अंजलि देशमुख - जिनकी कला में है नदी

उदाहरण के लिए सरस्वती नदी को लें। अदृश्य तीसरी नदी जो इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना में मिलती है और कुछ के लिए पवित्र चीज और अन्य लोगों के लिए एक संभावित ऐतिहासिक तथ्य है। एक वास्तविक नदी, जो प्राचीन समय में या तो सूख
गई या फिर ामीन के नीचे चली गई। उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करें और आपको स्थानीय भूगोल के अनुसार सरस्वती के विभिन्न रूप मिलेंगे।
इसी तरह, देशमुख की नदी के बारे में अपनी चेतना है। उनकी मां एक संस्कृत विद्वान थीं, और देशमुख हिंदू पुराणशास्त्र के घेरे में बड़ी हुईं। लेकिन वह नदी का इस्तेमाल एक रूपक के तौर पर भी करती हैं। संगम की पेंटिंग में जहां तीनों नदी मिलती हैं, गंगा और यमुना को ठंडी, साफ़ तौर पर जलीय और नीली दिखाया गया है। सरस्वती नदियों
के 'वाई' को चीरती हुई, हरे तालाबों की शृंखला है जो इसके सात झीलों से निकलने की कहानी बताती है। सादगीभरी कृति इस मिलन की रस्मी शुध्दता और वर्तमान प्रदूषण, दोनों को चित्रित करती है। देशमुख को कहना है, ''जब वह इस स्थान पर गईं तो पर्यावरण की त्रासदीपूर्ण गिरावट ने उनका ध्यान सबसे ज्यादा खींचा। हास्य के पुट और आशा की किरण के साथ विषय को हल्का बनाने के अलावा हरे तालाब जलमार्गों में नाइटोजन प्रदूषण को सोखने के लिए काई के इस्तेमाल को भी दिखाते हैं।
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एक अन्य कैनवस में, तीसरी नदी एकदम अलग रूपक बन जाती है। एक पतली सफ़ेद लाइन एक लैंडस्केप के बीच से सर्प की तरह से गुजरती है, जो एक झीने हरे आवरण में शुरू होती है, जो जलरहित क्षेत्र के एक कोने से जुड़ा है यह लैंडस्केप राजस्थान में जैसलमेर के निकट रेगिस्तान के एक हिस्से को दिखाता है। नदी अब भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा बन गई है, रेत में खिंची एक मनमानी रेखा लेकिन ऐसी रेखा, जिसके साथ एक धार्मिक कथा की पूरी वास्तविक विश्व शक्ति है। रेखा के दोनों तरफ
लोग टयूबवेल लगवा रहे हैं और बगैर किसी तालमेल के जल स्तर घटा रहे हैंट्ठ उन्हें अलग करने के इरादे से बनाई गई रेखा के कारण एक दूसरे के भविष्य को प्रभावित कर रहे हैं।
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देशमुख अपने कंप्यूटर का स्विच ऑन करती हैं और एक समानांतर कार्य दिखाती हैं, कंप्यूटर ग्राफ़िक के इस्तेमाल से एक चित्र का प्रतिबिंब, जिसमें पीली पाठय सामग्री के ब्लॉक उस जगह की क्षीण हरियाली को दर्शाते हैं, जहां से नदी निकलती है। ये जल संकट की तीन कहानियां हैं, प्रत्येक एक अलग नतीजे के साथ। वे इस विषय पर उनके गहन अध्ययन और लेखन को प्रकट करती हैं, एक ऐसी प्रक्रिया जिसे वह पेंटिंग के साथ साथ गूंथती हैं, अक्सर सुबह 4 बजे तक बैठकर इंटरनेट पर इस विषय पर मिले लेखों को पढ़ कर। कंप्यूटर इमेज अंतत: पेंटिंग के साथट्ठसाथ दिखाई जाएगी।
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देशमुख का जन्म वाशिंगटन डी.सी में हुआ और वह बेथेस्डा, मेरीलैंड में बड़ी हुईं। लेकिन भारत उनके जीवन में हमेशा छाया रहा। उनके माताट्ठपिता महाराष्ट्र से हैं और उनके पांच साल के होने तक उनके घर में मराठी मातृभाषा थी। फिर वह अंग्रेजी पर आ गईं।
उन्होंने एमहर्स्ट कॉलेज, मैसाच्यूसेट्स से अंग्रेजी और ललित कला की पढ़ाई की और बाद में थोड़े समय तक पत्रकारिता की।
लेकिन उनकी कला इस समय दिल्ली के कला परिदृश्य पर हावी फॉर्मेलिस्ट काम के विपरीत है। देशमुख का कहना है कि अमेरिकी स्कूल से निकली होने के कारण वह एक अलग परंपरा से आती हैं। एक बाहरी व्यक्ति की दृष्टि से राजनीतिक और सामाजिक
चिंताएं उनके काम की प्रमुख चीजें हैं। पर्यावरण से उनका जुड़ाव उस समय हुआ, जब
उन्होंने भारत आने से लगभग एक साल पहले लैंडस्केप पेंटिंग शुरू की। उनके विषयों में अग्नि के एक स्तंभ के रूप में शिव की कहानी शामिल थी, जिसकी तुलना एक ज्वालामुखी के फटने से की गई और उसका इस्तेमाल प्राकृतिक कारणों से दुनिया के गर्म होने के प्रतीक के रूप में किया गया। मौजूदा सीरीज में इन्हीं कथानकों को आगे बढ़ाया गया है, लेकिन पर्यावरण की समस्याओं के मानवीय कारणों पर ज्यादा ाोर के
साथ। इनमें भोपाल गैस लीक त्रासदी जैसे विषयों को उठाया गया है। लेकिन हाल के महीनों में देशमुख ने भारत के साथ अपने सीधे जुड़ाव से पीछे हट कर ज्यादा वैश्विक परिदृश्य पर ध्यान दिया है।
देशमुख ने अपने भविष्य के बारे में कोई पक्का फैसला नहीं किया है, लेकिन आपको ऐसा आभास होता है कि वह दोनों में से किसी भी देश में सहजता से बस जाएंगी। वह अमेरिका में लेखन के करिऍर की ओर लौट सकती हैं या भारत में भारतीय मूल के
व्यक्ति की तरह रह सकती हैं, नागरिकता लेने के विकल्प के साथ। कला के बाजार में मौजूदा उछाल निश्चित रूप से उनके पक्ष में होगा। जिस एक योजना के बारे में वह बातचीत करती हैं, वह है, जिन सामाजिक और पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर वह शोध कर रही हैं, उनके समाधान के लिए एक संगठन की स्थापना।
मराठीभाषी अंजलि देशमुख अमेरिका , के उपनगरीय इलाके में पैदा हुईं और वहीं पलींट्ठबढ़ीं, लेकिन दक्षिण दिल्ली के एक ऐसे अपार्टमेंट में खुशी के साथ चित्रकारी, डिजाइनिंग और लेखन कार्य कर रही हैं जिसमें साजट्ठसाा न्यूनतम ही है। उन पर आप पहचान का संकट होने का आरोप नहीं लगा सकते। उनसे पूछिए कि वह खुद को अमेरिकी मानती हैं या भारतीय, तो 27 वर्षीय अंजलि फर्राटेदार और बढ़िया अंग्रेजी में जवाब देंगी कि वह वास्तव में दोनों हैं। दीवारों पर मौजूद कैनवॅस को देखिए तो समझ जाएंगे कि उनका मतलब क्या है।मॉडर्न, लगभग अमूर्त दृश्यों में नासा के सैटेलाइट चित्रों से लेकर हिंदू पौराणिक कथाओं और इंटरनेट से निकाले गए वैज्ञानिक पर्चों का मिलाजुला असर है। चमकदार मैकिनतोष लैपटॉप पर कलाकार वे चीजें तैयार कर रही हैं, जो अंतत: कैनवॅस के साथ होंगी, संवाद तैयार करेंगी और कुछ हद तक काम के बारे में बताएंगीं। देशमुख ने दिसंबर, 2006 में नई दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में ' एजेंट ग्रीन ऑफ़ द एकेसिया टॉर्टिलिस एंड अदर वैपन्स' नाम के शो में अपनी 20 पेंटिंग और डिजिटल ड्रॉइंग प्रदर्शित कीं। देशमुख का कहना है, ''काम इस परीक्षण के साथ शुरू हुआ कि पुराणशास्त्र और विज्ञान के बीच जुड़ाव सामाजिक और पर्यावरण के मुद्दों में कैसे प्रतिबिंबित होता है।'' www.fulbright-india.org

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