हर बीस मिनट में मछली की एक प्रजाति का अंत

संसार भर में पर्यावरण पर प्रदूषण का असर कितना खतरनाक हो रहा है, यह बात अब किसी से छिपी नहीं है। प्रदूषण और विश्व में हो रहे मौसम परिवर्तन के कुप्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक 20 मिनट में मछली की एक प्रजाति लुप्त हो रही है। लखनऊ में शनिवार को इंडियन फिश जेनेटिक रिसोर्सज विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में इंडियन काउंसिल और एग्रिकल्चरल रिसर्च (आई.सी.ए.आर.) के ए.डी.जी. (फिशरी) डाक्टर ए.डी. दीवान ने कहा कि यह खतरा भारत के संदर्भ में और बढ़ जाता है, क्योंकि कई समुद्री जीव पहले से ही लुप्त होने के कगार पर है। दीवान ने भारतीय उप महाद्वीप में लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए प्रभावी कदम उठाने पर जोर दिया उन्होंने जैव विविधता कानून 2002 और कानून 2004 के बारे में कहा कि इस पर अभी अमल शुरू भी नहीं किया गया है। साथ ही, संबंधित अधिकारियों और लोगों से इस कानून पर अमल करने का अनुरोध किया।
कन्हैया ने कहा कि भारत में खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मछली पालन को बढ़वा दिया जाना चाहिए। वर्तमान स्थिति को देखते हुए मछली और समुद्री खाद्यों के क्षेत्र में शोध किए जाने और इनकी उत्पादकता बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैव विविधता से संपन्न देशों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इसके उदाहरण के रूप में उन्होंने भारत, ब्राजील और चीन का नाम लिया। इस अवसर पर एन.बी.एफ.जी.आर. के निदेशक डाक्टर डब्लू.एस. लाकरा ने कहा कि भारत जल जैव विविधता के क्षेत्र में काफी समृद्ध रहा है, इसलिए इनका संरक्षण काफी महत्वपूर्ण है। साथ ही लाकरा ने मछली के जेनेटिक संसाधनों के विकास और संरक्षण पर प्रभावी कदम उठाने को जोर दिया। जिससे प्रकृति के विविध रूपों को बचाया जा सके। इन सब बातों को देखते हुए मनुष्य अब भी नहीं चेतता है, तो वह दिन दूर नहीं, जब इन जीवों के दर्शन किताबों में ही हुआ करेंगे। फिलहाल दुनिया में मछलियों की करीब 26,710 प्रजातियां हैं, जिनमें से 7000 प्रजाति की मछलियों तक मानव की अच्छी पहुंच है।
करीब 2000 मछलियों के बारे में ही मानव ठीक से जान पाया है। इनमें से कई प्रजाति की मछलियों का उपयोग खाने, सजाने व अन्य कामों में होता है। केवल नदियों में ही नहीं, बल्कि समुद्र में भी मछलियों पर संकट मंडरा रहा है।

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