एकमेव कोला

अगस्त 1945 में कम्युनिस्ट नेता हो-ची मिन्ह ने जिस बालकनी से अक्तूबर क्रांति की घोषणा की थी, उसके ठीक सामने आज तीस-तीस फीट ऊँची, लाल लेबलवाली कोका कोला की कद्दावर बोतलें लगी हुई हैं। वियतनाम बीस साल तक अमेरिकी फौजों से लड़ता रहा। 1975 में यह लड़ाई खत्म हुई और अब अमेरिकी उपभोक्तावाद का सबसे प्रबल प्रतीक कोका कोला वहाँ उछल-कूद कर रहा है। एक अमेरिकी कार्टूनिस्ट ने टिप्पणी करते हुए एक वियतनामी के मुँह में शब्द डाले हैं कि ‘वह अमेरिकी को तब ज्यादा पसंद करता था जब वह उनका दुश्मन था।’

वियतनाम की प्रति व्यक्ति औसत आय भारत से भी कम है। फिर भी अमेरिकी रक्तपायी उसके शिकार में लगे हुए हैं। कोला एक तरह के अमेरिकी जादू-टोने का नाम है, जिससे ये क्लोरीनयुक्त रंगीन पानी से पीढ़ी-की-पीढ़ी में एक चस्का पैदा कर देते हैं; और धीरे-धीरे उपभोक्ता वर्ग पानी पीना भूल जाता है, पानी के बदले कोला पीता है और समझता है कि वह अमेरिकी शान-ओ-शौकत की जिंदगी जी रहा है। यह चस्का संसार के बेहतरीन विज्ञापन जाल में फँसते जाने से लगता है।
कोला जैसे तीन दर्जन साम्राज्यों का नाम ही अमेरिकी साम्राज्य है। भारत में भी कोला युद्ध प्रारंभ हो गया। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, कैबिनेट सचिव जैसे आधे दर्जन चोटी के महत्वपूर्ण अफसरों की बैठक में कोला युद्ध के बारे में एक फैसला लिया गया। भारत सरकार कश्मीर और पूर्वोत्तर के विद्रोह के संबंध में भले ही सुस्ती दिखाती रही, मगर कोला युद्ध में जरूर चुस्ती दिखाई। अब तय कर दिया गया है कि महाकोलाओं को ‘आकार’ की छूट है।

इन कोलाओं को पीने के कई लाभ हैं। कोला पर आज तक यह आरोप नहीं लगा कि उसमें शरीर के लिए कोई भी गुणकारी तत्त्व है। लस्सी, छाछ, फलों के रस से देश का पैसा अमेरिका में जमा कराने का फायदा भी नहीं मिलता। कुल जमा पंद्रह-बीस पैसे का क्लोरीनेटेड पानी जब चार-पाँच रुपए तक में बिकता है तब करोड़ों बोतलों का अरबों रुपए का फायदा कहाँ-कहाँ, किस-किसको जाता है और क्या-क्या करता है, यह रोमांचक रहस्य भी देश के लिए एक फायदेमंद तत्त्व हैं।

जिस तरह विश्व भर में कोला साम्राज्य, कोका संस्कृति और कोला दर्शन फैल रहा है, उससे तो यही लगता है कि सर्वेगुणा कोलामाश्रयंते। कोई सोच सकता है कि लस्सी, दूध, छाछ, रस, नारियल पानी अंत में विजयी होंगे। वह कोला से अर्जित राशि का उपयोग करके इन पेयों की बुरी लत को छुड़वा सकते हैं। किसी दिन किसी मेडिकल शोध के जरिए यह साबित किया जा सकेगा कि जलजीरा पीने से एक्जीमा होता है, लस्सी पीनेवालों को कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है, फलों के रस से मस्तिष्क की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त होती हैं। ऐसे दो सौ शोधों से यह पूरी तरह साबित हो जाएगा कि कोका को छोड़कर कोई भी पेय सुरक्षित नहीं है।

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