100 000 करोड़ खर्च, लेकिन कोई अतिरिक्त लाभ नहीं

पिछले 12 सालों में नहर आधारित सिंचाई क्षेत्र में कोई बढ़ोतरी नहीं
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ऐसा क्यों हो रहा है?
इस परिस्थिति के कुछ वजहों में शामिल हैं : जलाशयों एवं नहरों में गाद जमाव, सिंचाई ढांचों के रख-रखाव का अभाव, नहरों के प्रारम्भिक क्षेत्रों में ज्यादा पानी वाले फसलों की अधिकता व नहरों का न बनना एवं एक नदीघाटी में ज्यादा परियोजनाओं का विकास (वहन क्षमता से ज्यादा), जल जमाव एवं भूमि में क्षारीयता कुछ अन्य वजह हैं। कुछ मामलों में, नयी परियोजनाओं द्वारा जोड़े गये अतिरिक्त इलाके कुल इलाकों में बढ़ोतरी नहीं दिखाते हैं, क्योंकि पुराने परियोजनाओं से (उपरोक्त वजहों से) सिंचित इलाकों में कमी आ रही है। वास्तव में विश्व बैंक के 2005 की रिपोर्ट इंडियाज वाटर इकॉनामी : ब्रैसिंग फॉर ए ट्रबुलेंट फ्यूचर यह दिखाती है कि भारत के सिंचाई ढांचों (जो कि विश्व में सबसे बड़ी है) के रख-रखाव के लिए सालाना वित्ताीय आवश्यकता रु. 17000 करोड़ की है, लेकिन इसकी 10 प्रतिशत से भी कम राशि उपलब्ध होती है एवं इनमें से ज्यादातर ढांचों के भौतिक रख-रखाव में इस्तेमाल नहीं होते हैं।

ये आंकड़े क्यों महत्वपूर्ण हैं
इस निष्कर्ष के गंभीर प्रभाव हुए हैं। पहली बात, यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि देश में प्रति वर्ष बड़ी सिंचाई परियोजनाओं पर व्यय होने वाले हजारों करोड़ की राशि से कोई अतिरिक्त सिंचित इलाका विकसित नहीें हो रहा है। दूसरी बात, सिंचित इलाके में वास्तविक बढ़ोतरी पूरी तरह भूजल सिंचाई से हो रही है एवं भूजल सिंचित कृषि की जीवनरेखा है। तीसरी बात, वास्तव में रुपये 99610 करोड़ के अफलदायी निवेश द्वारा सिंचाई में कोई बढ़ोतरी नहीं होना पिछले दशक में भारत की घटती कृषि विकास दर का करण हो सकता है। चौथी बात, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) में अप्रैल 1996 से मार्च 2004 तक व्यय किये गये रुपये 14669 करोड़ से कोई अतिरिक्त सिंचित इलाका नहीं जुड़ा है। इस तरह जल संसाधन मंत्रालय का यह दावा कि उपरोक्त अवधि में एआईबीपी से 26.60 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचित इलाका जुड़ा है, सही नहीं है। अंतत:, इससे जवाबदेही के कई मुद्दे उठते हैं एवं इसके लिए जल संसाधन मंत्रालय, योजना आयोग एवं राज्यों में जो जिम्मेदार हैं उन्हें ढेर सारे सवालों का जवाब देना होगा।

यह आंकड़े संकेत देते हैं कि नये बड़ी व मध्यम सिंचाई परियोजनाओं में धन व्यय करने के बजाय यदि मौजूदा ढाचों के उचित रख-रखाव, जलाश्यों के गाद में कमी करने के उपायों एवं साथ ही वर्षाजनित इलाकों में ध्यान देने में धन खर्च करते हैं तो देश को ज्यादा लाभ होगा। भूजल के मामले में, हमें मौजूदा भूजल पुनर्भरण व्यवस्था के संरक्षण करने एवं उन्हें बढ़ावा देने को सबसे पहली वरीयता देनी चाहिए। निर्माण्ााधीन बड़ी व मध्यम सिंचाई व्यवस्थाओं में अव्यवहार्य निवेश को निकाल बाहर करने की आवश्यकता है ताकि उपयोगी धन (जो कि अब तक व्यय नहीं हुआ है) अनुपयोगी कार्यो में बर्बाद (अव्यवहार्य परियोजनाओं में व्यय हुए) न हो। कुछ निर्माणाधीन परियोजनाओं के मामले में, परियोजनाओं के भावी निवेश व असरों को कम करने के लिए उनकी समीक्षा करना ज्यादा लाभकारी हो सकता है। अब जबकि योजना आयोग 11वी पंचवर्षीय योजना को अंतिम रुप दे रही है, उसके पास स्वर्णिम अवसर हैं कि जल संसाधन विकास में मूलभूत बदलाव करे। यदि हम इस अवसर से चूक जाते हैं तो, हमारे द्वारा बढ़ावा दिये गये गलत प्राथमिकताओं एवं वैश्विक उष्णता (ग्लोबल वार्मिंग) के संयुक्त असर के परिणामस्वरूप हमारे पास न तो लोगों या अर्थव्यवस्था के लिए पानी मौजूद होगा और न तो मौजूदा लाभों को कायम रखने व रख-रखाव के लिए धन मौजूद होगा, जैसा कि विश्व बैंक ने अपने रिपोर्ट में निष्कर्ष के तौर पर कहा है।

हिमांशु ठक्कर (ht.sandrp@gmail.com)
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