इंदौर में दम तोड़ते तालाब

हम नहीं संभाल पा रहे रजत बूंदों को, ध्वस्त होती तालाबों की चैनल व्यवस्था

सचिन शर्मा

इंदौर। पानी की मनुष्य के जीवन में क्या महत्ता है इसे बताने की शायद किसी को जरूरत नहीं है। यह सभी जानते हैं कि पुराने समाज में पानी को रजत बूंदों के माफिक संभालकर रखा जाता था। इंदौर भी इस मामले में अपवाद नहीं था और होल्कर स्टेट में इसके लिए काफी काम हुआ। दक्षिणी इंदौर में रेन वॉटर हारवेस्टिंग पर एेसा काम हुआ है कि वहां के तालाबों का पानी शहर आज तक पी रहा है। लेकिन अब दिन पर दिन हालत खस्ता होती जा रही है। तालाब दम तोड़ रहे हैं और स्थानीय जनता के साथ-साथ शासन और प्रशासन भी उनकी दुर्दशा की ओर आंख उठाकर नहीं देख रहा है।

एेसी थी तालाबों की चैनल व्यवस्था.....
तालाबों के चैनल में कुल सात तालाब और अंत में खान नदी हुआ करती थी। मुंडी तालाब में पहाड़ों का पानी बहकर आता था। मुंडी के भरने के बाद पानी लिंबोदी तालाब और फिर बड़े बिलावली तालाब में पहुंचता था। इसका ओवरफ्लो पाल के दूसरी तरफ बने छोटे बिलावली तालाब में पहुँचता था। यहां से पिपल्यापाला और फिर इसके पूरा भरने के बाद ओवरफ्लो (पानी) नहर भंडारा में चला जाता था। चैनल का अंत खान नदी में जाकर होता था, यहां नहर भंडारा से बहने वाला पानी आकर मिलता था। अब ज्यादातर तालाब संघर्ष कर रहे हैं और खान नदी नाला बन चुकी है।

फायदा....
-पूरी योजना नेचुरल ग्रेडिएन्ट के आधार पर डिजाइन की गई थी।
-जमीन की स्वाभाविक ढलान (स्लोप) को आधार बनाकर तालाब बने थे।
- तालाब कुओं को रिचार्ज कर उनका वॉटर लेवल बढ़ाते थे।

ये हैं वर्तमान हालात....
- मुंडी तालाब पर खेती हो रही है। यह सिर्फ दो-तीन माह तक भरा रहता है।
- लिंबोदी ज्यादातर समय सूखा पड़ा रहता है। इसके कुछ भाग पर खेती होती है बाकी भाग पर नमी की वजह से उगी घास को मवेशी चरते रहते हैं। कई बार तालाब के सिर्फ एक छोटे से हिस्से में पानी भरकर रह जाता है।
-बड़ा बिलावली और छोटा बिलावली तालाब इन गर्मियों में थोड़ा-बहुत भरा हुआ है। लेकिन कुछ सालों में इसकी तह में पड़ी दरारों को लोग देख चुके हैं।
- पिपल्यापाला में भी कई साल सिर्फ थोड़ा सा पानी आकर रह जाता है। लोग इसे भी जब-तक सूखा हुआ देख चुके हैं।
- नहर भंडारा में पानी रोकने के लिए नगर निगम ने स्टॉप डैम बनाया है।
- तालाबों को कड़ी के तौर पर पिरोने के लिए बनाया गया राऊ चैनल गाद से ग्रसित है। पांच साल पहले तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय ने इस चैनल के साथ-साथ राऊ से लेकर बिलावली तक की पैदल यात्रा की थी। उन्होंने आश्वासन दिया था कि चैनल को गाद से मुक्त कराएँगे लेकिन आज भी यह चैनल कई जगह गाद से भरा हुआ है। कुछ जगह अतिक्रमण भी है।

इसलिए नहीं आ रहा तालाबों में पानी...
जो तालाब पहले सूखने का नाम नहीं लेते थे अब उनमें से कईयों में लगभग पूरे साल खेती होती है। इसके लिए जनता की कार्यप्रणाली दोषी है। पानी की कमी के कुछ कारण इस प्रकार हैं।

- बरसात कम हो रही है। ४० साल पहले इंदौर में ४०-५० इंच बारिश होती थी। अब लगातार दो-दो साल तक २५-३० इंच तक ही पानी गिरता है।
- शहर के आसपास के पहाड़ उजाड़ हो रहे हैं। पहले पहाड़ों की हरियाली ना सिर्फ बरसात को आकर्षित करती थी बल्कि पानी का बहाव भी अच्छा बनाती थी। अब पानी के साथ मिट्टी ज्यादा बहती है। यह तालाबों में पहुंचकर गाद बन जाती है और उनकी गहराई कम करती है। पहले पानी छोटे-छोटे नालों के माध्यम से तालाबों तक पहुँचता था अब उन नालों और तालाबों के कैचमेंट एरिया अतिक्रमण की चपेट में आते जा रहे हैं, इससे तालाबों में पानी पहुँचना भी दूभर होता जा रहा है।

बोरिंग पर हो कड़ी नजर...
कम हो रहे जंगल और अतिक्रमण के अलावा जनता भी जमीन से पानी खींचने में कोताही नहीं बरत रही है। बेतरतीब खुद रहे बोरिंग भी तालाबों और कुओं में पहुँचने वाले पानी को बिखेरकर खत्म कर देते हैं। इनकी मंजूरी प्रशासन को सोच-समझकर देनी चाहिए।
श्री नरेन्द्र सुराणा, पूर्व सिटी इंजीनियर, नगर निगम, इंदौर

तालाबों को जोड़ने की योजना पर काम....
राऊ चैनल के माध्यम से उक्त सभी तालाबों को जोड़ने की योजना पर हम काम कर रहे हैं। इसके अलावा घरों में रेन वॉटर हारवेस्टिंग का जो भी उपाय करता है उसे नगर निगम की ओर से संपत्तिकर में पहली बार में ६ प्रतिशत की छूट दी जाती है।
श्री एनएस तोमर, सिटी इंजीनियर, नगर निगम, इंदौर

तालाबों का प्रमुख विवरणः

बड़ा बिलावली छोटा बिलावली लिंबोदी पिपल्यापाला
निर्माण का वर्ष १९०६ १९०६ १९०६ १९००
क्षेत्रफल ३.३५ वर्ग किमी ....... ०.२६ वर्ग किमी ०.६३२ वर्ग किमी
अधि.जलस्तर ५७२ आरएल ५६४ आरएल ५७३.४७ आरएल .........
गहराई ३२.७५ फीट १२.५० फीट १४ फीट १६.५० फीट
कैचमेंट एरिया ४७ वर्ग किमी समान समान ०.६३२ वर्ग किमी
जल ग्रहण क्षमता ४१५ एमसीएफटी ....... १५ एमसीएफटी ...........
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