आम आदमी का पानी बाजार में -जॉय इलामन

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ीसाफ पानी तक आम आदमी की पहुंच पहले के मुकाबले आज ज्यादा मुश्किल में पड़ गई है। पानी सबसे बहुमूल्य जीवन दायक संसाधन है, इसी से मुनाफा कमाने की होड़ ने यह खतरा पैदा किया है। सार्वजनिक जल व्यवस्था के संचालन को निजी हाथों में दिये जाने की प्रक्रिया एशिया में तेजी से बढ़ती जा रही है। यह काम विश्व बैंक, एशिया विकास बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा तथा सरकारों और विश्व के बड़े जल निगमों द्वारा किया जा रहा है। पानी के नियंत्रण और प्रबंधन को निजी निकायों को दिये जाने के बाद इसके जो भी असर या नतीजे सामने आये हैं, उनसे निजीकरण के हिमायतियों के दावों की पोल खुल गई है। पानी तथा इससे जुड़ी अन्य सुविधाओं की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होने से लोगों को पानी मिलना ही मुश्किल हो रहा है। ऐसे परिवार जो इसकी कीमत चुकाने में असमर्थ हैं, उनकी तो मुश्किलों का पारावार ही नहीं है। मुनाफे के लालच के कारण उन इलाकों में पानी की सुविधाएं घटती जा रही हैं, जहां पानी से ज्यादा मुनाफा नहीं मिल पा रहा है। निजी कम्पनियों द्वारा मूल ढांचे में सुधार करने के आश्वासन के बाद ही इन्हें पानी की कीमत बढ़ाने की अनुमति मिली थी, लेकिन कीमतों में लगातार वृध्दि के बावजूद भी पानी की गुणवत्ता और अन्य सुविधाओं में कोई सुधार नहीं हो पाया है। हाशिये पर रहने वाले गरीब तबके और खासकर महिलाओं पर इसकी मार अधिक पड़ती है। बढ़ी हुई कीमतें अदा न कर सकने के कारण ऐसे परिवारों के लिए पानी का जुगाड़ करना ही मुश्किल हो गया है।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं विकासशील देशों को कर्ज़ देकर जल सेवाओं की निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम करती हैं। पूरे अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में निजीकरण के लिए मौलिक सेवाओं को ही प्राथमिकता दी जा रही है। ये संस्थाएं अपनी शर्तों और मापदण्डों के जरिये निजीकरण को थोपती हैं और जल क्षेत्र में निवेश के लिए निजी निगमों का रास्ता आसान करने के वास्ते सरकारी योजनाओं के लिए कर्ज देती हैं। ये कर्ज़े निजी निगमों के जोखिम रहित निवेश को सुनिश्चित करते हैं। उपरोक्त संस्थाएं निजीकरण को लागू करने के लिए विशेषज्ञ भी मुहैया करवाती हैं। निजीकरण की नीतियां तथा योजनाएं या तो कर्ज के मापदण्डों और शर्तों के रूप में शामिल होती हैं अथवा व्यापक अर्थिक नीतियों के तहत होते हैं।

दस्तावेजों के रूप में ये उदाहरण पक्के सबूत के रूप में हैं, जो यह बताते हैं कि कर्ज दिये जाने की शर्तों को बार-बार थोपना एक आम बात हो चुकी है, जिसमें सार्वजनिक रियायतों (सब्सिडी) को खत्म करना तथा लागत की पूरी वसूली के सिध्दांत शामिल हैं। ऐसी नीतियों का इस्तेमाल विश्व बैंक जल सम्बन्धी कर्जे क़े लिए करता है। ऐसे कर्जों में फिलीपीन्स सरकार का 280 मिलियन डॉलर का कर्जा शामिल है, जिसका उद्देश्य वहां की 1000 नगरपालिकाओं के जल क्षेत्र को निजी व्यवसाय के लिए खोलना था। इसी तरह विश्व बैंक ने इंडोनेशिया को पानी व सफाई के मूल ढांचे के समन्वय के लिए 300 मिलीय डॉलर कर्ज दिया, जो कि पानी के निजीकरण के लिए कानून बनाने की शर्तों पर आधारित था। कर्ज़ लेने वाले देशों को तीन साल का समय दिया जाता है। बैंक द्वारा नियोजित निवेश की नीति और कर्जों से सम्बन्धित कार्यवाही की रूप-रेखा यह दर्शाती है कि देश की क्षमता कैसी है ? इस क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है। कर्ज लेने वाले अधिकांश देशों को गरीबी उन्मूलन के लिए लिखित रूप में रणनीति तैयार करने के लिए लिखित रूप में रणनीति तैयार करने के लिए कहा जाता है। इन देशों से ऐसी नीतियां अपनाने की अपेक्षा की जाती है, जिनसे ये देश कर्जदार हो जायें और ये देश विश्व बैंक के जल सम्बन्धी निजीकरण के निर्देशों और रणनीतियों का पालन कर सकें। यह एक विडम्बना ही है कि इन मुल्कों के बीमार सार्वजनिक उपक्रमों को बचाने के नाम पर वहां निजीकरण का दबाव बनाया जा रहा है। इसके बावजूद भी ये मूल्क पहले के मुकाबले और अधिक कर्ज में डूबते जा रहे हैं। ऐसे में ये देश सार्वजनिक सेवायें उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी से बचते जा रहे हैं और निजी एकाधिकार की नीतियों को समर्थन दे रहे हैं। इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय सम्पति और संसाधनों का नियन्त्रण कुलीन वर्ग के हाथों में सिमटता जा रहा है। यह बहुत ही दुखदपूर्ण स्थिति है। विश्व बैंक तथा एशियाई विकास बैंक ऐसी परियोजनाओं को आर्थिक सहायता देते हैं, जो निजीकरण का रास्ता खोलती हैं। मसलन, इन वित्ताीय संस्थाओं की सहायता से चलने वाली जल-परियोजनाएं अपनी ऐसी छवि पेश करती हैं, जैसे कि ये परियोजनाएं सार्वजनिक जल सुविधाओं के उद्देश्य से ही चल रही है। इसके विपरीत इनके दस्तावेजों से पता लगता है कि वास्तव में ये परियोजनाएं इन सुविधाओं को निजी हाथों में देने का काम आसान कर देती हैं, क्योंकि मुनाफे का उद्देश्य इनके साथ हमेशा जुड़ा रहता है। इस प्रक्रिया में मूल ढांचे में सुधार तथा वित्ता प्रबंध और तकनीकी जरूरतें शामिल रहती हैं। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीीय संस्थानों द्वारा दी जाने वाली सलाहकार सेवाओं के लिए सार्वजनिक मद से बड़ी मात्रा में फीस वसूली जाती है। ये सलाहकार सेवायें खुद या इन संस्थानों द्वारा अथवा फिर प्राईस वाटर हाऊस, कूपर्स तथा हलक्रो जैसी निजी फर्मों द्वारा दी जाती हैं। विश्व बैंक के अंतर्राष्ट्रीय वित्ता निगम ने मनीला महानगर के निजीकरण के ठेके की प्रक्रिया को तैयार किया था। फिलीपींस के सबसे बड़े पानी वाले इस जिले के लिए दिये गये ठेके में से 6.2 मिलियन डॉलर का शुल्क केवल सलाहकार सेवाओं के लिए दिया गया।

ये अंतर्राष्ट्रीय वित्तीीय संस्थान न सिर्फ कर्ज़ देने वाली संस्थाओं के रूप में कर्ज़दार देशों में अपना राज चलाते हैं, बल्कि अन्य कर्जों के लिए भी चौकीदारी करते हैं। विकासशील देश कर्जों तथा इसके लिए अन्य सेवाओं के चलते इस जटिल दुष्चक्र में फंसकर परनिर्भर होते चले जाते हैं और बंधुआ हालातों के शिकार हो जाते हैं। अंतत: बैंक अपने निजी क्षेत्र में निवेश के मुख्य हथियार अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम के जरिये निजीकरण की परियोजनाओं में निवेश करने वाले निजी निगमों की साझेदारी और पूंजी के लिए कर्ज देता है। विश्व बैंक के साथ-साथ इसका साझेदार एशियाई विकास बैंक विश्व बैंक की तर्ज़ पर जहां-तहां गरीबी उन्मूलन के नारे लगता रहता है। एशियाई विकास बैंक अपनी लागत की पूरी वसूली के सिध्दांत को ध्यान में रखते हुए ही जल क्षेत्र के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाता है। वित्तीय संकट से ग्रस्त सार्वजनिक सेवाओं को संकट से उबारने के नाम पर निजी निवेशकों को बढ़ावा देता है।

विकासशील देशों के कई समुदायों में पानी के निजीकरण के खिलाफ लड़ाई अब जीवन और मौत का मामला बन चुका है। सबसे मौजूदा चुनौती पानी के निजीकरण की प्रक्रिया का विरोध कर इसकी दिशा को बदल देने की है। इसी के साथ एक और महत्वपूर्ण चुनौती यह है कि पानी के निजीकरण का एक सार्वजनिक और प्रजातांत्रिक विकल्प ढूंढ़ा जाये। इस विकल्प को सार्थक बनाने के लिए आवश्यक सामाजिक परिवर्तन लाये जायें, तथा जैसे-जैसे हमारा यह संघर्ष आगे बढ़ेगा, तो साफ हो जायेगा कि निजीकरण का मुद्दा विकासशील देशों के निरंतर शोषण, दमन और उन पर दबदबा कायम कर लेने के मुद्दों से अलग नहीं है। स्पष्ट है कि इस संकट का समाधान धीमी गति से नहीं हो सकता। (इंसाफ-पीएनएन)

Hindi India Water Portal

Issues