आम आदमी का पानी निजी कम्पनियों के हवाले होगा

एडीबी की मदद से शहरी निकायों पर निजी कम्पनियां हावी

एडीबी द्वारा दिसंबर 2004 में 'मध्यप्रदेश शहरी जलापूर्ति एवं पर्यावरण सुधार' नाम से एक कर्ज स्वीकार किया गया। इस कर्ज से भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर और इंदौर में जलापूर्ति एवं जल-मलनिकास तंत्र का नियोजन-प्रबंधन, सुदृढ़ीकरण कर इसे अधिक प्रभावी, पारदर्शी और स्थायी बनानें का दावा किया गया है। कुल योजना खर्च 30.35 करोड़ डॉलर में से 20 करोड़ डॉलर का कर्ज मिलेगा तथा शेष राशि प्रदेश सरकार तथा संबंधित शहरो को खर्च करनी पड़ेगी। पहले इस योजना में रतलाम और उज्जैन शहर भी शामिल थे। रतलाम नगर निगम ने ऊँची ब्याज दर और सलाहकारों पर भारी खर्च का विरोध किया था।
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एडीबी परियोजना इंदौर में
एडीबी परियोजना का मुख्य लक्ष्य इंदौर में जल उपलब्धता बढ़ाना (नर्मदा तृतीय चरण) है। तृतीय चरण से मिलने वाला अतिरिक्त 360 एमएलडी पानी शहर की सन् 2024 की प्रस्तावित 33 लाख जनसंख्या के हिसाब से पर्याप्त बताया गया है।
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6 सितंबर 2006 के अद्यतन आकलन के अनुसार एडीबी परियोजना 641.25 करोड़ की है जिसमें से 471 करोड़ नर्मदा योजना, 15 करोड़ जलमल निकास, 8.55 करोड़ जनजागृति एवं 146.7 करोड़ आकस्मिक एवं सलाहकारों पर खर्च किए जाएँगे।
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परियोजना राशि का 65.82 प्रतिशत एडीबी, 22.50 प्रतिशत, राज्य सरकार तथा 0.18 प्रतिशत यूनए हेबीटाट से प्राप्त होगा। शेष 11.50 प्रतिशत (करीब 77 करोड़ रुपये) निगम को अंशदान देना होगा। लेकिन इस अंशदान राशि की व्यवस्था करना भी निगम के लिए संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए निगम प्रयास कर रहा है कि उसे कहीं से अंशदान राशि हेतु एक नया कर्ज मिल जाए।
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योजनानुसार नर्मदा तृतीय चरण का वार्षिक संचालन खर्च 175 करोड़ रुपये (कर्ज वापसी 43 करोड़, बिजली खर्च 82 करोड़ एवं संचारण व्यय 50 करोड़ रुपये) होगा अर्थात् इंदौर तक पानी पहुँचाने की लागत 18 रुपये/घमी होगी। बाद में निगम ने संचारण व्यय 32 करोड़ दिखाकर पानी की लागत 15.06 रुपये/घमी आकलित की है लेकिन यह भी काफी अधिक है। वैसे आमतौर पर देखा गया है कि वास्तविक लागत आकलित लागत से कहीं अधिक होती है।
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निजीकरण का बोझ
15 घमी मासिक जरूरत वाले इंदौर के एक औसत परिवार का सितंबर 2006 में पानी का बिल 60 रुपये था। मीटरीकरण के बाद सितंबर 2009 से उसका मासिक बिल 268.12 रुपये (160.50 रु. मूल बिल+38 रु. कचरा प्रबंधन, 40.12 रु. जल-मल निकास और 30 रु. कर्ज वापसी शुल्क) हो जायेगा। यदि परिवार की आवश्यकता बढ़कर 21 घमी हो गई तो उसका बिल बढ़कर 453.87 रुपये (308.70 रु. जल-मल निकास और 30 रु. कर्ज वापसी शुल्क) हो जायेगा। साथ ही पानी के बिल की अप्रत्यक्ष वसूली संपत्तिा कर बढ़ा कर भी की जाएगी।
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हालांकि यह बिल भी आम परिवार के लिए काफी अधिक है लेकिन जैसे ही व्यवस्था निजी हाथों में जायेगी मनमाने भाव बढ़ाये जाएँगें। मनीला शहर (फिलीपिंस) में 1997 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी 8.78 पेसो (स्थानीय मुद्रा) प्रति घमी की दर से पानी उपलब्ध करवा रही थी। मेनिलाड नाम की निजी कंपनी ने ठेका लेते समय 4.96 पेसो/घमी का आश्वासन दिया था। ठेका मिलने के बाद मेनिलाड ने पानी के भाव 15.46 पेसो/घमी कर दिए। बाद में 30 पेसो/घमी की माँग की। अनुबंध टूट गया लेकिन कंपनी द्वारा लिया गया सारा कर्ज सरकार यानी आम जनता के माथे आ पड़ा।
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सलाहकार चाँदी काटेंगें
ऐसे कर्जों से संचालित परियोजनाएँ सिर्फ कमाइ्र के उद्देश्य से ही बनाई जाती हैं। ये वित्तीय एजेंसियाँ अपनी कमाई में सलाहकारों को भी भागीदार बनाती हैं ताकि उनके एजेंण्डे को आसानी से लागू किया जा सके। एडीबी परियोजना के तहत इंदौर को मिलने वाली कर्ज राशि 12.27 करोड़ डॉलर (524.65 करोड़ रुपये) में से 49 लाख डॉलर (22 करोड़ 5 लाख रुपये) का प्रावधान सलाहकारों के लिए किया गया है। चारों शहरों में सलाहकारों पर 2 करोड़ 15 लाख डॉलर (96.30 करोड़ रुपये) खर्च किए जाएंगें। जबकि चारों शहरों की गरीब बस्तियों में मात्र 73 लाख डॉलर (32 करोड़ 85 लाख रुपयों) खर्च किए जाएंगे। रतलाम नगर निगम ने प्रस्ताव पारित कर सलहकारों को 11 लाख डॉलर की भारी भरकम राशि देने पर असहमति दर्शई थी।
(प्रस्तुति: डा. कृष्ण स्वरूप आनन्दी)

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