जी हाँ, विदेशी

आज खुश होना चाहिए। अब भारतीय अदालतों में विदेशी वकील पैरवी कर सकेंगे-लंदन के, वाशिंगटन के, बर्लिन के, जगह-जगह के। हमें उत्सव मनाना चाहिए। अब यूरोप और अमेरिका में चार्टर्ड एकाउंटेंट अपनी ओर हमारी कंपनियों का लेखा परीक्षण करेंगे, हमारा स्टैंडर्ड सुधरेगा। लेकिन हमारी स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी क्या जब विदेशी बीमा कंपनियाँ हमारी बीमा व्यवस्था सँभालेंगी ? कौन किसकी देखभाल करता है आज के जमाने में। मेरा खयाल है, देश की अपनी बीमा कंपनियाँ पापड़ बेलने का काम करेंगी, यही फायदे का काम होगा।

गौरव की एक बात और है, विदेशी बैंक दनादन अपना जाल फैला रहे हैं। ये तो शेयर घोटाले में भी सबसे बड़े अपराधी पाए गए। उन्हीं के खातो से धन बाहर जाकर, आसनी से लापता होता रहा। इन्हें थोड़ा सा अर्थदंड भुगतना पड़ा। इससे कोई बात नहीं, ये दिल दनदनाने लगे हैं। क्रेडिड कार्ड की असल होड़ विदेशी बैकों में ही है। अब हम आजादी से अगले दो साल की कमाई इस साल ही खर्च कर सकेंगे। इस तरह लाखों मालदार लोगों और बड़ी-बड़ी तनखावालों के पैसे सँभालने की तमीज देशी बैंकों में कहाँ। सो, सौभाग्य से इनका आगमन हुआ है।

हम अपने लिए अच्छी खबर नहीं बना सकते थे। उसका कितना बुरा असर देश पर पड़ रहा था, इसकी आप कल्पना नहीं कर सकते थे। पैसा हो और अच्छी शराब न मिले, नकली स्कॉच हजार-बारह सौ में मिले। देश का पैसा मिट्टी में मिल रहा था। अब हम भारत निर्मित स्कॉच पी सकेंगे। सिर्फ उसका कंसंट्रेट और पानी विदेश से आएगा। हमारी गायों-भैसों को अच्छा गोबर देने की तमीज नहीं। सो गोबर भी विदेश से आएगा। हवाई जहाज और होटल की बुकिंग अब कोई बीस सेकेंड में विदेशी कंपनियाँ कर देंगी। हमारे छोटे-मोटे ट्रेवल एजेंट इतने निकम्मे हैं कि कई बार बुकिंग में आधा घंटा या एक घंटा लगा देते हैं। देर करते हैं तो भुगतें। अब इन निकम्मों का धंधा चौपट हो जाएगा। विदेशी कारों की भरमार है। फिसड्डी फिएट और अंबेसडर अब बाजार में लोकप्रिय नहीं है। यही होना चाहिए। खास बात यह है कि सबकुछ होगा, मगर हमारी स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी।

खाने-पीने की पचासों चीजें बाजार में अवतरित हो ही गई हैं। अब हमारे बच्चों का स्तर विश्व के दूसरे देशों के मुकाबले का हो गया है। उनके जूते एक-से-एक विदेशी नस्ल के हैं। जींस और अमेरिकी झंडेवाले छापे का शर्ट भी है। जो बच्चे नहीं खरीद सकते वे कम-से-कम दूसरों की देख तो सकते हैं। पहले तो हम देखने को भी तसरते थे। क्या यह आनंद का विषय नहीं है कि अचानक हमारे टेलीविजन में विश्व भर के कार्यक्रम आने लगे हैं। अब मार-धाड़, नितंबांदोलन देखने के लिए तरसता नहीं। जो कुछ है, खुल्लम-खुल्ला है।

दवा-दारू के मामलों में भी यही है। तीन-चौथाई दवाइयाँ विदेशी कंपनियों की है। सो हमारा स्वास्थ्य भी उनके हवाले है-मिलावट के डर से बिलकुल मुक्त, शानदार पैकिंग में। ऐसी पैकिंग के बिना बीमार हुए इन दवाइयों को खाने का जी करने लगे। अब खेती में भी क्रांति होगी। लेकिन कोई यह नहीं कह सकता कि इससे हमारी स्वतंत्रता पर आँच आएगी। बल्कि वह ज्यादा सुरक्षित रहेगी, क्योंकि वह उनके ही हवाले रहेगी, ताकि हम अपनी स्वतंत्रता से खिलवाड़ करके उसे बरबाद न कर दें।

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