सूखे की मार से लोग मप्र से कर रहे हैं पलायन

टीकमगढ़, 13 अप्रैल (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के करमौरा गांव में रहने वाला 75 वर्षीय मोहन यादव असहाय होकर अपनी मौत का इंतजार कर रहा है। घोर गरीबी में गुजर बसर कर रहा उसका परिवार जब अपने पड़ोसियों से खाना मांग-मांग कर शर्मिदा हो गया तब उसने काम की तलाश में दिल्ली जाने का फैसला किया।

परिवार का यह फैसला मोहन के लिए और अधिक पीड़ा लेकर आया। वृद्धावस्था के कारण एक ओर जहां वह परिवार के साथ बाहर जाने में असमर्थ था वहीं दूसरी ओर उसका अशक्त शरीर उसे अपनी आजीविका के लिए काम करने की इजाजत भी नहीं दे रहा था। परिस्थितियों से निराश मोहन ने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की।

मध्य प्रदेश के कई जिलों के लिए ऐसे वाकये नए नहीं हैं, लगातार दो दशकों से चले आ रहे सूखे और अपर्याप्त वर्षा ने लोगों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। इस साल राज्य के 48 में से 39 जिले बरसात की कमी का सामना कर रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि पानी बाजार में बिकने लगा है।

जिले के घूरा गांव की झीतबाई कहती हैं, "हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी दिन हमें पानी खरीद कर पीना पड़ेगा।" गांव के पास स्थित एक कुएं का मालिक 50 रुपये में दो लोटा पानी देता है। कोई दूसरा विकल्प न होने से लोग मजबूरन इतनी बड़ी कीमत चुका कर पानी खरीदने के लिए विवश हैं।

हिमारपुरा गांव में लगाए गए आठ हैंडपंपों में से एक भी काम नहीं कर रहा है। गांव में ज्यादातर आबादी केवट समुदाय के लोगों की है जिनका पेशा है मछली मारना। पिछले चार सालों से लगातार पड़ रहे सूखे के कारण जब क्षेत्र की सारी नदियां सूख गईं तो इस समुदाय के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया, नतीजतन समुदाय के 60 फीसदी लोग यहां से पलायन कर गए हैं।

टीकमगढ़ जिले के दूसरे गांवों में भी स्थिति इससे ज्यादा बेहतर नहीं है। जिले के जतारा ब्लाक के करमौरा गांव के 600 परिवारों में से 400 अपने घर छोड़ कर जा चुके हैं। ये प्रवासी मजदूर दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बेहद कम मेहनताने पर काम करने के लिए मजबूर हैं। गांव वालों से बातचीत करने पर पता चला कि लोगों के घर छोड़कर बाहर जाने को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता।

लोगों के घर छोड़ कर जाने के आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो इसका सबसे ज्यादा असर अहिरवार (दलित) समुदाय पर पड़ा है। जतारा ब्लाक से जाने वाले 400 परिवारों में से 40 फीसदी अहिरवार समुदाय के हैं। पहले के तीन-चार महीनों के मुकाबले अब इन गांवों के लोग 6-8 महीनों के लिए अपना घर छोड़ कर परदेस जाने लगे हैं। पुरुषों और स्त्रियों दोनों के बाहर जाने के कारण गांव में केवल बूढ़े और अशक्त लोग ही बचते हैं।

सरकार द्वारा लोगों का पलायन रोकने के लिए किए जा रहे उपाय भी काम नहीं आ रहे हैं। बैरवार खास में 894 परिवारों को रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत रोजगार की आवश्यकता थी लेकिन यहां सिर्फ 30 परिवारों को ही रोजगार उपलब्ध कराया जा सका। योजना के अनुसार हर परिवार को दो साल में दो सौ दिनों तक रोजगार दिया जाना है लेकिन वर्ष 2006-07 के दौरान करमौरा गांव के 547 परिवारों में से केवल एक को 100 दिनों तक रोजगार मिला। ज्यादातर परिवारों को योजना के अनुसार 100 दिन की बजाय साल में केवल 30-40 दिन का रोजगार ही मिला।

दो दशकों से सूखे की मार झेल रहे इस राज्य में सरकार द्वारा पर्याप्त मात्रा में राहत कार्य न किए जाने से स्थितियां दिन पर दिन खराब होती जा रही हैं। सरकार को चाहिए कि लोगों का पलायन रोकने के लिए यहां पर्याप्त मात्रा में रोजगार और स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के साथ ही यहां के निवासियों को जल संरक्षण की तकनीक से भी परिचित कराए।

(सुमिका राजपूत सिंबायोसिस संचार संस्थान, पुणे की छात्रा हैं और विकास संवाद भोपाल के साथ मिलकर मध्यप्रदेश में सूखे पर प्रशिक्षु के रूप में कार्य कर रही हैं।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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