पानी रे पानी... - - नुपूर दीक्षित

मार्क ट्वेन ने कहा था- पूरा विश्व व्हिस्की पिएगा और पानी के लिए युद्ध लड़े जाएँगे। उनका यह कथन इतने वषों बाद भी उतना ही प्रासंगिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब किसी और मुद्दे पर नहीं, बल्कि पानी के लिए तीसरा विश्वयुद्ध लड़ा जाएगा। ऐसा अनुमान अभी भले ही हमें हास्यापद लगता हो, लेकिन परिस्थितियाँ जिस कदर बिगड़ रही हैं, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि वह दिन भी अब दूर नहीं। तमिलनाडू और कर्नाटक राज्यों के बीच कावेरी जल-विवाद इसका प्रमाण माना जा सकता है। पानी की समस्या को समझने के लिए भारत की परिस्थितियों पर नजर डालें तो इसकी भयावहता स्पष्ट नजर आएगी। भारत की जनसंख्या 1 अरब से भी ज्यादा हो गई है। प्रति व्यक्ति को जहाँ 80 लीटर पानी दिनभर में इस्तेमाल करना चाहिए, वहीं यहाँ प्रति व्यक्ति 270 लीटर पानी खर्च करते हैं। यही वजह है कि लोगों को पानी तो मिल जाता है, लेकिन पीने के शुद्ध पानी की बात करें, तो बहुत कम प्रतिशत तक ही शुद्ध पानी पहुँच पा रहा है। पीने के पानी के स्त्रोतों के रूप में यहाँ भूमिगत जल, नदियों और तालाबों के पानी पर ही लोगों की निर्भरता है। जिस रफ्तार से देश की जनसंख्या बढ़ रही है, उसी अनुपात में भूमिगत जल का दोहन भी जारी है। इस अंधाधुध दोहन का परिणाम यह हो रहा है कि भूमिगत जल का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है।
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गर्मियों के दिनों में हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि पीने का पानी भी कई-कई दिनों बाद लोगों को नसीब होता। जब पीने के पानी के लिए इतना हाहाकार मचा हो, तो इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य उपयोगों के लिए पानी कितना मिल पाता होगा?अगर देखा जाए तो भारत में मुख्य नदियों में 12 ही ऐसी हैं, जिनमें सालों भर पानी रहता है। गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों का पानी पीने के साथ-साथ अन्य उपयोगों में भी लाया जाता है, लेकिन हर साल इन नदियों में बाढ़ आती है और लोगों के इस स्त्रोत को भी छीन ले जाती है। गंगा नदी में हर साल आने वाली बाढ़ से न केवल हजारों लोग बेघर हो जाते हैं, बल्कि उन्हें पीने का पानी तक नसीब नहीं होता, जिसका परिणाम कई महामारियों के रूप में हमारे सामने आता है और सैकड़ों लोग मौत की कगार पर पहुँच जाते हैं। देश में कुछ संगठन इस दिशा में काम भी कर रहे हैं, लेकिन वे ऊँट के मुँह में जीरे के जैसा है, क्योंकि इतने बड़े स्तर पर लोगों की प्यास बुझा पाना संभव नहीं हो पा रहा। ऐसा नहीं है कि ये स्थिति पृथ्वी के निर्माण के साथ ही पैदा हो गई थी, बल्कि इन परिस्थतियों के लिए मनुष्य को ही दोषी माना जाएगा। बिना किसी योजना और विकल्प के वे प्रकृति के मुख्य संसाधान यानी जल का दोहन कर रहे हैं।

साभार- वेब दुनिया

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