शिवनाथ का 23.5 किमी का हिस्सा बीस साल के लिए रेडियस वाटर लिमिटेड को

नई दिल्ली। आठ अगस्त को दक्षिण दिल्ली के एक रिहायशी इलाके में 24 घंटे से पेयजल आपूर्ति बाधित रहने के कारण हाहाकार मचा हुआ था। यह तो सिर्फ एक दिन की बात थी, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं यह दस्तक है आने वाले कल की, जब पानी तीसरे विश्व युद्ध का कारण बनेगा।
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इस इलाके के ठीक पीछे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पानी की समस्या का हल प्रो. सौमित्र चटर्जी ने सुदूर संवेदन तकनीक के जरिए निकाला है।
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विशेषज्ञों ने इस तकनीक के बारे में बताया कि किसी वस्तु या परिवर्तन का बिना उसके संपर्क में आए उपग्रह के माध्यम से अध्ययन किया जाता है। उपग्रह से मिले चित्र खुलासा कर देते हैं कि किस इलाके में जमीन कैसी है और उसकी अंदरूनी संरचना कैसी है। कहां पानी बचाया जा सकता है और किस हिस्से में पानी रह सकता है। इसके बाद चैकडेम बनाए जाते हैं।
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नई दिल्ली और राजस्थान में इस तकनीक का प्रयोग हो चुका है। जल योद्धा हरदेव सिंह जडेजा के अनुसार यह तकनीक जल संरक्षण में काफी उपयोग में लाई जा रही है। राजस्थान, गुजरात का सौराष्ट्र, आंध्र का रायल सीमा, महाराष्ट्र का मराठवाड़ा, मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड और कर्नाटक के कुर्ग जैसे क्षेत्रों के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। यह वे इलाके हैं जहां तीन साल में एक बार अल्प वर्षा और चार साल में एक बार अति वर्षा होती है फिर भी यह इलाके पेयजल की किल्लत झेलते हैं।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ आधिकारिक तौर पर पहला राज्य है जहां प्रमुख नदी शिवनाथ का 23.5 किमी का हिस्सा बीस साल के लिए रेडियस वाटर लिमिटेड के हवाले कर दिया गया। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक जनक लाल ठाकुर के अनुसार यह तो वैश्वीकरण की हद हो गई। पानी के निजीकरण के मुद्दे पर वह कहते हैं, यह महज पानी का नहीं, बल्कि सरकार की नीयत में खोट आने का मामला है। अब लोगों को जागरूक होना होगा। पुराने बांध जहां खेती के लिए होते थे वहीं नए बांध महज औद्योगिक विकास के काम आ रहे हैं।
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राजस्थान के अलवर में जल-क्रांति लाने में लगे तरुण भारत संघ के राजेंद्र सिंह यानी वाटरमैन जागरूकता लाने के प्रयासों में लगे हैं। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सिंह अपनी सफलता का श्रेय उस देशज ज्ञान और पारंपरिक समझ को देते हैं जो समय की कसौटी पर खरी साबित हुई। आज उनके बनाए जोहड़ों ने रेगिस्तान में तब्दील हो रहे अलवर को हराभरा कर दिया।
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सरकार नौकरशाही और वैज्ञानिकों का एक बड़ा हिस्सा भले ही इस पारंपरिक ज्ञान को अव्यवहारिक मानता है, लेकिन प्रेमजी भाई पटेल, श्याम जी भाई, पूना भाई जैसे जल दूत विभिन्न इलाकों में मौन क्रांति लाने में लगे हुए हैं।
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श्याम जी भाई अंटाला पिछले दो दशकों में तीन लाख से ज्यादा कुएं रिचार्ज (पुनर्भरण) कर चुके हैं। वह कहते हैं कि सौराष्ट्र में 1964, 1972, 1985, 1986 एवं 1987 में सूखा पड़ा, लेकिन 1988 में भारी बारिश हुई और लोगों ने सोचा कि कुएं में पानी भर लेना चाहिए।
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वह मानते हैं कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। इससे बचना है तो बुजुर्गों के उन अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए जो चैकडेम, पोखर, तालाब और कुएं के जरिए जलापूर्ति में काम आ रहे थे।
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हम शायद यह भूल गए कि इस देश में कुएं पूजन की परंपरा है और हमने कुएं और जल स्रोतों को खराब करना शुरू कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि एक घर के ऊपर जितना पानी गिरता है। वह उस परिवार की वार्षिक जरूरत से पांच गुना तक अधिक होता है। छत के पानी को बटोर कर आसानी से साल भर के पेयजल की व्यवस्था हो सकती है।
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विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि पेय जलापूर्ति से निपटने और बढ़ती आबादी के बीच संतुलन बिठाने के लिए विकसित राष्ट्रों की तर्ज पर पेयजल के संबंधित विभागों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने पर विचार करते हुए संवैधानिक शक्तियां प्रदान करनी होगी। साथ ही राज्यों में पेयजल के वितरण और प्रबंधन के लिए सरकारी योजनाओं में जन भागीदारी को प्राथमिकता देनी होगी।
साभार- दैनिक जागरण

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