समृद्धि के पीपल उगाने लगा है पीपलखूंट

बांसवाडा, आदिवासियों के उत्थान और आदिवासी क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे के संकल्पों को साकार करने की अनवरत् जारी श्रृंखला के अन्तर्गत राज्य सरकार ने प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों, ख्ाासकर मेवाड, वागड और कांठल में जनजाति विकास की कई योजनाओं और कार्यक्रमों का सूत्रपात कर बहुआयामी विकास के ऐतिहासिक परिदृश्य का दिग्दर्शन कराया है।
इसी कडी में आदिवासी बहुल प्रतापगढ जिले के सृजन और विकास का जो नवीन अध्याय शुरू हुआ है वह अपने आप में अपूर्व कदम तो है ही, आदिवासी क्षेत्रों के विकास में नए युग के उदय की आधारशिला भी रख रहा है। प्रतापगढ जिले के गठन के बाद प्रदेश की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे पहली बार प्रतापगढ जिले में कदम रख रही हैं और वह भी विकास के कई-कई आयामों के साथ।
पहली बार मुख्यमंत्री की यात्रा को लेकर शासन-प्रशासन से लेकर आम लोगों तक में उत्साह का अतिरेक दिख रहा है। मुख्यमंत्री प्रतापगढ जिले में अपने दौरे की शुरूआत बांसवाडा जिले से सटे पीपलखूंट क्षेत्र से कर रही हैं जो कि पहले बांसवाडा जिले का हिस्सा रहा है।
तहसील बनने से मिला सुकून पीपलखूंट क्षेत्र को
मुख्यमंत्री 22 अगस्त शुक्रवार को प्रतापगढ जिले की नवगठित पीपलखूंट तहसील का उद्घाटन करेंगी। अब तक पीपलखूंट में पंचायत समिति व उप तहसील का वजूद रहा था जिसे वर्तमान राज्य सरकार ने प्रतापगढ को जिला बनाकर तहसील के रूप में क्रमोन्नत कर दिया है।
इस तहसील में 27 ग्राम पंचायतें हैं जिनमें 18 पंचायतें बांसवाडा जिले से मिली हैं जबकि दो पंचायतें अरनोद तथा 7 पंचायतें प्रतापगढ पंचायत समिति से शामिल की गई हैं। पीपलखूंट में तहसील की स्थापना से आदिवासी बहुल समूचे क्षेत्र के लोगों को राजस्व और रोजमर्रा के काम-काज के लिए अब ज्यादा दूरी तय नहीं करनी पडेगी और जीवनचर्या और अधिक आसान हो जाएगी।
बोरीवानगढी बांध सुनाएगा खुशहाली का संगीत
मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे शुक्रवार को अपनी पीपलखूंट यात्रा के दौरान् बोरीवानगढी लघु सिंचाई योजना का लोकार्पण करेंगी। केसरपुरा ग्राम पंचायत अन्तर्गत बोरीवानगढी लघु सिंचाई योजना का कार्य जलसंसाधन विकास खण्ड बांसवाडा द्वारा कराया गया है। यह बांध स्थल बांसवाडा-प्रतापगढ मुख्य मार्ग पर पीपलखूंट से 18 किलोमीटर अन्तरंग पहाडी क्षेत्र में बनाया गया है।
इस बांध तक पहुंच के दो मार्ग हैं। बांसवाडा से पीपलखूंट, वहां से लाम्बाडाबरा व केसरपुरा तथा बोरी गांव। इस गांव से बांध स्थल पास ही है। इसी प्रकार बांसवाडा से माहीडेम, केलामेला व केसरपुरा से बोरी तक का रास्ता भी है।
माही नदी कछार के अन्तर्गत माही की सहायक एराव नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के मध्य स्थानीय नाले के प्रवाह को अवरूद्ध कर बोरीवानगढी लघु सिंचाई योजना का निर्माण जल संसाधन विकास खण्ड बांसवाडा द्वारा किया गया है । इस योजना का निर्माण जनजाति वर्ग के लघु एवं सीमान्त काश्तकारों की भूमि में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने के मकसद से सन् 2006 में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा वित्त पोषित योजना में आरंभ किया गया।
योजना की पुनःरक्षित कुल लागत राशि लगभग पांच करोड 75 लाख रुपए आंकी गई है । योजनान्तर्गत सतही वर्षा जल संग्रहण हेतु कुल 573 मीटर लम्बा बांध बनाया गया है। इसमें मिट्टी के बांध की लम्बाई 410 मीटर है जबकि मिट्टी के अनुलग्नक बांध (सेडल डेम) की लम्बाई 70 मीटर है। अध्रिग्रहित जल निस्सरण के लिए 93 मीटर लम्बा वेस्टवियर बनाया गया है। इसमें उपयोगी जल भराव की गहराई 11 मीटर(सील स्तर से पूर्ण भराव स्तर तक) है।
जल संसाधन खण्ड बांसवाडा के अधिशासी अभियन्ता दीपक दोसी के अनुसार बांध से 493 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदत्त करने के सन्दर्भ में क्रमशः, 12.81 किलोमीटर एवं 6.78 किलोमीटर लम्बी दांयी मुख्य नहर एवं बांयी मुख्य नहर का निर्माण किया गया है। इससे 493 हैक्टर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का लाभ मिलने लगेगा। इनमें दांयी मुख्य नहर से 232 हेक्टेयर एवं बांयी मुख्य नहर से 261 हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। इस बांध से आगामी रबी सिंचाई 2008-2009 में सिंचाई के लिए जल प्रवाहित किया जाएगा।
यह योजना पीपलखूंट क्षेत्र के कई गांवों के किसानों के लिए वरदान है। इस योजना से जनजाति समुदाय के लघु एवं सीमान्त कृषकों को खेती-बाडी के लिए ंसंचाई सुविधा प्राप्त होगी। इससे ख्ाासकर बोरी, वानगढी, राणा की हरवर, मोजल एवं हिंगोतों की हरवर आदि गांव के 205 जनजाति परिवारों को प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सम्बल प्राप्त होगा। प्रत्यक्ष सिंचाई लाभ के अतिरिक्त, भूगर्भीय जल स्तर में वृद्धि, मत्स्य पालन, सामाजिक वानिकी आदि प्रकल्पों के सन्दर्भ में परोक्ष लाभ अर्जित होंगे।
पीपलखूंट जैसे पहाडी क्षेत्र में बरसाती पानी के बहकर चले जाने तथा जल संग्रहण के अभाव की वजह से अकाल जैसे हालातों के बार-बार उत्पन्न हो जाने की स्थितियों पर भी इस लघु सिंचाई योजना से अंकुश लगेगा। इस जनजाति क्षेत्र के लिए बोरीवानगढी लघु सिंचाई योजना आदिवासियों के लिए प्रदेश सरकार का महत्त्वपूर्ण तोहफा है।
बोरीवानगढी लघु सिंचाई योजना का जल ग्रहण क्षेत्र 14.75 वर्ग किलोमीटर (5.69 वर्ग मील) पसरा हुआ है। इसमें कुल जल उपलब्धता 164.78 मिलियन घन फीट, कुल भराव क्षमता 96.89 मिलियन घन फीट( 2.744 लाख घनमीटर) तथा इसकी उपयोगी भराव क्षमता 87.20 मिलियन घन फीट( 2.469 लाख घन मीटर) है।
बोरीवानगढी लघु सिंचाई योजना के अन्तर्गत प्रभावित डूब क्षेत्र 38.69 हेक्टर है। इस बांध की कुल लम्बाई 573 मीटर तथा बांध की अधिकतम ऊँचाई 19.70 मीटर है। इसका सिंचाई क्षेत्र (सी.सी.ए.) 493 हेक्टर तथा प्रस्तावित सिंचाई क्षेत्र(आई.सी.ए.) 353 हेक्टर निर्धारित है। इस बांध से सिंचाई की तीव्रता 71.60 प्रतिशत है।
दांयी मुख्य नहर प्रणाली की लम्बाई 12.81 किमी. सिंचित क्षेत्र 261 हेक्टर तथा रूपांकित जल प्रवाह क्षमता 6.462 क्यूसेक है। इसी प्रकार बांयी मुख्य नहर प्रणाली की लम्बाई 6.78 किमी. सिंचित क्षेत्र 232 हेक्टर एवं रूपांकित जल प्रवाह क्षमता 5.40 क्यूसेक है। 5 करोड 70 लाख रुपये अनुमानित लागत(पुनः रक्षित) वाली यह योजना विधिवत रूप में सन् 2006 में आरंभ कर दो वर्ष की अवधि में पूर्ण कर ली गई।
मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे के हाथों शुक्रवार को लोकार्पित होने वाला बोरीवानगढी बांध निश्चय ही पीपलखूंट क्षेत्र में खुशहाली के पीपल उगाने में कामयाब होगा। इससे क्षेत्र के आदिवासियों में खुशहाली का दौर शुरू होगा और खेती-बाडी से खलिहानों में समृद्धि आएगी।

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