राहत के जरिए हो जल संरक्षण

मध्य प्रदेश में नदियों की कमी नहीं है. बड़ी नदियां तो हैं ही, छोटी नदियां तो अत्यधिक हैं. ये छोटी नदियां बारिश के दिनों में बड़ी नदियों को पानी देती हैं. अच्छी बारिश हो तो यह प्राय: बेहतर स्थिति में होती हैं, लेकिन बारिश के बाद इन नदियों के पानी के भंडारण की व्यवस्था प्राय: नहीं है. इस बार बारिश कम होने से स्थिति विषम है. बुंदेलखंड क्षेत्र में तो खेतों में दरारें पड़ी हैं और सिंचाई तो बहुत दूर पीने के पानी के भी लाले पड़े हैं. बड़ी नदियों में से एक काली सिंध में पानी का जल स्तर तेजी से घट रहा है. राजगढ़ जिले के सारंगपुर क्षेत्र के लिए इस नदी को जीवनदायिनी की संज्ञा दी गई है, लेकिन इस बार पानी की कमी के चलते इस क्षेत्र को अभावग्रस्त घोषित कर दिया गया. इसके बावजूद क्षेत्र की नदी व अन्य जलस्रोतों से पानी के खुले आम दोहन के कारण नदी का जलस्तर तेजी से गिर रहा है.
हालांकि जलस्रोतों के दोहन पर रोक लगा दी गई है. लेकिन किसान सिंचाई के लिए निरंतर जलस्रोतों से पानी ले रहे हैं. बारिश नहीं होने से स्थिति भयावह हुई है और इसका असर भूजल स्रोतों पर भी पड़ा है. पानी की कमी वाले क्षेत्रों में समस्या शुरू हो गई है. प्रदेश में ऐसी स्थितियां बनती रहती हैं, मगर इसके स्थायी हल की ओर बढ़ने की ईमानदार कोशिश अब तक नहीं की गई है. जल अभावग्रस्त तथा सूखा प्रभावित क्षेत्रों में बांध बनाने और पानी रोकने का काम शुरू किया जाना आवश्यक समझा जाना चाहिए. छोटी-छोटी नदियों में डैम और बांध बनाने का काम तो शीघ्रता से शुरू करने की जरूरत है.
इन क्षेत्रों की समस्याओं के मद्देनजर राहत कार्य शुरू नहीं किया गया. जबकि बांध बनाने और जल संरचनाएं तैयार करने के काम में अभावग्रस्त लोगों को लगाकर उन्हें राहत दी जा सकती है. नदियों को जलस्रोतों को संरक्षित करने की ठोस योजना बनाने के साथ-साथ यह ध्यान में लाना जरूरी है कि बड़ी नदियों को पानी देने वाले स्रोतों को भी संरक्षित किया जाए. राहत कार्यों को पूरी पारदर्शिता और तत्परता से लागू करने की भी जरूरत है. आने वाले दिनों में पेयजल की कमी को देखते हुए इसकी मुक6मल व्यवस्था की जानी चाहिए. बहरहाल, अब आवश्यकता इस बात की है कि इन समस्याओं का स्थायी हल निकाला जाए ताकि आने वाले दिनों में पीने और सिंचाई के लिए पानी की कमी नहीं हो.

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