वर्षा के पानी का संरक्षण - आशीष गर्ग

पानी की समस्या आज भारत के कई हिस्सों में विकराल रूप धारण कर चुकी है। इस समस्या से जूझने के कई प्रस्ताव भी सामने आएं हैं और उनमें से एक है नदियों को जोडना. लेकिन यह काम बहुत मंहगा और वृहद स्तर का है, साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से काफी खतरनाक साबित हो सकता है, जिसके विरूद्ध काफी प्रतिक्रियाएं भी हुई हैं. कहावत है बूंद-बूंद से सागर भरता है, यदि इस कहावत को अक्षरश सत्य माना जाये तो छोटे छोटे प्रयास एक दिन काफी बडे समाधान में परिवर्तित हो सकते हैं. इसी तरह से पानी को बचाने के कुछ प्रयासों में एक उत्तम व नायाब तरीका है आकाश से बारिश के रूप में गिरे हुए पानी को बर्बाद होने से बचाना और उसका संरक्षण करना. शायद जमीनी नदियों को जोडने की अपेक्षा आकाश में बह रही गंगा को जोडना ज्यादा आसान है.
तमिलनाडुः एक मिसाल
यदि पानी का संरक्षण एक दिन शहरी नागरिकों के लिए अहम मुद्दा बनता है तो निश्चित ही इसमें तमिलनाडु का नाम सबसे आगे होगा. लम्बे समय से तमिलनाडु में ठेकेदारों और भवन निर्माताओं के लिए नये मकानों की छत पर वर्षा के जल संरक्षण के लिए इंतजाम करना आवश्यक है. पर पिछले कुछ सालों से गंभीर सूखे से जूझने के बाद तमिलनाडु सरकार इस मामले में और भी प्रयत्नशील हो गई है और उसने एक आदेश जारी किया है जिसके तहत तीन महीनों के अन्दर सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर वर्षा जल संरक्षण संयत्रों (वजस) का लगाना अनिवार्य हो गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि सारे सरकारी भवनों को इसका पालन करना पडा. पूरे राज्य में इस बात को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया. नौकरशाहों को वर्षा जल संरक्षण संयंत्रो को प्राथमिकता बनाने के लिए कहा गया. यह चेतावनी भी दी गयी कि यदि नियत तिथि तक इस आदेश का पालन नहीं किया जाता तो सरकार द्वारा उन्हें दी गई सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी, साथ ही दंड स्वरूप नौकरशाहों के पैसे से ही इन संयंत्रो को चालू करवाया जाएगा. इन सबके चलते सबकुछ तेजी से होने लगा.
इस काम के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का जागरण कैसे हुआ इसके लिए हमें भूत की कुछ घटनाओं में झांकना होगा. डॉ शेखर राघवन, जो भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर हैं उन पहले व्यक्तियों में से एक थे जिन्होने चेन्नई के लिए वर्षा जल संरक्षण के लाभों के बारे में सोचा. हालांकि चेन्नई में 1200 मिमी बारिश होती है, फिर भी शहर को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पडता है, जबकि राजस्थान जैसा सूखा राज्य अपना काम चला लेता है. निश्चित ही चेन्नई में जरूरत थी बारिश के पानी को बचाने की. गंगा आकाश में थी और शहर इससे अपने आप को तुरन्त जोड सकता था. डॉ राघवन इन संयंत्रो के बारे में लोगों को बताने वाले चुनिंदा व्यक्तियों में से एक थे. उन्होने खुद अपने घर में एक संयंत्र लगवाया और पडाेसियों में भी इस बात की जागरूकता फैलाने लगे और उनकी मदद करने लगे.
सुदूर अमेरिका में राघवन के इस काम की वजह से चेन्नई में पैदा हुए रामकृष्णन को ये याद आने लगा कि कैसे उनकी मा सुबह 3 बजे उठ कर पानी भरती थी. राम और राघवन में संपर्क हुआ और उन्होने आकाशगंगा नामक संस्था की स्थापना की. इसका उद्देश्य था लोगों में इस बात की जागरूकता फैलाना कि कैसे वजस समाज की पानी की जरूरतों के हल बन सकते हैं. उन्होने चेन्नई में एक छोटे से मकान में वर्षा केन्द्र बनवाया जहां वजस की सरलता को दिखाया गया था. इस काम के लिए राम ने खुद 4 लाख रूपए लगाए और विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र विपके ने भी कुछ सहयोग और योगदान दिया. 21 अगस्त 2002 को तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता ने इस छोटे से भवन का उद्धाटन किया. इस तरह से वजस ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया.
बारिश भी कम हुई लेकिन परिणाम चौंकाने वाले थे और सुखद थे. चेन्नई के कुओं में पानी का स्तर कॉफी बढ चुका था और पानी का खारापन कम हो गया था. सडक़ों पर पानी का बहाव कम था और पहले जो पैसा पानी के टैंकरों पर खर्च होता था, लोगों की जेबों सुरक्षित था.

चेन्नई में एक नया जोश था. आज लगभग हर आदमी इस काम में विश्वास करता है. लोग कुओं की बातें ऐसे करने लगे हैं जैसे अपने बच्चों के बारे में लोग बातचीत किया करते हैं क्लब, विद्यालय, छात्रावास, होटल सब जगह पर कुओं की खुदाई होने लगी है.
रामकृष्णन चेन्नई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आई आई टी के पूर्व छात्र थे. आई आई टी में करीब 3000 छात्रों के लिए छात्रावास बनें हैं जिनके नाम भारत की प्रसिद्ध नदियों के ऊपर रखे गये हैं. पूरा कैम्पस करीब 650 एकड क़े विशाल हरे भरे प्रांगण में फैला हुआ है. उन्होने भारत की अपनी नियमित यात्रा के दौरान बडी विडम्बनाओं को देखा उनको पता चला कि हाल ही में हुई पानी की कमी के कारण संस्थान को दो महीनों के लिए बन्द रखना पडा था. पर राम के द्वारा वजस की तारीफ करे जाने के बाद छात्रावासों में धीरे धीरे वजस को लगाया गया और इसका परिणाम है कि अब संस्थान को पहले की तरह पानी खरीदना नहीं पडता. एक और व्यक्ति जो वजस को गंभीरता से ले रहे हैं उनका नाम है गोपीनाथ, जो चेन्नई के रहने वाले हैं और एक व्यापारी व अभियंता है. उनका घर वजस का आदर्श उदाहरण है. उन्होने इस विचार को आसपास के कारखानों में भी फैलाया है. टी वी एस समूह के कई कारखाने विम्को, स्टाल,गोदरेज, और बोयस जैसी कम्पनियों ने इस संयंत्र को लगवाया है और ये संख्या बढती ही जा रही है. (पूरी जानकारी के लिए यहां पढें)
राजीव
गांधी ग्राम पेयजल योजना सराहनीय थी लेकिन जैसे शहरों में गाय के थन और दूध का संपर्क टूट गया है वैसे ही इस योजना ने तालाबों और जलापूर्ति के बीच का संपर्क तोड़ दिया. इस योजना के कारण लोग पंचायत और विकास अफसर अपनी अपनी व्यक्तिगत स्तर की पानी के प्रंबधन संबंधी जिम्मेदारियों से विमुख होने लगे. लोगों का विश्वास था कि जैसे प्लास्टिक के पैकेट में दूध मिलता है वैसे ही टयूबवेल पानी की आपूर्ति करेंगे. इस कारण तालाबों को अनदेखा किया गया और उनके ऊपर मिट्टी और रेत जमा होती गई.
रामकृष्णन ने ठूठूक्कुडी ज़िले के विलाथीकुलम नामक गांव के एक तालाब को पुर्नजीवित करने का निश्चय किया. इस परियोजना की रूपरेखा बनाने में उनको ''धान संस्था'' के रूप में एक उत्तम सहयोगी भी मिल गया और चलाने के लिए एक छोटे स्थानीय समूह विडियाल ट्रस्ट का सहयोग भी मिला. धान ने सबसे पहले जिस गांव के तालाब का पुनरुध्दार किया था उसी के नाम पर उनका काम ''एडआर माडल'' के नाम से मशहूर था. इस काम में स्थानीय लोग, ग्राम पंचायत, सरकार एक मार्गदर्शक जैसे कि धान संस्था, और पैसे देने वाले सब मिलकर काम करते थे. विलाथीकुलम में, जहां सरकारी पानी के आने की संभावना न के बराबर रहती है, इन पुर्नजीवित तालाबों ने नया उत्साह, उमंग और सुरक्षा की भावना को भर दिया है. पंप और पाइप का इस्तेमाल अभी भी होता है लेकिन पानी का स्रोत बोरवेल नहीं है बल्कि एक तालाब हैं.
(रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें).अब पानी से भरी जाती है. रोटरी क्लब ने आयानवरम के काशी विश्वनाथ मंदिर में टंकी को सुधरवाने में मदद की कपालीश्वर और पार्थसारथी पेरूमल मंदिरों की टंकियों से राज्य सरकार ने जमी मिट्टी को निकलवाया है और उनकी मरम्मत करायी है. पर शायद लोगों के काम का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है पम्मल में स्थित साढे पांच एकड में फैले सूर्य अम्मन मंदिर की टंकी का पुनरूध्दार. दानिदा के सलाहकार मंगलम सुब्रमण्यम ने इस काम के लिये स्थानीय लोगों और व्यापारियों को जाग्रत किया और 12 लाख रूपये जमा किये. पम्मल ने सफलता देख ली और वहां इस काम को और आगे बढाया जा रहा है.

कचरा युक्त गन्दे पानी का उपयोग
आजकल चेन्नई में पानी का पुनरूपयोग एक चलन बन गया है. स्थानीय नागरिक पानी को साफ करके शौचालयों और बगीचों में दोबारा इस्तेमाल में ला रहे हैं. चेन्नई के सबसे ज्यादा विचारवान भवन निर्माताओं, जिन्होने वजस को लगाना प्रशासन के आदेश से पारित होने के पहले से शुरू कर दिया था, में से एक एलेक्रिटी फाउंडेशन अब गन्दे पानी के पुनर्चक्रण के नये संयंत्र लगा रही है. उनका मानना है कि नालों में बहने वाले पानी का 80 प्रतिशत हिस्सा साफ करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है. सौभाग्य से इस मामले में चेन्नई में सफलता की कई कहानियां है.
भारी सफलता हासिल की है. इसके लिये ये चेन्नई महानगरपालिका को प्रतिकिलो गन्दे पानी के लिये आठ रूपये भी देते हैं. ये इस पानी की गंदगी के टंकियों में नीचे बैठने के बाद उल्टे परासरण (Reverse Osmosis) का प्रयोग करके ठोस पदार्थों को बाहर निकाल देते हैं. बाकी बचा पानी 98 8 प्रतिशत साफ होता है और कई कामों में प्रयोग में लाया जा सकता है जैसे कि शौचालयों की सफाई, बगीचों में प्रयोग. सफाई से निकली कीचड क़ो वनस्पति कचरे में मिलाकर खाद बनाई जाती है जो उनके वृहद प्रांगण को हरा-भरा रखने में काम आती है. ये काम बहुत बडे स्तर पर किया जाता है. प्रति घंटे 15 लाख लीटर पानी की सफाई की जाती है जो कारखाने की जरूरत का 40 प्रतिशत हिस्सा है और इससे शहर, व्यापार और पर्यावरण तीनों को लाभ होता है. इस काम को करने में और भी कई कारखानों ने रूचि दिखाई है.

अन्य कहानियां
विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र ''विपके'' के संस्थापक अनिल अग्रवाल वजस के अग्रणी लोगों में से एक हैं. अपनी विश्वसनीयता की वजह से उन्होने सन 2000 में भारत की सरकारों को वजस को राष्ट्रीय मिशन के रूप में स्थापित किये जाने की जरूरत के बारे में बताया. सीएसई ने चेन्नई स्थित वर्षा केन्द्र को तुरन्त अपनी मंजूरी दे दी थी और इसके बाद उन्होने मेरठ उ प्र ़ में भी एक वर्षा केन्द्र की स्थापना की. उनका जालस्थल जल स्वराज प्रेरणा और जानकारी का एक उत्तम स्रोत है. वजस के प्रचार और प्रसार के लिये किये गये उत्कृष्ट काम के लिये सीएसई को स्वीडन के प्रतिष्ठित स्टॉकहोम जल पुरूस्कार से भी सम्मानित किया गया.
पर अमल हो रहा है. ये कुछ ऐसे उदाहरण है जिनसे कि आम आदमी को थोडा पैसा और थोडा प्रयास लगा कर इस काम को करने की प्रेरणा मिलती है. इन कामों के लिये किसी भी सहायता या निगरानी की जरूरत नहीं है और न ही नदियों को जोडने जैसी वृहद परियोजनाओं की. इन बडी परियोजनाओं को करने में समय लगता है, पैसा लगता है, और साथ में भारी पर्यावरणीय राजनीतिक और तकनीकी क्षतियां हो सकती हैं, और सबसे बुरी चीज ज़ो होती है वो ये कि लोग अपने आप काम करना छोड क़े सरकार से उम्मीद लगाये रखते हैं. इन सब कामों में ठेकेदारों के मिले होने की वजह से भ्रष्टाचार फैलता है. पहले ही कई दूरदराज क़े गांवों में पानी की बोतल को दूध से भी महगा बेचा जाता है. नई पीढी क़ो ये भी मालूम नहीं कि पानी हमारे लिये प्रकृति की एक अमूल्य किन्तु निःशुल्क भेंट है.
कोई भी सौर ऊर्जा को पैदा करने के बाद उसको जगह-जगह घुमाने के बारे में नहीं सोचता है. ये वहीं उपयोगी है जहा सूरज की किरणें गिरती है. तब पता नहीं नदियों पर हर जगह बांध बना के, पम्प और पाइप लगा के क्या हासिल होने वाला है?
63 वर्षीय श्री स्यामजी जाधवभाई गुजरात में राजकोट के एक बहुत कम पढे लिखे किसान हैं. उनकी सौराष्ट्र लोक मंच संस्था ने साधारण वजस संयंत्रों का प्रयोग करके गुजरात के लगभग 3 लाख खुले कुंए और 10 लाख बोर-वेल को पुनर्जीवित कर दिया है जबकि विशालकाय सरदार सरोवर योजना मुस्किल से 10 प्रतिशत गुजरातियों को भी लाभ नहीं पहुचायेगी. स्पष्ट है कि इस नए प्रयास में लाखों नागरिकों को अपना पानी अपने इलाके में खोजना है न कि कहीं दूर से पाइप लगा कर लाना है.
ये तो पता नहीं कि छोटी योजनायें सुंदर होती है या नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि जहा पर भी प्रकृति के संसाधन बिखरे हुये होते है, वहा यह योजना बहुत प्रभावी सिद्ध होती हैं और देर तक उपयोग में लाई जा सकती है और सभी को लाभान्वित करती है.

जल संरक्षण सम्बंधी कुछ संस्थाओं के जालस्थलः
विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र(नई दिल्ली)
तरुण भारत संघ, अलवर(राजस्थान) - श्री राजेन्द्र सिंह
धान संस्था, मदुरै(तमिलनाडु) - श्री वासीमलाई
भारतीय कृषि उद्योग संस्था, पुणे(महाराष्ट्र) - श्री नारायण हेगडे
रालेजांव सिधी, जिला अहमद नगर(महाराष्ट्र) - श्री अन्ना हजारे
सहगल संस्था, गुडगाव (हरियाणा) - डॉ0 सूरी सहगल
मोरारका संस्था, जयपुर(राजस्थान) - श्री मुकेश गुप्ता
विकास के विकल्प, दिल्लीः डॉ0 अशोक खोसला
केआरजी वर्षाजल संरक्षण संस्था(तमिलनाडु) - श्री गोपीनाथ
आकाश गंगा संस्था, चेन्नई
(अनुवादक आशीष गर्ग, मूल लेखःhttp:www. goodnewsindia. comindex. phpMagazinestory98´ साभार – गुड न्यूज इंडिया

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