क्या है पानी का लीकेज? कौन हैं लीकेजर? - मधु भादुरी

किसी सामान्य व्यक्ति से पूछा जाए कि पानी की लीकेज क्या है? तो उसका सीधा सा जवाब होगा जो आप और हम सभी जानते हैं कि पाइप के टूट-फूट हो जाने के कारण बर्बाद होने वाले पानी को पानी की लीकेज कहेंगे। पर दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) की परिभाषा के अनुसार 'नॉन रेवेन्यू वाटर' लीकेज हैं। दरअसल लीकेज के आड़ में डीजेबी अपनी उस कमी को छिपाने की कोशिश करता है जिसमें वह उस पानी को भी शामिल करता है, जिसका कर वह उगाह पाने में असमर्थ है। इस तरह का लीकेज लगभग 35 से 50 प्रतिशत है। लीकेजर हैं- दिल्ली पुलिस विभाग, अस्पताल, सीपीडब्लूडी, शिक्षण संस्थान, रेलवे सहित कई सरकारी एवं प्राइवेट संस्थान। जिनके झपर डीजेबी का लगभग 93 करोड़ रुपये का बकाया है। यह चौंकाने वाले तथ्य तब सामने आया जब सूचना के अधिकार के तहत श्रीमति मधुभादुरी (रिटायर्ड राजदूत) और वीपी श्रीवास्तव ने जब दिल्ली जल बोर्ड से दस लाख से ऊपर के बकायदारों की जानकारी मांगी। 93 करोड़ की राशि तो मात्र 10 लाख से ऊपर के बकायदारों की है। अगर इससे नीचे का आंकडा मांगे जाए तो 250 करोड़ रुपये से ज्यादा का ही बैठेगा।
'सैंया भये कोतवाल, तो डर काहे का' उक्त कहावत दिल्ली पुलिस पर सही चरितार्थ होती है। दिल्ली के सभी जोनों के विभिन्न थानों के ऊपर दिल्ली जल बोर्ड का करोड़ों का बकाया है, जिसे वह लेने में असमर्थ है। दिल्ली पुलिस जिसका 60प्रतिशत बजट लैप्स हो जाता है, जाने क्यों नहीं जलकर दे रहा है?
प्योर ड्रिंक्स मिनरल वाटर बनाने वाली कम्पनी जो लोगों की प्यास मिनरल वाटर के नाम पर दिल्ली जल बोर्ड के पानी से बुझाती है, की प्यास इतनी ज्यादा है कि उसे जल बोर्ड का 1करोड़ का बकाया देना उचित नहीं लगता। ऐसे ही और कई सरकारी एंव निजी संस्थान पानी का कर देना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। इन्हीं लीकेजर में कई प्राइवेट बिल्डर्स भी हैं, जैसे हूवर बिल्डर्स के मालिक पीके गुप्ता के ऊपर 23 लाख रुपये से ज्यादा का बकाया है और अपने फ्लैट क्रेताओं से वे जलकर वसूल चुके हैं, पर डीजेबी को कर देना नहीं चाहते। ऐसे मगरमच्छ लीकेजरों के सामने झुग्गी वालों का लीकेज तो कुछ भी नहीं है।
लीकेज का कारण पाइप लाइनों का जर्जर होना बताकर लीकेज फ्री बनाने का काम शुरू किया गया, जिसके लिए चालीस करोड़ रूपये के ठेके दिये गये। परन्तु नतीजा सीफ़र। हाल ही में डीजेबी के पूर्व मुख्य अधिकारी राकेश मोहन के यहां पड़े। छापे यही दर्शाते हैं कि बिना भ्रष्ट अधिकारियों की मदद के बिना कोई कैसे इतना बकायेदार हो सकता है?
डीजेबी के अधिकारियों से यह पूछना तो व्यर्थ होगा कि पिछले साल कितने बकायदारों के खिलाफ कानूनी कारवाई की गई? कितनों के कनेक्शन काटे गये? इस राशि को प्राप्त करने के लिए। इन सब बातों पर ध्यान दें तो दिल्ली जल बोर्ड की यह दलील की झुग्गी-झोपड़ी वाले पानी का कर नहीं देते और पानी की लीकेज कर पानी बर्बाद करते हैं तो उन सभी बकाएदारों के सामने ये झुग्गी-झोपडी वाले तो उंट के मुंह में जीरे के समान हैं।

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