पिछले 12 सालों में नहर आधारित सिंचाई क्षेत्र में कोई बढ़ोतरी नहीं

100 000 करोड़ खर्च, लेकिन कोई अतिरिक्त लाभ नहीं

सन् 1991-92 से 2003-04 तक (अंतिम वर्ष जिसके लिए आंकड़ें उपलब्ध हैं) के 12 सालों में, वास्तविक जमीनी आंकड़ों पर आधारित केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के रिपोर्ट के अनुसार नहरों से शुध्द सिंचित इलाकों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। अप्रैल 1991 से मार्च 2004 तक की अवधि में, देश ने नहर आधारित सिंचित इलाकों में बढ़ोतरी के उद्देश्य से बड़ी व मध्यम सिंचाई परियोजनाओं में रुपये 99610 करोड़ व्यय किये हैं। स्वयं सरकारी आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि इस पूरे व्यय से पिछले 12 सालों में देश के बड़े बांधों की नहरों द्वारा शुध्द सिंचित इलाके में एक भी एकड़ की बढ़ोतरी नहीं हुई है। यह बहुत गंभीर चिंता का कारण होना चाहिए एवं जल संसाधन मंत्रालय, योजना आयोग एवं राज्यों को कुछ कठिन सवालों का जवाब देना होगा।

अगस्त 1986 में राज्य के सिंचाई मंत्रियों को सम्बोधित करते हुए बड़ी सिंचाई परियोजनाओं पर बोलते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने कहा था, ''शायद, हम विश्वास से कह सकते हैं कि इन परियोजनाओं से लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ है। सोलह सालों से हमने धन गंवाया है। सिचांई नहीं, पानी नहीं, पैदावार में कोई बढ़ोतरी नहीं, लोगों के दैनिक जीवन में कोई मदद नही, इस तरह उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।'' इस उध्दरण को आज उपयोग करना हो तो उसमें सिर्फ एक बदलाव की आवश्यकता होगी : शायद शब्द को हटा देना पड़ेगा।

सन 1991-92 में पूरे देश में नहर द्वारा शुध्द सिंचित इलाका 177.9 लाख हेक्टेयर था। उसके बाद 2003-04 तक, नवीनतम वर्ष जिसके लिए आंकड़े मौजूद हैं, के सभी सालों में नहरों द्वारा शुध्द सिंचित इलाका न सिर्फ 177.9 लाख हेक्टेयर से कम रहा बल्कि वह लगातार कम हो रहा है, जिसे निम्न ग्राफ से देखा जा सकता है।

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