अपने होने का असर दिखाता पानी - डा. महेश परिमल

पानी ने अपने होने का असर दिखाना शुरू कर दिया है। अभी तो गली-मोहल्लों से केवल झगड़े के स्वर ही सुनाई दे रहे है। निकट भविष्य में यह स्थिति भयावह होगी, इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता। पानी अभी भी हमारे लिए राशन जितना महत्वपूर्ण नहीं हो पाया है, लेकिन जब यही पानी पेट्रोल से भी महँगा मिलेगा, तब शायद हमें समझ में आएगा कि सचमुच यह पानी को हमारे चेहरे का पानी उतारने वाला सिध्द हुआ।

हमारे देखते-देखते ही पानी निजी हाथों में पहुँचने लगा। पानी का निजीकरण पहले यह बात हम सपने में भी नहीं सोच पाते थे, लेकिन आज जब सड़कों के किनारे पानी की खाली बोतलें, पॉलीथीन आदि देखते हैं, तब समझ में आता है कि यह पानी तो सचमुच कितना महँगा हो रहा है। लोग तो अब यह भी कहने से नहीं चूक रहे हैं कि निश्चित ही अगला विश्वयुध्द पानी के कारण लड़ा जाएगा। विश्व युध्द की बात छोड़ भी दें, तो यह कहा ही जा सकता है कि पाकिस्तान से यदि युध्द हुआ तो उसका एक प्रमुख कारण यह पानी ही होगा।

हमारे मध्यप्रदेश में पानी की कमी लगातार महसूस की जा रही है। धरती की छाती में अनेक छेद ऐसे हो गए हैं, जहाँ से पानी खींचखींचकर हमने उसे पूरी तरह से सुखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। अभी भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है. यह हालत यदि ऑंकड़ों से देखा जाए, तो स्थिति और भी भयावह होगी। आबादी के बढ़ते दबाव के साथ-साथ भू-गर्भ जल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है।

बात शुरू करते हैं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित हेडपम्पों से। मेरे प्रदेश में स्थापित तीन लाख 36 हजार 999 हेंडपम्पों में से 33 हजार 600 हेडपम्प खराब हैं।ये घोषित ऑंकड़ें हैं, पर अघोषित ऑंकड़ों के अनुसार तो सिंचाई और पेयजल के लिए जगह-जगह धरती की छाती पर छेद किए जा रहे हैं। गर्मी में तो यह सिलसिला और भी तेज हो जाता है।

हमने आज नहीं यह नहीं सोचा कि केवल बिजली के लिए हमने एक भरा-पूरा शहर हरसूद खो दिया। यानी पानी के भंडारण के लिए एक शहर दे दिया। फिर भी हमारी भूख कम नहीं हुई है, यह लगतार बढ़ रही है। आज शहरों में रोज ही धरती की छाती पर कई छेद हो रहे हैं, हमारी सरकार अब तक खामोश है। पानी उलीचने का काम हमारे प्रदेश में बखूबी होता है, लेकिन इस धरती के भीतर पानी डालने के काम में पूरा प्रदेश सुस्त है। पेड़ लगातार कट रहे हैं, ऐसे में पानी कैसे जमा हो पाएगा, यह हमने नहीं सोचा। प्रदेश में हजारों आरा मशीनें हैं, जो लगातार काम कर रहीं हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पेड़ों की कटाई कितनी तेजी से हो रही है? वर्षा का पानी रोकना ही एकमात्र उपाय है, जिससे भू-गर्भ जल स्तर में बढ़ोत्तरी हो सकती है। लेकिन वर्षाजल रोकने के लिए अभी तक ऐसा कोई महत्वपूर्ण काम नहीं हुख, जिसे उपलव्धि कहा जाए।

आज कोई भी पानी की गंभीरता को नहीं समझ पा रहा है। गलती इनकी नहीं, बल्कि उन लोगों की है, जिन्होंने उन्हें बताया ही नहीं कि पानी मूल्यवान है। जिन स्थानों में पानी नहीं मिलता या फिर पानी का संकट है, उनसे पूछो कि क्या होता है जल संकट? आज चाहे महानगर हो या फिर कस्बा, पानी की बरबादी हर ओर देखी जा रही है। ऐश्वर्यशाली लोग तो पानी का अपव्यय ऐसे करते हैं, मानो ये पानी उन्हें मुफ्त में मिल रहा हो।

यह सच है कि पानी का उत्पादन कतई संभव नहीं है. कोई भी उत्पादन कार्य बिना पानी के संभव नहीं। जन्म से लेकर मृत्यु तक पानी की आवश्यकता बनी रहती है। पानी को प्राप्त करने का एकमात्र उपाय वर्षा जल को रोकना। इसे रोकने के लिए पेड़ों का होना अतिआवश्यक है। जब पेड़ ही नहीं होंगे, तब पानी जमीन पर ठहर ही नहीं पाएग। अधिक से अधिक पेड़ों का होना याने पानी को रोककर रखना है। दूसरी ओर हमारे पूर्वजों ने जो विरासत के रूप में हमें नदी, नाले, तालाब और कुएँ दिए हैं, उन्हीं का रखरखाब यदि थोड़ी समझदारी के साथ हो, तो कोई कारण नहीं है कि पानी न ठहर पाए. पानी हमसे रुठ गया है। अभी तो यह धरती के 15 फीट नीचे चला गया है, हमारी करतूतें जारी रहीं, तो यह और भी दूर चला जाएगा, इतनी दूर कि हम कितना भी चाहें, वह हमारे करीब नहीं आएगा।

जल ही जीवन है, यह उक्ति अब पुरानी पड़ चुकी है, अब यदि यह कहा जाए कि जल बचाना ही जीवन है, तो यही सार्थक होगा। मुहावरों की भाषा में कहें तो अब हमारे चेहरें का पानी ही उतर गया है। कोई हमारे सामने प्यासा मर जाए, पर हम पानी-पानी नहीं होते। हाँ, मौका पड़ने पर हम किसी को भी पानी पिलाने से बाज नहीं आते। अब कोई चेहरा पानीदार नहीं रहा। पानी के लिए पानी उतारने का कर्म हर गली-चौराहों पर आज आम है। संवेदनाएँ पानी के मोल बिकने लगी है। हमारी चपेट में आने वाला अब पानी नहीं माँगता। हमारी चाहतों पर पानी फिर रहा है। पानी टूट रहा है और हम बेबस हैं।
डा. महेश परिमल
403, भवानी परिसर
इंद्रपुरी भेल, भोपाल-4620022
साभार - www.srijangatha.com

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