व्यंग्य : प्यास लगे तो कोला पी - दीनानाथ मिश्र

आपको याद होगा कि समुद्र मंथन के बाद अमृत निकला था, विष भी निकला था-और भी बारह चीजें निकली थीं। पुराणों को लिखनेवाले यह भूल गये कि असल में कोका कोला और पेप्सी कोला भी समुद्र मंथन से ही निकले थे। दोनों अमृत से थोड़े बहुत बेहतर तरल पेय हैं। सिकंदर और नेपोलियन के बाद विश्व विजय की इच्छा से एक सौ अठहत्तर देशों में कोला युद्ध चल रहा है। आप यह भी जानते हैं कि युद्ध और मुहब्बत में हर हथकंडा वाजिब माना जाता है। इन दोनों की विश्व विजय के युद्ध में भी टक्कर इस बात की है कि पृथ्वी पर कोका कोला का राज चलेगा या पेप्सी कोला का ? मैं पहले कह चुका हूँ कि पुराणों के लेखकों ने सर्वोच्च पेय का श्रेय अमृत को देकर कोक और पेप्सी दोनों के साथ अत्याचार किया। आज कहाँ गया अमृत ? वह कहीं नहीं मिलता। अब तो मैदान में दो ही योद्धा बचे हैं-कोक और पेप्सी। एक का नारा है-‘यही है राइट च्वायश बेबी’-अर्थात् तमाम बेबियों के लिए पेप्सी से ज्यादा बेहतर च्वायश हरगिज नहीं हो सकती। अलबत्ता कोक ने अपने पेय को असली चीज कहा है। इसका मतलब है, पेप्सी सहित बाकी सारे पेय नकली हैं।

अभी इस हफ्ते दिल्ली में दो बड़ी घटनाएँ हो रही हैं-एक, कांग्रेस महासमिति का अधिवेशन और दूसरा, कोका कोला का पुनरागमन। विज्ञापन और प्रचार के सैकड़ों तरीकों से जनमानस को होल्ड इन बैनर्स कर लेने की होड़ देख ऐसा लगता है कि कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन के मुकाबले कोक का पुनरागमन कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। इसकी महिमा ही कुछ ऐसी है। आर्ट पेज पर एक सप्लीमेंट डालकर कोका कोला ने अपने पेय को ग्यारह ढंग से गुणकारी और महत्वपूर्ण बताया है। मैं उन महत्व के मुद्दों को जानता हूँ। मुझे यह भी पता है कि कांग्रेस महाधिवेशन के मुकाबले बच्चे-बच्चे की जबान पर कोका कोला की रट है। अगर मैं किसी दूसरे लोक से आया तो मैंने निश्चय ही इसे पेय के बजाय महानायक ही समझा होता। मेरे हिसाब से इसके और पेप्सी के गुण काफी समान हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि इसके पीने से कोई हानि नहीं होती; जबकि फलों का रस, दूध, छाछ, ठंडाई, शरबत से लेकर जलजीरा तक के पीने से भारी नुकसान होने के संभावना बन जाती है। मैं तो फिर यही कहूँगा कि पेप्सी और कोक दोनों में से कोई भी नुकसानदेह नहीं है; क्योंकि प्रति बोतल आठ रुपए का नुकसान भी कोई नुकसान है। इसकी दूसरी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह चमत्कारिक रूप से सस्ता पेय है, जिसे लोग महँगा खरीदेने में मजा लेते हैं। बाकी पेय के उत्पाद मूल्य और विक्रय मूल्य में एक रिश्ता होता है। जैसे लस्सी। डेढ़ रुपए के दही से चीनी-बर्फ मिलाकर पाँच रुपए की लस्सी बनी तो आधा लाभ हुआ। पेप्सी या कोक के साथ यह दकियानूसी तथ्य नहीं है।

विद्वानों में मतभेद है कि इस राइट च्वायश या रीयल थिंग के अंदर पेय ज्यादा कीमती है या बोतल ? बोतल तो वह वापस ले लेते हैं, चाहे उसकी कोई भी कीमत हो। अलबत्ता बोतल के सिरे को होंठों से पकड़ने का स्वर्गिक आनंद जरूर होता है। उस आनंद के लिए आठ रुपल्ली दे देना कौन सी बड़ी बात है। सो, अपनी तो सिफारिश साफ है कि ‘भूख लगे तो टी.वी. देख’ और ‘प्यास लगे तो कोका पी।’ बल्कि भूख को बरदाश्त करके भी गरीब से गरीब आदमी को भी रुपए-दो रुपए बचाते हुए जब भी आठ रुपए हो जाएँ तो एक कोला जरूर पीना चाहिए; क्योंकि यह अमृत से भी श्रेष्ठ है। अमृत को किसने देखा है ? वह तो निराकार है। कोला तो साकार है-हर नुक्कड़ पर उपलब्ध, ईश्वर की तरह सर्वव्यापी। आपका कोला ! पेप्सी कोला या कोका कोला !!

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