विश्वबैंक के पानी निजीकरण की अवधारणा की अलोकप्रियता
विश्वबैंक के पानी निजीकरण की अवधारणा की अलोकप्रियता व्यापक रूप से उसके परिणामों के अनुभवों के कारण है। जो वादा किया गया था, परिणाम उससे भिन्न हैं। कंपनियां आशा के अनुरूप पूंजीनिवेश करने में असफल रही हैं। आंतरिक ढांचों में निजी निवेश 1990 के दशक के अंत तक कम हो रहे थे और विकास बैंकों का पूंजीनिवेश भी घट रहा था। कीमतें बढ़ीं हैं जो पूंजी पर कंपनियों की जरूरत के मुनाफे को प्रतिबिंबित करती हैं। जब अनुबंधों में सुनिश्चित किए गए लक्ष्य पूरे नहीं हुए तो उन्हें पूरा करवाने के बजाय अनुबंधों में संशोधन कर दिया गया। कंपनियों के व्यवहार को नियंत्रित कर सकने के लिए विनियामकों के पास न अधिकार थे और न क्षमता। मुद्रा की गतिविधियों और आर्थिक संकटों ने इन विरोधाभासों को और तीखा कर दिया : अर्जेटीना के निजीकृत जलसंस्थान अब दिवालिया हैं। लैटिन अमेरिका में निजी जल रियायतों को दिये गये पूरे ध्यान और समर्थन के बावजूद जहां तक गरीबों तक सेवाएं पहुंचाने की बात है उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र से बेहतर काम नहीं किया। दो बड़े एशियाई शहरों मनीला और जकार्ता में, जहां निजी कंपनियां कार्यरत थीं, पानी की कमी का स्तर उन अधिकतर शहरों की तुलना में बहुत खराब है जहां पानी का प्रबंधन सार्वजनिक रूप से होता है। अत: विकासशील देशों में उपभोक्ताओं, मजदूरों, पर्यावरणविदों, नागरिक समाज के अन्य समूहों तथा राजनीतिक दलों की ओर से पानी के निजीकरण का प्रबल विरोध हो रहा है और यह विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है।
नाममात्र के फायदों, अनपेक्षित जोखिमों और राजनीतिक विरोध के कारण बहुराष्ट्रीय जल कम्पनियों ने अपने घाटे कम करने का निश्चय किया है। जनवरी 2003 में सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनी स्वेज ने घोषणा की कि वह विकासशील देशों में अपने मौजूदा निवेशों का एक तिहाई हिस्सा हटा लेगी। वेओलिया तथा टेम्स वाटर भी अनुबंधों से हट रही हैं।
घाटे पूरे करने और अपने अपेक्षित मुनाफों का दावा करने के लिए ये तीनों कंपनियां राजनीतिक और कानूनी कार्रवाइयों का इस्तेमाल कर रही हैं।
विश्व बैंक ने जल सेवाओं के विस्तार के लिए प्रत्यक्ष निवेश करने में निजीकरण की विफलता की बात स्वीकार की है। उसने निजी कम्पनियों को अधिक मजबूत गारंटियां प्रदान करने के लिए नये उपकरण ईजाद किये हैं और अब वह इस क्षेत्र में व्यापार अवसरों के अन्य रूपों की तलाश कर रहा है जैसे शहरों के आस-पास के क्षेत्रों में पानी बेचने वालों को फ्रेंचाइजी देना। लेकिन विश्वबैंक, अन्य विकास बैंक तथा दानकर्ता सार्वजनिक क्षेत्र की जल-कम्पनियों को सहारा देने में अब भी हिचकिचाते हैं जबकि पूरी दुनिया की 90 प्रतिशत जल और सफाई सेवाओं की जिम्मेदारी इन्हीं कम्पनियों पर है।
कम्पनियों और विश्व बैंक की इन प्रतिक्रियाओं का सरोकार उनकी अपनी चिंताओं से तो है किंतु वे उन लोगों के लिए कुछ नहीं करतीं जिन्हें ऐसी जलापूर्ति और सफाई व्यवस्था चाहिए जो उनकी पहुंच के भीतर हो। इसके लिए नये तरीके उन्हीं अभियानकर्ताओं की ओर से आये हैं जो निजीकरण का विरोध करते हैं।
“लेके रहेंगे अपना पानी” से पाठ 6...............
वेब प्रस्तुति- मीनाक्षी अरोड़ा
साभार-इंसाफ