सूखते हिमनद सूखती नदियां

वैज्ञानिकों ने वैश्विक गर्मी की गंभीरता स्पष्ट करते हुए कहा है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग रोकने के जल्द कारगर प्रयास नहीं किये गए तो वह दिन दूर नहीं जब हिमालयी नदियों के लिए उदगम स्रोत सारे ग्लेशियर पिघल कर खत्म हो जाएंगे और भारत-पाकिस्तान की गंगा, सिंधु व ब्रह्मपुत्र नदियों में नाम मात्र का जल रहने से भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में ही नहीं, चीन में भी पानी के लिए हाहाकार मच जाने वाला है। बांग्लादेश की इरावदी और चीन की यावितसी नदियों के उदगम स्रोत भी हिमालय के हिमनद-ग्लैशियर ही है जो ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हर साल एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ती गर्मी के कारण पिघलकर छोटे होते जा रहे हैं। इन्हीं हिम नदियों से पेयजल की आपूर्ति होती है जिनके बारे में आशंका है कि वर्ष 2010 तक ये हिमनद घटकर आधे रह जाएंगे और 2050 तक इनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार हिमलयी नदियों के पेयजल पर आश्रित भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन के लिए आगामी 50 वर्षों में पेयजल के अभाव का संकट पैदा हो जाने का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। तकरीबन 67% हिमनद तेजी से पिघल कर छोटे होते जा रहे हैं। गंगोत्री (गंगा का उदगम स्थल) 23 मीटर 75 फुट सालाना की दर से पिघल रहा है तो खुम्बू हिमनद तीन मील दुर तक सूख चुका है। पानी के स्रोतों-स्प्रिंग्स-तक सूख चुके हैं। हिमनद विशेषज्ञ जगदीश बहादुर के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का संकट निरंतर बढ़ता जा रहा है। एक वक्त था जब हिमालय पर 3 हजार हिमनद थे जिनसे पेयजल मिलता रहता था। नेपाल के हाइड्रोलौजी और मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख अरुण भक्त श्रेष्ठ के अनुसार हिमनदों के समाप्त हो रहे अस्तित्व से नेपाल सहित पूरे दक्षिण एशियायी इलाके में जल संकट का खतरा बढ़ने लगा है। जिस विष्णुमति नदी से नेपाल में बाढ़ आ जाया करती थी, अब वह मात्र एक नाले जैसी छोटी हो गई है।
दून दर्पण (देहरादून), 12 Sep.2005

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