राष्ट्रीय. भूजल दोहन दो अंतिम

जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि हालांकि भूजल की बहुत कमी वाले .डार्क एरिया. के रुप में वर्गीकृत क्षेत्र कुल ब्लाकों की संख्या की तुलना में काफी कम है1 लेकिन कृष िअर्थशास्त्र तथा नीतिगत अनुसंधान केन्द्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 1980 के मध्य से लेकर 1990 के मध्य तक डार्क अथवा ..क्रिटिकल ब्लाकों.. की संख्या में प्रतिवर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से वृध्दि हुई1 यदि वृदि्ध की यही दर बनी रहती है तो भी दो दशकों के अंदर देश के एक तिहाई ब्लाक डार्क ब्लाक श्रेणी में शामिल हो जायेंगे1 वर्ष 1995 में 50 प्रतिशत डार्क ब्लाक गुजरात. हरियाणा. पंजाब. तमिलनाडु. कर्नाटक और राजस्थान में स्थित थे

1960 से सघन खेती की वजह से भूजल का इतना ज्यादा दोहन हुआ है कि गुजरात के मेहसाणा जैसे क्षेत्रों तथा हरियाणा और पंजाब के कुछ भागों में किसानों द्वारा 500 मीटर तक की गहराई के ट्यूबवेल लगाना एक आम बात हो गयी है

प्रवक्ता ने कहा कि सिंचाई में भूजल का इस्तेमाल छोटे छोटे किसानों की मजबूरी है लेकिन जल प्रबंधकों के लिये भूजल की स्थायी उपलब्धता सुनिश्चित करना एक विराट चुनौती बनता जारहा है1 देश के कई हिस्सों खासकर शहरी हिस्सों में भूजल के स्तर में अत्यंत गिरावट एक प्रमुख समस्या बनती जा रही है1 पानी के कुल इस्तेमाल में शहरी जरुरत का हिस्सा लगभग आठ प्रतिशत है और देश के लगभग हर कस्बे और शहर के आसपास भूजल का स्तर गिर रहा है

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