गंगा

गंगा दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है जो उत्तरी भारत में बहती है। गंगा का उदगम हिमालय से भागीरथी के रुप मे गंगोत्री हिमनद से उत्तरांचल में होता है। बाद में यह देवप्रयाग के पास अलकनंदा से मिलती है। इसके बाद से गंगा उत्तरी भारत के विशाल मैदानी इलाके से होकर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में बहुत सी शाखाओं में विभाजित होकर मिलती है। इनमें से एक शाखा का नाम हुगली नदी भी है जो कोलकाता के पास बहती है, दूसरी शाखा पद्मा नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है। इस नदी की पूरी लंबाई लगभग 2507 किलोमीटर है। इस नदी और बंगाल की खाड़ी के मिलन स्थल पर बनने वाले मुहाना को सुंदरवन के नाम से जाना जाता है जो विश्व की बहुत सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और मशहूर बंगाल टाईगर का गृहक्षेत्र है।

यमुना नदी यूँ तो अपने आप में एक स्वतंत्र और बड़ी नदी है, गंगा में प्रयाग यानि इलाहाबाद में आकर मिलती है। डालफिन की दो प्रजातियाँ गंगा में पाई जाती हैं। जिन्हें गंगा डालफिन और इरावदी डालफिन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गंगा में पाई जाने वाले शार्क की वजह से भी गंगा की प्रसिद्धि है जो बहते हुये पानी में पाये जानेवाले शार्क के लिहाज से काफी दिलचस्प है।
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हिंदू धर्म में गंगा नदी:
गंगा को हिन्दू धर्म में एक देवी के रूप में निरुपित किया गया है हिन्दुओं के बहुत से पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे बसे हुये हैं जिनमें वाराणसी, हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। गंगा में डुबकी लगाने का मतलब पाप से छुटाकारा समझा जाता है। मरने के बाद लोग गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन की इच्छा भी रखते हैं। इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं।
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मिथकों के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीनों की बूँदों से गंगा का निर्माण किया। त्रिमूर्ति के दो सदस्यों के स्पर्श की वजह से यह पवित्र समझा गया।
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बहुत वर्षों के पश्चात एक राजा सगर ने जादुई रुप से साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की। एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक यज्ञ किया। यज्ञ के लिये घोड़ा आवश्यक था जो ईर्ष्यालु इंद्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सारे पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ॠषि के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ॠषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ॠषि का अपमान किया । तपस्या में लीन ॠषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं भष्म हो गये ।
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सगर के पुत्रो की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगे क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी। भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे । उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया । उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके संस्कार का राख स्वर्ग में जा सके।
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भगीरथ ने ब्रह्माकी घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों के आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके। गंगा को यह आदेश अपमानजनक लगा और उन्होंने समूची पृथ्वी को बहा देने का निश्चय किया, स्थिति भाँप कर भगीरथ ने शिव से प्राथना की और शिव गंगा के रास्ते में आ गये।
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गंगा जब वेग में पृथ्वी की ओर चली तो शिव ने अपनी जटाओं में उसे स्थान देकर उसका वेग कम किया। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये बहुत ही श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं।

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