ब्रज की बावड़ी, कूप

बावडी
- इनका प्रयोग ब्रज प्रजा पेय जल के प्राप्त करने के लिये करती थी। ब्रज में अभी भी कई प्रसिद्ध और सुन्दर बावड़ी है, किन्तु ये जीर्ण अवस्था में पड़ी है। इनमें मुख्य निम्न वत हैं - ज्ञानवापी (कृष्ण जन्मस्थान, मथुरा), अमृतवापी (दुर्वासा आश्रम, मथुरा), ब्रम्ह बावड़ी (बच्छ बन), राधा बावड़ी (वृन्दाबन) और कात्यायिनी बावड़ी (चीरधाट) हैं।

कूप
- ब्रज में वहुसख्यक कूप हैं जिनका उपयोग आज भी ब्रजवासी पेय जल प्राप्त करने के लिये करते हैं। ब्रज मंडल के अधिकांश ग्रामों की आवसीय परिशर में भूगर्भीय जल खारी है अथवा पीने के लिये अन उपयोगी है। अतः इस संदर्भ में कहावत प्रचलित कि भगवान कृष्ण ने बचपन की सरारतों के चलते ब्रज के ग्रामों की आवसीय परिशर के भू-गर्भीय जल को इस लिये खारी (क्षारीय) और पीने के लिये अन उपयोगी बना दिया ताकि ब्रज गोपियाँ अपनी गागर लेकर ग्राम से बाहर दैनिक पेय जल लेने के लिये निकले और कृष्ण उनके साथ सरारत करें, उनकी गागरों को तोड़ें और उनके साथ लीला करें। आज भी ब्रज ग्रामीण नारियों को सिर पर मटका रख ग्राम से बाहर से जल लाते हुए समुहों के रुप में ग्राम बाहर के पनधट और कूपों पर देखा जा सकता है। पेय जल के साथ-साथ इन कूपों का ब्रज में धार्मिक महत्व भी है। कवि जगतनंद के समय में १० कूप अपनी धार्मिक महत्ता के निमित्त प्रसिद्ध थे। इनके नाम इस प्रकार वर्णित हैं -
.
(१) सप्त समुद्री कूप,
(२) कृष्ण कूप,
(३) कुब्जा कूप (मथुरा),
(४) नंद कूप (गोकुल और महाबन),
(५) चन्द्र कूप (चन्द्र सरोवर गोबर्धन),
(६) गोप कूप (राधा कुंड),
(७) इन्द्र कूप (इंदरौली गाँव-कामबन),
(८) भांडीर कूप (भाडीर बन),
(९) कर्णवेध कूप (करनाबल) और वेणु कूप (चरण पहाड़ी कामबन)
११. ब्रज में लख दस कूप हैं, सप्तसमुद्रहि जान। नंद कूप अरु इन्द्र कूप, चन्द्र कूप करिमान।।एक कूप भांडीर कौ, करणवेघ कौ कूप। कृष्ण कूप आनंदनिघिस बेन कूप सुख रुप।। एक जु कुब्जा कूप है, गोप कूप लखि लेहु। 'जगतनंद' वरननकरत ब्रज सौं करौ सनेह।।

Hindi India Water Portal

Issues