नदी: महानदी की संस्कृति का प्रवाह

छत्तीसगढ़ की धरती नदियों से समृद्ध है। प्राचीनकाल से यह क्षेत्र नदी-संस्कृति का पोषक रहा है । महानदी से लेकर छोटी-छोटी नदियों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया है। उसे सींचा है और उसके तट पर बसे हैं अनेक प्राचीन नगर जो इतिहास के पन्नों में अपने वैभव की कहानी कहते हैं। नदी-देवियाँ भी इस संस्कृति की सबसे बड़ी प्रमाण हैं ।

ऋषि मुनियों की तपस्थली और ऋंगी ऋषि की तपोभूमि सिहावा से निकली है विशाल महानदी । प्राचीन ग्रंथों में चित्रोत्पला के नाम से ख्याति प्राप्त महानदी छत्तीसगढ़ की आर्थिक समृद्धि का भी आधार है । महानदी की पतली-सी धारा बहते-बहते विशाल रुप लेती है और न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि उड़ीसा की संस्कृति को पोषित करते हुए बंगाल की खाड़ी में समा जाती है । महानदी ने छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक नदी-सभ्यता को जन्म दिया था । छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी सिरपुर महानदी के तट पर स्थित है । महानदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करती है । महानदी की घाटी की अपनी विशिष्ट सभ्यता है जो इतिहास में दर्ज है । महानदी और उसकी सहायक नदियाँ पंजाब की सिंधु और उसके सहायक नदियों के समान गौरव-गाथा से समृद्ध है । महानदी की विशालता और इसके महत्व को देखकर इसे महानदी की उपाधि दी गयी है।

ऐतिहासक ग्रंथों के अनुसार महानदी और उसकी सहायक नदियाँ प्राचीन शुक्लमत पर्वत से निकली हैं । इसका प्राचीन नाम मंदवाहिनी भी था ऐसा उल्लेख न केवल इतिहासकार ही नहीं बल्कि भूगोलविद् भी करते हैं । सिहावा से निकलकर राजिम में यह जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है तब तक विशाल रुप धारण कर चुकी होती है । ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है । महानदी की धारा इस धार्मिक स्थल से मुड़ जाती है और दक्षिण से उत्तर के बजाय यह पूर्व दिशा में बहने लगती है । संबलपुर में जिले में प्रवेश लेकर महानदी छ्त्तीसगढ़ से बिदा ले लेती है । 550 मील लंबी अपनी पूरी यात्रा का आधे से अधिक भाग वह छत्तीसगढ़ में बिताती है ।

इतिहास के तथ्य यह भी बताते हैं कि एक समय में महानदी आवागमन का साधन बन जाती थी । नाव के द्वारा लोग महानदी के माध्यम से यात्रा करते थे । व्यापारिक दृष्टि से भी यह यात्रा उपयोगी थी । इतिहासकार उल्लेख करते हैं कि पहले इस नदी के जलमार्ग से कलकत्ता तक वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था । छत्तीसगढ़ के उत्पन्न होने वाली अनेक वस्तुओं को महानदी और उसकी सहायक नदियों के मार्ग के समुद्र-तट के बाजारों तक भेजा जाता था। महानदी पर जुलाई से फरवरी के बीच नावें चलती थी । आज भी अनेक क्षेत्रों में लोग महानदी में नाव से इस पार से उस पार या छोटी-मोटी यात्रा करते हैं । राज्य बनने(सन्2000) के बाद शासन इस संभावना की तलाश में है कि कैसे पुन: महानदी के माध्यम से यात्रा के पड़ाव को आरंभ किया जा सके ।

महानदी की घाटी की अपनी विशिष्ट सभ्यता है । इस ऐतिहासिक नदी के तटों से शुरु हुई यह सभ्यता नगरों तक पहुँची । राजिम में प्रयाग की तरह महानदी का सम्मान है । हजारों लोग यहाँ स्नान करने पहुँचते हैं । शिवरीनारायण में भी भगवान जगन्नाथ की कथा है । महानदी बेसिन भूगोल के लिए विशिष्ट स्थान रखता है । महानदी प्रवाह प्रणाली के अनुरुप महानदी का विकास पूर्ण रुप से स्थलखंड के ढाल के स्वभाव के अनुसार हुआ है इसलिए एक स्वाभावोद्भुत जलधारा है । प्रदेश की सीमान्त उच्च भूमि से निकलने वाली महानदी की अन्य सहायक नदियाँ केन्द्रीय मैदान की ओर प्रवाहित होती हुई महानदी से समकोण पर मिलकर अपने जल संचय के लिए विवश हैं । नदियों की जलक्षमता के हिसाब से यह गोदावरी के बाद दूसरे क्रम पर है ।

महानदी बस्तर के कांकेर में पानीडोंगरी पहाड़ियों पर पहुँचकर बस्तर की संस्कृति को आत्मसात करती है । पैरी नदी भी इसमें समाहित होती है । शिवनाथ नदी छत्तीसगढ़ की दूसरी बड़ी नही है जो महानदी में शिवरीनारायण में मिलती है । छत्तीसगढ़ में 286 कि.मी. की यात्रा के इस पड़ाव में महानदी सीमांत सीढ़ियों से उतरते समय छोटी-छोटी नदियाँ प्रपात भी बनाती हैं ।

महानदी के तटवर्ती क्षेत्रों और आसपास हीरा मिलने के तथ्य भी मिले हैं । गिब्सन नामक एक अंग्रेज़ विद्वान ने अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख भी किया है । उसके अनुसार संबलपुर के निकट हीराकूद अर्थात् हीराकुंड नामक स्थान एक छोटा-सा द्वीप है । यहाँ हीरा मिला करता था । इन हीरों की रोम में बड़ी खपत थी । महानदी में रोम के सिक्के के पाये जाने को वे इस तथ्य से जोड़ते हैं । व्हेनसांग ने भी अपनी यात्रा में लिखा था कि मध्यदेश से हीरा लेकर लोग कलिंग में बेचा करते थे, यह मध्यदेश संबलपुर ही था । अली युरोपियन ट्रेव्हलर्स इन नागपुर टेरीटरी नामक ब्रिटिश रिकार्ड जो सन 1766 का है में उल्लेख है कि एक अंग्रेज़ को इस बात के लिए भेजा गया था कि वह संबलपुर जाकर वहाँ हीरे के व्यापार की संभावनाओं का पता लगाये । हीराकुंड बांध भी इसी महानदी को बांध कर बनाया गया है ।

महानदी की यह सभ्यता आज भी विद्यमान है और छत्तीसगढ़ की पहचान है ।

डॉ. तृषा शर्मा
वैभव प्रकाशन
अमीन पारा, रायपुर, छत्तीसगढ़ - 492010

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