर्योदय इस आकर्षण का केंद्र रहे हैं.एक और आकर्षण नोकिलिकाइ झरने का भी रहा है. बादल घटते जा रहे हैं और अब स्थिति ये है कि दूर एक कैफ़े से भी इस झरने को आराम से देखा जा सकता है. इस कैफ़े के मालिक जॉन नोनग्रम कहते हैं, " बरसात कम हुई और वन घटते गए तो चेरापूंजी का आकर्षण ही ख़त्म हो जाएगा." यहाँ पर्यटन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कमल लोचना दास कहते हैं कि मेघालय में चरापूंजी समेत अन्य दर्शनीय स्थलों को मिलाकर इस इलाके में पर्यटकों के लिए एक बढ़िया कार्यक्रम बनाया जा सकता है.
मगर उनका कहना है कि इसके लिए ज़रूरी है कि चेरापूंजी के उस वातावरण को बनाए रखा जाए जो उसकी पहचान है.
साभार- बीबीसी हिन्दी

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