पांच सालों में भूगर्भ के जलस्तर में आयी तेजी से गिरावट
हमीरपुर (उत्तर प्रदेश)। पिछले पांच सालों में चित्रकूट धाम मंडल में डेढ़ मीटर के भूगर्भ जलस्तर में गिरावट आयी है। सबसे अधिक जलस्तर महोबा में 1.83 मीटर गिरा है।
भूगर्भ के जलस्तर में पिछले पांच सालों में जबरदस्त गिरावट आयी है। जिसमें सबसे अधिक महोबा 1.83, चित्रकूट 1.82 मीटर जलस्तर गिरा है। जबकि हमीरपुर में 1.31 और बांदा में 1.14 मीटर जलस्तर में गिरावट आयी है। मगर पिछले 10 साल के आंकड़ों को देखा जाये, तो वे बहुत ही भयावह हैं। क्योंकि 10 साल में हमीरपुर जिले में 1.34 मीटर जलस्तर में गिरावट आयी है। जबकि अन्य जिलों में यह गिरावट आधा मीटर के आसपास रही है।
अधिशाषी अभियंता भूगर्भ जल विभाग ए एच जैदी बताते हैं कि बुंदेलखंड क्षेत्र में हरियाली क्षेत्र लगातार कम हो जा रहा है। वन की कमी और वृक्षों की मृत्युदर अधिक होने से वर्षा के घंटे और दिन कम होते जा रहे हैं। खेत का खेत पानी खेत में का संकल्प पूरा नहीं हो पा रहा है। शहरी क्षेत्रों में सीमेंट और कंकरीट का जंगल तैयार हो रहा है। शासनादेशों की मंशा के अनुसार इसे बंद होना चाहिए। हैंडपंपों के जरिए भूजल का अत्याधिक दोहन और दुरुपयोग हो रहा है। रीचार्ज पिट बनाने की जरूरत है।
बुंदेलखंड की धरती असमतल होने के कारण भूगर्भ की कम्पैक्टेड ग्रेनाइट की पर्तो के पाये जाने के कारण वर्षा के घंटे और दिन कम होते जा रहे हैं। क्योंकि भूजल की वांछित रिचार्जिग नहीं हो पा रही है। सूखे के कारण पेयजल व सिंचाई के लिए भूगर्भ जल भंडारों पर अत्यधिक दबाव बढ़ता जा रहा है। भूजल दोहन की मात्रा हर साल बढ़ रही है। इन्हीं सबका परिणाम है कि गोहांड के जिगनी और मौदहा के परछा व खंडेह में धरती फटने की घटनायें हुई। क्षेत्र में ग्राउंड वाटर की ओवर एक्प्लाइटेड कंडीशन का प्रबल संकेत है, जो चिंता का विषय है।
अधिशाषी अभियंता जैदी ने इसके लिए पांच उपाय सुझाये हैं। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड के सातों जनपदों में एक-एक वर्षा जल केंद्र की स्थापना की जाये, ताकि सूचनायें एकत्रित कर एक छत के नीचे सेवा उपलब्ध हो सके। चेकडैम व अन्य जल संभरण के संसाधनों को बनाया जाये। भूजल की रसायनिक अशुद्धियों वाले क्षेत्र में नलकूपों का आप्टिमम यूज हो सकता है। वर्षा जल को संरक्षित, संचयन और भंडारण किया जाये।