क्या – क्या उठापटक होगी नदियों के जोड़ने में

हिमालय नदी विकास
हिमालय नदी विकास में भारत, नेपाल तथा भूटान में गंगा एवं ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों पर भण्डारण जलाशयों का निर्माण करने तथा गंगा की पूर्वी सहायक नदियों के अतिरिक्त प्रवाह को पश्चिम में पथांतरण करने के उद्देश्य से नदियों के अन्तर्योजी तंत्र निर्माण और ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों को गंगा से तथा गंगा को महानदी से जोड़ ने पर जोर दिया गया है ।

प्रायद्वीपीय नदी विकास
प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को चार प्रमुख भागों में बांटा गया हैः

• महानदी-गोदावरी-कृष्णा-कावेरी नदियों को आपस में जोड़ना तथा इन बेसिनों में संभावित स्थानों पर जलाशयों का निर्माण: यह नदी तंत्रों को आपस में जोड़ ने की सबसे बड़ी योजना है जिसमें महानदी तथा गोदावरी के अतिरिक्त जल को कृष्णा तथा कावेरी नदियों के द्वारा दक्षिण में जल आवश्यकता वाले क्षेत्रों को अन्तरित करने का विचार है।

• मुंबई के उत्तर में तथा तापी के दक्षिण में पश्चिमोवर्ती प्रवाही नदियों को आपस में जोड़ना: इस योजना में इन धाराओं पर यथा संभावित संख्या में ईष्टतम जलाशयों के निर्माण तथा उन्हें आपस में जोड़ कर पर्याप्त प्रमात्रा में जल उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है जिससे कि उन क्षेत्रों में जल अन्तरित किया जा सके जहां अतिरिक्त जल की आवश्यकता है। इस योजना में जल आपूर्ति नहर को मुंबई महा नगरीय क्षेत्रों में ले जाने तथा महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों को सिंचाई उपलब्ध करवाने का भी प्रबंध है।

• केन-चंबल नदियों को आपस में जोड़ना: इस योजना में मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के लिए एक जल-ग्रिड तथा अन्तः संयोजी नहर जिसमें यथा संभव संख्या में जलाशय हों, का प्रावधान है।

• अन्य पश्चिमोवर्ती प्रवाही नदियों का पथांतरण: ''पश्चिमी घाटों'' के पश्चिमी ओर भारी मात्रा में वर्षा से असंख्य धाराएं आती हैं जो अरब सागर में गिरती हैं। केरल की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तथा कुछ जल पूर्व में स्थित सूखा-प्रभावित क्षेत्रों को अंतरण करने हेतु एक अन्तः संयोजी नहर तंत्र के निर्माण की योजना बनाई जा सकती है जिसमें पर्याप्त मात्रा में भण्डारण जलाशय भी हों।

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